सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कोलकाता पुलिस को कहा है कि आम नागरिकों को सरकार की आलोचना करने के लिए प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। यहां एक महिला को ममता बनर्जी सरकार की आलोचना के लिए समन जारी किया गया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने कहा कि अगर राज्यों की पुलिस इस तरह से आम लोगों को समन जारी करने लग जाएगी, तो यह एक खतरनाक ट्रेंड होगा। ऐसे में न्यायालयों को आगे बढ़कर अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की रक्षा करनी होगी जो कि संविधान के आर्टिकल 19(1)A के तहत हर नागरिक को मिला हुआ है।
ऐसा लगातार हो रहा है और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ऐसे समय मे क़ाबिल – ए – गौर है। सरकार के कामकाज पर सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने वाले कई अधिवक्तागण, पत्रकार व एक्टविस्ट को महीनों तक जेल में रखा गया है। जैसे यह रिपोर्ट पढिये —
जाकिर अली त्यागी twocircles.net के लिए
“सत्ता की आलोचना करना हमारा अधिकार है, और अधिकार हमें हमारे संविधान ने दिया है, जब आलोचना को सरकार सहन नही कर पाती तो उसकी आलोचना को धर्म से जोड़ गिरफ्तार करने की कोशिश करती है,और ऐसे हालात बना देती है कि मॉब लिंचिंग आसानी से हो जाये,ऐसा ही मेरे साथ हुआ, मेरे घर पर दो बार बीजेपी कार्यकर्ताओं ने हमला किया, मेरे खिलाफ नारे लगाये, उनको गिरफ्तार करने की बजाय पुलिस ने मेरे ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज कर दी, लेकिन मैं डरने वाली नही हूँ, क्योंकि मैं खुद एक वकील हूँ,मैं मज़बूती से अपनी टीम के साथ खुद का केस लड़ूंगी,ज़रूरत पड़ी तो हाइकोर्ट जाऊंगी,सुप्रीम कोर्ट जाऊंगी,मैं बिल्कुल भी अन्याय पसंद नही करती हूँ चाहे वह मेरे साथ हो या आम नागरिक के, मैं इस देश की नागरिक हूँ, एफआईआर दर्ज कर मेरा मुँह बंद नही कराया जा सकता,ज़बान पर ताला नही लगाया जा सकता, सत्ता अपने विरोधियों, आलोचकों को पूरी तरह कुचलने की कोशिश कर रही है परंतु हर कोशिश नाकाम हो रही है” । यह हाल ही में जमानत पाई दीपिका राजावत कह रही है ।
बता दें दीपिका सिंह राजावत कठुआ में आसिफ़ा रेप केस में वकील रही,उन्होंने हाल में नवरात्रि के दिन एक कार्टून ट्वीट किया, जिसको बीजेपी आईटी सेल व बीजेपी के नेताओं ने दीपिका राजावत पर कार्रवाई की मांग करते हुए ट्विटर पर उनकी गिरफ्तारी की मांग के लिए कैम्पेन चलाया,यहां तक दीपिका के घर पर बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन करते हुए “दीपिका तेरी कब्र खुदेगी जम्मू कश्मीर की धरती पर” नारे लगाये ,25 अक्टूबर को दीपिका राजावत पर जम्मू के गांधीनगर थाने में आईपीसी की धारा,294,295A,505B जैसी संगीन धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई।
कार्टूनिस्ट व इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आईएसी) कार्यकर्ता असीम त्रिवेदी ने मुंबई में एक आंदोलन में हिस्सा लेने अपनी वेबसाइट पर संसद की तुलना शौचालय से करते हुए कार्टून लगाया असीम को 12 सितंबर 2012 में मुम्बई पुलिस ने असीम को गिरफ्तार किया,देशद्रोह (124a) व साइबर अपराध को रोकने के लिए बने कानून की धारा 66a व अन्य धाराओं में मुक़दमा दर्ज कर जेल भेज दिया, बाद में मुम्बई पुलिस ने देशद्रोह की धारा हटाई तो असीम को 16 सितंबर को ज़मानत मिली, लेकिन असीम ने जेल से रिहा होने से इनकार कर दिया।
असीम त्रिवेदी कहते हैं कि “मैं अभी भी मुंबई की बांद्रा अदालत में तारीख लगाने जाता हूँ, मुझसे उसी दौरान माफ़ी मांगने के लिए कहा गया लेकिन मैने माफी नही मांगी क्योंकि मैंने कोई गलत कार्टून नही बनाया था,आलोचना हमारा अधिकार है जिसको सरकारे छीनने की कोशिश करती रही लेकिन छीन नही सकेगी “।
ऐसा ही मामला बहराइच के हारून खान का भी है 23 नवंबर 2108 को हारून में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की आलोचना की जिसकी वजह से उन्हें जेल में भेज दिया गया। हारून खान कहते है ” एक ख़ास विचार धारा के लोगो ने मुझे फेसबुक पर पहले काफी डराया धमकाया मैंने फेसबुक पर एक व्यक्ति की पोस्ट के कमेंट में “दोगलेनाथ” कहा था, फिर बहराइच पुलिस ने अरेस्ट कर लिया और 7 दिनों तक जेल में संघर्ष करने के बाद आखिरकार जमानत मिल गई।
पत्रकार प्रशांत कनोजिया भी अब जमानत पर लौट आएं है। 18 अगस्त को लखनऊ पुलिस ने उनके दिल्ली आवास से उन्हें गिरफ्तार किया था। प्रशांत पर आरोप था कि उन्होंने राम मन्दिर निर्माण पर व आपत्तिजनक जातिगत टिप्पणियां की है, लखनऊ पुलिस ने प्रशांत को जेल भेज दिया, प्रशांत कनोजिया को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 21 अक्टूबर को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।
सरकार की आलोचना करने पर तमाम गिरफ्तारियों व NSA, गैंगस्टर एक्ट तथा देशद्रोह जैसे कानून के ग़लत इस्तेमाल होने पर हमने सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता व ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट अमित श्रीवास्तव से बात की तो उन्होंने कहा कि” ये सच है कि आलोचना का अधिकार देश का संविधान देता है लेकिन कभी कभी आलोचना जुर्म बन जाती है,सोशल मीडिया हो या जमीनी प्रदर्शन,सरकार अपने विरुद्ध उठने वाली आवाज़ को दबाती रही है, लेकिन कभी कभी कुछ लोग असंवैधानिक भाषा मे आलोचना करते है तो उनकी गिरफ्तारी तय है लेकिन हमने इन कुछ वर्षो में देखा है कि सरकार ने संसदीय भाषा का इस्तेमाल करने वाले आलोचकों को भी गिरफ्तार कर जेलों में डाल रही है जो कि भारतीय लोकतंत्र के लिए किसी खतरे से कम नही,यदि लोकतांत्रिक व्यवस्था को ना संभाला गया तो वो दिन दूर नही जब लोकतंत्र बचेगा ही नही।।
यूपी से रिटायर्ड आईजी एस०आर दारापुरी बताते हैं कि “सत्ता के नशे में चूर सरकार ने NRC,CAA के विरुद्ध प्रोटेस्ट करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओ पर गुंडा एक्ट NSA जैसा खतरनाक कानून का इस्तेमाल कर रही है, सोशल मीडिया पर आलोचना करने वालो पर तो देशद्रोह तक इस्तेमाल किया,हालांकि आलोचना जुर्म नही लेकिन यदि सरकार में बैठे लोग आलोचना को जुर्म मानते है यदि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है तो इंडियन पैनल कोड में ऐसे अपराधों को रोकने के लिए बहुत धाराएं है लेकिन सरकारें रासुका लगाना देशद्रोह जैसे कानून का दुरुपयोग नही करना चाहिए !, यह डेमोक्रेसी के लिए किसी ख़तरे से कम नही, अदालत भी सरकार व पुलिस के जुल्म व और कानून के ग़लत इस्तेमाल करने पर आंखे मूंद कर बैठी है, मूर्क़दर्शक बन तमाशा देख रही है।
मशहूर शायर मुनव्वर राना की बेटी व सामाजिक कार्यकर्ता सुमैय्या राना का कहती है कि ” मेरे ख़िलाफ़ भी लखनऊ पुलिस ने संपत्ति कुर्क करने के पोस्टर चौराहों पर लगाये,सरकार सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर डराना चाहती है उनके ख़िलाफ़ संगीन मुक़दमे दर्ज कर करके उनको खौफजदा करना चाहती है सरकार नही जानती है कि असली क्रांतिकारी एक्टिविस्ट है, वह डरपोक नही होता है लेकिन एक्टिविस्ट को समर्थन करने वाली भीड़ के विरुद्ध केस किये जा रहे है, जो लोग एक्टिविस्ट को सुनते है पढ़ते है या उनका किसी भी तरह से समर्थन करते है उन पर भी मुक़दमे दर्ज किए जा रहे है लेकिन यह मामला महज़ भारत की जनता का ही नही, सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी व आलोचना करने वाले हर एक व्यक्ति की गिरफ्तारी करने पर विदेशों में भी सरकार की आलोचना की जा रही है,हाल ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी भारत के गृह मंत्रालय की कार्रवाई पर चिंता व्यक्त की है!
( जाकिर अली त्यागी प्रशिक्षु पत्रकार है।)