बदल गई चंबल की सूरत ,अब बन रहा है पर्यटन केंद्र

आकिल हुसैन। Twocircles.net

कभी डाकुओं की पनाहगाह रही चंबल घाटी अब टूरिज्म का हब बन गई हैं। ऐसा भी कहा जाता हैं कि हिंदी सिनेमा ने हमेशा चंबल को ‌गलत प्रारूप में दिखाया हैं जिससे आमजन में चंबल का नाम सुनकर डाकुओं का ही जिक्र आता हैं बल्कि चंबल बागियों और क्रांतिकारियों की ज़मीन रहीं हैं। डेढ़ दशक पहले तक खौफ का पर्याय रही चंबल घाटी में आज पर्यटन की उम्मीद जगा रही है। डर और दहशत के पर्याय रहे चंबल के बीहड़ हमेशा से लुभाते रहे हैं मगर दस्यु दलों के खौफ से लोग इसमें कदम रखते कांपते थे। लेकिन आज यहीं चंबल के बीहड़ पर्यटकों को अपनी तरफ़ लुभा रहें हैं।


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चंबल घाटी के बीहड़ इलाकों ‌को पर्यटन स्थल में तब्दील करने और चंबल में पर्यटन को बढ़ावा देने में चंबल फाउंडेशन का अहम रोल हैं। कभी डर और दहशत का केंद्र रही चंबल को चंबल फाउंडेशन टूरिज्म के रूप में विकसित कर रहा है।‌ चंबल फाउंडेशन के संयोजक सामाजिक कार्यकर्ता शाह आलम ने Twocircles.net से बात करते हुए बताया कि,’चंबल फाउंडेशन द्वारा चंबल टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है जिससे चंबल घाटी विकसित हो सके और डकैतों के पनाह का दंश चंबल से दूर हो सके’।

चंबल टूरिज्म के संयोजक शाह आलम बताते हैं कि सबसे पहले उन्होंने चंबल घाटी की साईकिल यात्रा कर चंबल नदी के विविध पहलुओं पर अध्ययन किया था। वे बताते है कि वर्तमान में भी चंबल में धौलपुर की तरफ़ एक 20 लाख का इनामी डाकू अभी भी मौजूद हैं। शाह आलम बताते हैं कि चंबल घाटी में अनेक अजूबा धरोहरों मौजूद हैं और इस घाटी में अनेक तरह के रहस्य भी छिपे हुए हैं।

चंबल टूरिज्म के संयोजक शाह आलम ने Two Circles.net से बताया कि चंबल घाटी में 170 से भी ज्यादा जड़ी बूटियां मौजूद हैं जिनको चिह्नित कर लिया गया है। वे बताते हैं कि चंबल में 320 प्रकार के पक्षियों की प्रजातियां भी चिह्नित की गई हैं। इनमें कई ऐसे पक्षी भी हैं जो दुर्लभ श्रेणियों में हैं। विदेशी पक्षियों में साइबेरिया से पिनटेल डक, शोवलर, डक, कामनटील, डेल चिक, मेलर्ड, पेचर्ड, गारगेनी टेल तो उत्तर-पूर्व और मध्य एशिया से पोचर्ड, कामन सैंड पाइपर के साथ-साथ फ्लेमिंगो भी चंबल घाटी में मौजूद हैं। इसके अलावा ब्लैक बेलिएड टर्नस, सारस, क्रेन, स्ट्रॉक पक्षी चंबल नदी में कलरव करते हुए दिखाई पड़ते हैं।

चंबल नदी आज ऐसे जलचरों का आवास बन गई हैं जिन प्राणियों को विलुप्त श्रेणी में दर्ज किया गया है। कई जलचर तो ऐसे है जो सिर्फ इसी नदी में पाए जाते हैं। आठ प्रजाति के कछुआ भी यही पाएं जाते हैं जिनमें ढोंगेंका, टेटोरिया, ट्राइनेस, लेसीमान पंटाटा, चित्रा एंडका और इंडेजर, ओट्टर शामिल हैं। यह आठ किस्म के कछुए यहां देखने को मिलते हैं, जो दुर्लभ प्रजाति के हैं। इटावा के सहसो इलाके में इन्हें आसानी से देखा जा सकता है।

शाह आलम बताते हैं कि चंबल नदी में दुनियां के 80 फीसद घड़ियालो का बसेरा है। भिंड में बड़े पैमाने पर घड़ियाल चंबल तटों पर दिखाई देते हैं। डॉल्फिन और मगरमच्छ आगरा के पिनाहट तट में भी दिखते हैं। मुरैना में डॉल्फिन पॉइंट भी है। मुरैना तट के देवरी में घड़ियाल, मगरमच्छ और कछुए की हेचरी भी है। सहसो डाल्फिन सेंटर में दूरबीन से घड़ियाल, कछुआ और डाल्फिनों के नजारे देखे जा सकते हैं। इसके अलावा इटावा चंबल तट पर चंबल वैली बर्ड वाचिंग एंड क्रोकोडाइल रिसर्च सेंटर भी मौजूद है जहां से रोमांचक नजारे देखे जा सकते हैं। इन सबके अलावा चंबल के पचनद तट पर पांच नदियों का संगम भी होता हैं,अगर पचनद तट पर संगम न हो तो यमुना इलाहाबाद जाते जाते सूख जाएगी। चंबल का पानी एकदम साफ और गंधहीन है और चंबल पानी आज भी पीने योग्य है। चंबल के पानी की संरचना डाल्फिन, घड़ियाल जैसे जलीय जीवों के साथ साइबेरियन पक्षियों को भा रही है जिससे चंबल इन सब जीवियों का शरणस्थल बनत गया है।

चंबल में ऐतिहासिक तौर पर भी कई ऐसी चीजें मौजूद हैं जो रहस्य और कौतूहल का विषय हैं। शाह आलम बताते हैं कि इटावा शहर से 9 किलोमीटर दूर चंबल घाटी की तरफ़ पिलुआ हनुमान मंदिर हैं। मंदिर में स्थापित हनुमान जी दक्षिण की तरफ मुंह करके लेटे हैं। मूर्ति के मुंह में जितना भी प्रसाद के रूप में लड्डू और दूध चढ़ाया जाता है वह कहां गायब हो जाता है, इसके बारे में आजतक कोई पता नहीं लगा पाया है, यह एक रहस्य का विषय हैं। जबकि लोगों की मान्यता यह है कि मंदिर में स्थापित हनुमान जी की मूर्ति प्रसाद खाती है।

शाह आलम बताते हैं कि इसके अलावा बाबा जयगुरुदेव के जन्मस्थान के पास एक ताजमहल जैसी हूबहू इमारत हैं जो ताजमहल को टक्कर देती हैं। शाह आलम बताते हैं कि दिल्ली स्थित संसद भवन की डिजाइन पर एक इमारत चंबल में भी मौजूद हैं जो लगभग 1200 साल पुरानी इमारत हैं। और यह सब इमारतें अपने आप में रहस्य का विषय है। चंबल में एक 800 साल पुरानी चुगलखोर का मक़बरा हैं । जहां पुराने ज़माने से जूते मारने की परंपरा हैं। चंबल में सबसे बड़ी मंदिरों की श्रृंखला भी मौजूद हैं जिसका नाम बटेश्वरा मंदिर हैं जो मुरैना तट पर स्थित है।

शाह आलम बताते हैं इन सबके अलावा भी चंबल घाटी में एडवेंचर के साथ ऐतिहासिक और प्राकृतिक साइट्स की भरमार है। चंबल में घुमावदार घाटी, मिट्टी के पहाड़ और रेतीले किनारे जैसे प्राकृतिक सौंदर्य की भरमार हैं जहां का वातावरण भी शांत और सुकून भरा हैं। चंबल घाटी में बागियों के ठिकाने भी मौजूद हैं जो देखने लायक हैं। इसके अलावा चंबल में कैंपिंग, कैम्प फायर, हाईकिंग एंड बोटिंग के भी इंतजाम हैं। इन सबके अलावा चंबल में सफ़ारी की भी व्यवस्था हैं। इटावा से 8 किमी पर एक गांव हैं जहां हर घर में ऊंट हैं तो ऊंट से भी घूमा जा सकता है‌ और सफ़ारी भी करी जा सकतीं हैं। रात्रि विश्राम के लिए भी नदी के रेतीले किनारों पर कैंप की व्यवस्था भी हैं जो एकदम सुरक्षित है। चंबल किनारे खेती किसानी की हरियाली से चंबल घाटी और बीहडाें का लुक मनोरम लगने लगता है।

चंबल टूरिज्म के संयोजक शाह आलम बताते हैं कि इन तमाम सांस्कृतिक, प्राकृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों की ब्रांडिग करके सैलानियों को आकर्षित किया जा रहा हैं। शाह आलम बताते हैं कि चंबल में टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए चंबल हेरिटेज वाक, चंबल मैराथन, चंबल यूथ फेस्टिवल, चंबल लिटरेरी फेस्टिवल, चंबल जनसंसद, चंबल दीप पर्व, चंबल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल जैसे कार्यक्रमों का भी आयोजन चंबल घाटी में करवाया जा रहा है। शाह आलम कहते हैं कि चंबल टूरिज्म से हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा और बीहड़ में खुशहाली आएगी और डकैतों के नाम से बदनाम चंबल घाटी में बदलाव की इबारत लिखी जा सके। शाह आलम बताते हैं कि सेना में सबसे ज्यादा लोग चंबल रीज़न से हैं। चंबल रीज़न के लोगों में बलिदान की भावना होती हैं।

सरसों के पीले फूलों से सजी चंबल की घाटी, चंबल की वादियों में मिट्टी के पहाड़, हरियाली से लदे चंबल के खेत खलिहान, डाल्फिनो की अंगड़ाई , विभिन्न पक्षियों का कलरव, घड़ियालों की मौज-मस्ती, कछुओं का तैरना, स्वच्छ पानी की आवाज़, बागियों के ठिकाने, किले, मंदिर समेत कई प्राकृतिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर चंबल अपने में समेट कर सैलानियों को अपनी ओर ध्यान खींच रहा है।

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