Twocircles.net के लिए दिल्ली से जगन्नाथ की रिपोर्ट –
केंद्र सरकार द्वारा हालिया बना कृषि संबंधी तीन कानूनों के खिलाफ़ देशभर के कई राज्यों, ख़ासकर पंजाब और हरियाणा के लाखों किसान लगातार आन्दोलन कर रहे हैं. दिल्ली के बुराड़ी स्थित निरंकारी ग्राउंड सहित आसपास के राज्यों से लगते बॉर्डरों पर भी आन्दोलन जारी है. दिल्ली से हरियाणा के बीच सोनीपत-पानीपत के रास्ते में सिंघु बॉर्डर पर और रोहतक-बहादुरगढ़ के रास्ते में टिकरी बॉर्डर पर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. स्थिति कुछ ऐसी है कि दिल्ली के ट्रैफिक पुलिस को ट्वीट कर इस रास्तों से आवाजाही न करने की अपील करनी पडती हैं. दूसरी तरफ, सोमवार को भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से किसान का एक जत्था दिल्ली के तरफ कूच करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें गाजीपुर बॉर्डर पर रोक दिया गया है.
दरअसल, देशभर के सैकड़ों किसान संगठनों ने 26-27 नवम्बर को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वाहन किया था. इससे पहले पंजाब-हरियाणा में नए कृषि कानून के खिलाफ़ दो महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे थे. इसी कड़ी में पंजाब में रेल की पटरियों को भी घेरा गया था. जिस कारण हजारों ट्रेनें कैंसिल रही या रूट बदल कर चलती रही. इसके बावजूद भी केंद्र सरकार का कोई प्रतिनिधि जब उनसे मिलने नहीं पहुंचा, उनकी मांग पर विचार नहीं किया गया, फिर किसानों ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल और आन्दोलन का आह्वाहन किया.मोहाली के जश्मेर सिंह बताते हैं, “हमारे प्रतिनिधि जब इनसे(केंद्र सरकार) से मिलने आएं, तो इन्होने बात नहीं की. अब जब हम खुद चलकर आएं हैं, तो हमें हरियाणा बॉर्डर पर ही रोकने की कोशिश की गई. हमें रोकने के लिए सडकों पर गड्ढे खोदे गये, शिपिंग कंटेनर रखे गये, वाटर कैनन से हमारे उपर पानी छोड़ा गया, आंसू गैस के गोले छोड़ें गये. इसके बाद भी हम बढ़ते रहे, तो दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर कांटीले तार से सड़क को घेर दिया गया, ताकि हम क्रॉस न कर सकें.”“अब जब हम यहाँ बैठ गये, तो सरकार कहती हैं कि दिल्ली के बाहरी क्षेत्रों में आकर हम आन्दोलन करें. लेकिन अब हम यहाँ से कहीं नहीं जाने वाले हैं,” आगे वे कहते हैं.आपको बता दूँ, कल गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि किसान पहले बॉर्डर से दिल्ली आएं फिर हम 3 दिसम्बर को उनसे मिलेंगे. हालाँकि किसानों के सभी संगठनों ने सामूहिकता से फ़ैसला लिया कि वे बाहरी दिल्ली के बुराड़ी स्थित निरंकारी ग्राउंड नहीं जायेंगे.
क्यों कर रहे हैं किसान प्रदर्शन
इसी साल जून के महीने में केन्द्रीय मंत्रिमंडल के मीटिंग में तीन अध्यादेश पास हुआ. सितम्बर माह के मानसून सत्र में दोनों सदनों में बिल पारित हुआ. राष्ट्रपति ने भी अपनी सहमति दे दी और फिर यह तीनों कानून बन गया. इन तीनों का कानून का नाम है- किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) क़ानून-2020, कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार क़ानून-2020, आवश्यक वस्तु क़ानून (संशोधन)-2020.
पहला कानून फसल को बेचने से सम्बंधित है. सरकार कह रही है कि कानून में किसानों को यह आज़ादी दी गई है कि वह कहीं भी जाकर अपने उत्पाद को बेच सकते हैं. पहले किसान अपने ही क्षेत्र के मंडी यानी एपीएमसी (Agriculture Produce Marketing Committee) में बेचते थे. लेकिन इस कानून के लागू होते ही अब यह ख़त्म हो गया है. जिसे सरकार अब ‘बिचौलियों से मुक्त’ कह रही है. लेकिन किसानों का कहना है ! कि बिहार में जहाँ 2006 में ही एपीएमसी को ख़त्म कर दिया गया था. अब हालत यह हैं कि शायद ही कोई फसल एमएसपी दर पर बिकता हो. वर्त्तमान केंद्र सरकार बिहार जैसा हालत अब पुरे देश में कर देना चाहती है.किसान मान रहे हैं कि दूसरा कानून ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा देगा. इस कानून के तहत निजी कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की सुविधा मिलेगी. किसान के जमीन कम्पनियाँ अपनी लाभानुसार फसल उपजा सकेंगी. जानकर इसे चमारण के नील की खेती से जोड़ कर देख रहे हैं. जिसके खिलाफ़ 1917 में गाँधी जी ने एक लम्बी लडाई लड़ी थी.
तीसरा कानून न सिर्फ किसान, बल्कि आम लोगों के लिए भी परेशानी का सबब बन रहा हैं. यह कानून आवश्यक वस्तु की सूची से जुड़ा है. इस कानून में संशोधन कर अनिवार्य वस्तुओं की सूची से आलू और प्याज के साथ खाद्यान्न, तिलहन, दलहन जैसे फसलों को बाहर कर दिया है. इस कानून के तहत सूचीबद्ध वस्तुओं के व्यापार को सरकार नियमन करती है. लेकिन इस संसोधित कानून के अनुसार, अब आलू प्याज़, दलहन आदि खाद्यानों के व्यापार का सरकार नियमन नहीं करेगी और इनका व्यापार मुक्त तरीके से किया जा सकेगा. सीधे शब्दों में कहूँ, तो व्यापारी अब इन वस्तुओं की जमाखोरी कर सकेंगे. मांग बढ़ने पर अधिक मूल्य के साथ बाज़ार में बेच सकते हैं. इस कानून के लागू होने के साथ ही महंगाई बढ़ गई. आलू-प्याज़ लगभग सौ रूपये बिक रहे हैं. दाल के कीमतों में भी जबरदस्त इज़ाफा हुई हैं.उपर्युक्त तीनों कानूनों का विरोध किसान इसीलिए भी कर रहे हैं, ताकि कृषि पर उनकी स्वायत्ता बची रहे. पंजाब के सुखविंदर सिंह ने Twocircles.net से बातचीत में कहा है कि कृषि ही उनका जीवन है. यह महज़ उनकी परम्परा ही नहीं, बल्कि उनके खून से जुड़ा हुआ है. इसे वे इतनी आसानी से कैसे छोड़ सकते हैं”
किसान आन्दोलन और मीडिया का रुख़
भाजपा के सरकार बनने के बाद ही सरकार के हर विरोधी आवाज़ को कुचलने की कोशिश के आरोप लगते रहे हैं . इसमें एक पक्षीय मीडिया ने अहम् हिस्सा निभाई है. छात्रों के आवाज़ को ‘देशद्रोही’ करार देना, अल्पसंख्यकों की आवाज़ को ‘आतंकवाद’ से जोड़ कर देखना, आदिवासी की आवाज़ को नक्सल कह देना, और शिक्षकों, एक्टिविस्टों, मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं, वकीलों को ‘अर्बन नक्सल’ कह देने तक चर्चा में रहा है . किसानों का आन्दोलन भी इससे कैसे बच सकता था. आखिर यह आवाज़ भी तो सरकारी नीतियों के खिलाफ़ ही है. इसीलिए किसान आन्दोलन पर पहले विपक्ष द्वारा मिसलीडिंग का आरोप लगाया गया, लेकिन जब इसमें सफलता नहीं मिली फिर इसे खालिस्तानी परस्त बता दिया गया. एक चर्चित चैनल अपने डीएनए शो में कुछ यूँ लिखता है- “किसान आन्दोलन में खालिस्तानियों की एंट्री”. इसके अलावा, आज तक, न्यूज़ नेशन, सीएनएन न्यूज़18 आदि ने बाक़ायदा शो चलाया कि किसान आदोलन के पीछे कौन हैं! इंडिया टीवी के रजत शर्मा ने अपने वेबसाइट पर एक लेख लिखा है. जिसका शीर्षक है- “कैसे नेता और बिचौलिए किसानों को कर रहे हैं गुमराह”.
अब सवाल उठता है कि लाखों किसान, जो महीनों-महीनों की राशन, पानी और रहने की व्यवस्था कर दिल्ली कूच कर रहे हैं, क्या वे किसी की बहकावें में आयें होंगे ! उनकी अपनी समस्याएं है !