वसीम अकरम त्यागी
23 नवंबर को हिंदुस्तान अख़बार के फ्रंट पेज पर एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ। यह विज्ञापन विश्व हिंदू पीठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और भारतीय खाद्य निगम के सदस्य अतुल द्विवेदी ने प्रकाशित कराया। एक धार्मिक कार्यक्रम के लिये दिये गए इस विज्ञापन में लिखा था कि ‘भारत वर्ष के हिंदू राष्ट्र के रूप में स्थापित होने की जनमंगल कामना एंव हिंदू समाज के जनकल्याण हेतु मां भगवती का सतचण्डी यज्ञ एंव अनुष्ठान’। संविधान के मुताबिक़ भारत धर्मनिर्पेक्ष देश है। लेकिन इसके बावजूद संविधान विरोधी यह विज्ञापन ‘हिंदुस्तान’ में प्रकाशित कर दिया गया। इस विज्ञापन पर एक दो पत्रकारों को छोड़कर किसी ने विरोध करना भी जरूरी नहीं समझा। हालांकि आज़ाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद ने इस पर अपना विरोध जरूर दर्ज कराया, लेकिन वह भी सिर्फ ट्वीट तक ही सीमित होकर रह गया। उन्होंने विज्ञापनदाता के खिलाफ देशद्रोह लगाने की मांग जरूर की लेकिन इसकी पहल खुद से नहीं की। शासन, प्रशासन सबकी आंखों से यह विज्ञापन जरूर गुजरा होगा लेकिन इसे चुनौती देना जरूरी नहीं समझा।
अब दूसरी ओर रुख करते हैं। इसी साल पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉक्टर अय्यूब सर्जन ने एक उर्दू अख़बार में कथित तौर से ‘विवादित’ विज्ञापन प्रकाशित कराया था। ईद उल अज़हा के मौक़े पर उर्दू अख़बार में प्रकाशित कराए गए उस विज्ञापन में लिखा था कि “हम सभी मसलक़ के उलमा-ए-किराम ये ऐलान करते हैं कि पीस पार्टी के सियासी मिशन अहकाम-ए-इलाही और निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा की पूरी हिमायत करेंगे और इस मिशन की कामयाबी के लिये हर क़ुर्बानी देने के लिये तैयार हैं। सरकार उलमा जिन्होंने सो सालों से हेडगवार, सावरकर, नेहरू, लोहिया, अंबेडकर के मिशन पर चलन को मज़्हब बना दिया और अवाम से हिमायत कराते रहे हैं. उनका ये इक़दाम अहकाम-ए-इलाही और निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा के बुनिया उसूलों के ख़िलाफ है। हम अराकीन शरई, शूरी, इस ग़ैर शरई इक़दाम की मुख़ालिफत करते हैं, और अवाम से गुज़ारिश करते हैं कि इन सरकारी उलेमा जो अपने ज़ाती मफाद में काम करते आ रहे हैं, उनसे मोहतात रहें”।
इस विज्ञापन को संविधान विरोधी बताते हुए 31 जुलाई की शाम को लखनऊ के हज़रतगंज पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज हुई, उसी रात को गोरखपुर के बड़हलगंज स्थित डॉक्टर अय्यूब के क्लीनिक से उन्हें गिरफ्तार करके लखनऊ लाया गया। अगले रोज़ उन्हें इस ‘संविधान विरोधी’ विज्ञापन प्रकाशित कराने के आरोप में जेल भेज दिया गया। कुछ दिन बाद ही डॉक्टर अय्यूब के ऊपर रासुका लगा दिया गया। हालांकि तक़रीबन दो महीने बाद डॉक्टर अय्यूब के ऊपर लगाया गया एनएसए एडवाईज़री बोर्ड द्वारा हटा दिया गया। एनएसए हटने के लगभग 15 दिन बाद डॉक्टर अय्यूब को लखनऊ की एमपी/एमएलए कोर्ट से ज़मानत मिल गई। इस कथित संविधाव विरोधी विज्ञापन को प्रकाशित कराने के आरोप में डॉक्टर अय्यूब ने तक़रीबन ढ़ाई महीने जेल में बिताए हैं।
देखा जाए तो डॉ. अय्यूब द्वारा प्रकाशित कराए गए विज्ञापन में देश को इस्लामिक राष्ट्र अथवा मुस्लिम राष्ट्र बनाने का आह्वान नहीं किया गया था, लेकिन इसके बावजूद उन्हें कोरोना काल जैसी आपदा में जेल में रहना पड़ा। जबकि हिंदुस्तान अख़बार में प्रकाशित हुए विज्ञापन में सीधे तौर पर भारतीय संविधान की प्रस्तावना को चुनौती दी गई है, लेकिन विज्ञापनदाता के ख़िलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया।
विज्ञापनदाता अभी तक सरकार द्वारा प्रदत्त ‘लाभ के पद’ यानी भारतीय खाद्य निगम में सलाहकार सदस्य के पद पर बरक़रार हैं। इस विज्ञापन की आलोचना करने वाले लोगों को देश विरोधी बताते हुए अतुल द्विवेदी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “देश के राष्ट्र विरोधी तत्वों द्वारा सोशल मीडिया पर इस विज्ञापन को लेकर बेवजह हिन्दुस्तान न्यूज़ पेपर का बहिष्कार बेहद गलत है। विश्व हिंदू पीठ इसकी भर्त्सना करता है। विश्व हिंदू पीठ हिन्दुस्तान पेपर के समर्थन में हिंदू समाज को आगे आने का आह्वान करता है।“
सवाल है कि क्या यह अय्यूब और अतुल में भेदभाव नहीं किया जा रहा है? क्या अतुल के ख़िलाफ सिर्फ इसलिये कोई कार्रावाई नहीं होगी क्योंकि वे हिंदुराष्ट्र के पैरोकार हैं, और इन दिनों देश में हिंदुत्व की राजनीति करने वाली पार्टी की सरकार है? तब संविधान में दिये गए समानता के अधिकार के क्या मायने रह जाते हैं? डॉ. अय्यूब और उनकी पार्टी द्वारा किसी समुदाय विशेष से यह आह्वान नहीं किया गया था कि उनके समर्थन में आएं, उन्होंने अपने आलोचकों को भी देश विरोधी नहीं बताया।
इसके उलट अतुल द्विवेदी संविधान की प्रस्तावना को चुनौती देने के बावजूद न सिर्फ अपने पद पर बने हुए हैं, बल्कि अपने आलोचकों को देशविरोधी बता रहे हैं। सरकार और प्रशासन का दोहरा रवैय्या अतुल और अय्यूब होने का फर्क बता रहा है। डॉक्टर अय्यूब कह रहे हैं “मैंने ईद के मौक़े मुबारकबाद का एक विज्ञापन प्रकाशित कराया था तो मेरे ऊपर मुकदमा लगाकर, एनएसए के तहत जेल में बंद कर दिया। अब इलाहाबाद के रहने वाले अतुल द्विवेदी ने देश को को हिंदुराष्ट्र बनाने के लिये विज्ञापन प्रकाशित कराया है, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रावाई नहीं हुई है। सरकार का और प्रशासन का यह दोहरा रवैय्या चिंता का विषय है।”
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार एंव पत्रकार हैं)