त्रासदी : हसन अली ने दिया चितरंजन को कंधा तो यूनुस ने निभाई परिवार के साथ अनुभव के अंतिम संस्कार की रस्म !

आसमोहम्मद कैफ।Twocircles.net

राजीव चौधरी अपने परिवार के साथ बिजनोर जनपद के किरतपुर कस्बे में रहते हैं। 23 अप्रैल को उनके छोटे भाई चितरंजन चौधरी (46) का निधन हो गया। इस अस्पताल उस अस्पताल दौड़ते हुए भी वो अपने भाई को बचा नही पाए। राजीव बताते हैं कि उसे पहले किरतपुर के ही एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था तब उसके लंग्स में इंफेक्शन था। मगर उसकी तबियत बिगड़ने के बाद अस्पताल ने हाथ खड़े कर दिया और उसे कोविड होने का संदेह जताया,हालांकि इसकी उन्होंने आधिकारिक पुष्टि नही की,हम जो दौड़ भाग कर सकते थे हमने की भी,मगर कुछ नही हुआ,एक बैग में बंद करके मेरा भाई हमें सौंप दिया गया।


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राजीव चौधरी कहते हैं कि ” इस समय उन्होंने खुद को बहुत असहाय महसूस किया और इस मुश्किल समय मे जब वो अपने भाई का अंतिम संस्कार कर रहे थे तो उन्होंने अपने कंधे पर एक हाथ के दबाव को महसूस किया। यह हाथ मेरे दोस्त हसन का था। गंगा बैराज पर अपने भाई की चिता के पास सिर्फ मैं और हसन खड़े थे। मेरे बुज़ुर्ग पिता और भतीजा कुछ दूरी पर थे। कुछ करीबी रिश्तेदार सीधे वहीं पहुंचे थे वो और भी अधिक दूर थे। हसन बिल्कुल मेरे करीब थे,वो अंतिम संस्कार में पूरी तरह शामिल थे। चिता के बिल्कुल करीब मेरे साथ। हसन ने वो सब कुछ किया जो मैं अपने भाई के लिए कर रहा था। उसने मुझसे कहा कि राजीव मैं हर मुश्किल में तुम्हारे साथ हूँ।”

हसन अली और राजीव चौधरी …

राजीव बताते हैं कि कोई नफ़रत इस मुल्क में हसन और राजीव को बांट नही सकती। हम सब समझते हैं। आज राजीव चौधरी संकट में था तो हसन अली उसके साथ खड़ा था। हसन अली बिजनोर के काजीपाड़ा के रहने वाले हैं वो बताते हैं कि राजीव उनके दोस्त है और यह कठिन समय था,अब अगर इस कठिन समय मे भी उनके साथ खड़ा ना रहता तो मेरी दोस्ती पर लानत थी। मौत तो एक दिन सबकी आनी है मगर इस संकट में हमें एक दूसरे का साथ नही छोड़ना है।

Pic credit /nadir

देशभर में कोविड वायरस के इस दूसरे हमले से तबाही मची हुई है। शमशान से लेकर कब्रिस्तान तक लोगों की भीड़ दिखाई देती है। इस समय सरकारें जहां ऑक्सीजन के संकट को लेकर आलोचनाओं के घेरे में है। वहीं गैर कोविड मरीजों की भी अस्पताल में इलाज न मिलने से मौत हो रही है। सरकारी आंकड़े यथार्थ से एकदम जुदा है और हर तरफ बुरी खबरों का जमावड़ा है। ऐसे समय मे कई सगे संबधी,परिवार और रिश्तेदारों ने मर्तक से दूरी बना रहे हैं तब इंसानियत के नाते अलग मज़हब के लोगों ने नफरत को सबक सिखाते हुए मोहब्बत की अदुभुत मिसाल पेश की है। कई जगह से ऐसी खबरें आई है जहां खासकर मुस्लिम समुदाय से आये लोगों ने हिन्दू मर्तक का अंतिम संस्कार करने में अग्रणी भूमिका निभाई है।

लखनऊ के कांग्रेस नेता तारिक़ सिद्दीकी बताते हैं कि आपको देश भर से ऐसी खबरें मिल रही होगी। उन्होंने खुद यह देख लिया है। सोमवार को उनके शहर में ही एक महिला माया देवी का देहांत हो गया और उनके बेटा और बहू दोनों एडमिट है। अब उनकी अर्थी को कंधे देने वाले भी नही थे।तो जीशान, मेहंदी और आबिद रज़ा ने न केवल उन्हें कंधा दिया बल्कि माया देवी की धार्मिक आस्था के अनुसार अंतिम संस्कार भी कराया। pic credit /nadir

मुजफ्फरनगर के नादिर राणा बताते हैं कि ऐसी ही एक घटना यहाँ हुई जिसमें आपसी भाईचारे और प्रेम की अद्भुत मिसाल देखने को मिली। नादिर बताते हैं कि यहाँ अनुभव शर्मा नाम के एक युवक की मौत हो गई वो डेयरी की दुकान चलाते थे। वैसे तो उनकी रिपोर्ट भी कोविड नेगेटिव थी तो भी परिवार के पांच लोगों को ही अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति मिली। अनुभव की दुकान पर उनके साथ मोहम्मद यूनुस भी काम करते थे। अनुभव शर्मा से मोहम्मद यूनुस की काफी आत्मीयता थी। मोहम्मद यूनुस ने अनुभव की अंतिम यात्रा में परिवार के साथ साथ पूरा समर्पण दिया और चिता की अग्नि से लेकर सभी जरूरी कार्य पूरे किया। नादिर बताते हैं कि मोहम्मद यूनुस बताते हैं कि अनुभव शर्मा उनके भाई की तरह थे, वो अपने दीन(धर्म) पर है और मैं अपने दीन पर। मगर दिल का रिश्ता इससे भी बड़ा होता है। मैंने वो ही किया जो मेरे दिल ने गवाही दी।

मेरठ में हिन्दू महिला की अर्थी को कंधा देते हुए मुस्लिम समाज के लोग

इससे पहले इंदौर और अलवर में ऐसा ही हुआ। दिल्ली के दंगाग्रस्त इलाके में भी कई अर्थियो को मुस्लिमों द्वारा कंधे दिए जाने के मामले सामने आए। अपना भाई खो चुके राजीव चौधरी बताते हैं कि घृणा पैदा तो राजनीति करती है। हम कभी एक दूसरे से दूर थे ही नही, अब जब लोगों को ऐसा लग रहा है कि अंतिम समय सभी का आना है तो वो हर बंधन तोड़कर एक दूसरे की मदद कर रहे हैं। संकट बहुत बहुत बड़ा है और हमें एक दूसरे की सहायता करनी ही चाहिए।

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