नौकरशाही में लेटरल एंट्री की तैयारी की सुगबुगाहट से बेचैनी

कथित तौर पर चोर दरवाजे से हो रही लेटलर एंट्री पर राजनीतिक दलों ने विरोध भी शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया पर दलित चिंतक प्रोफेसर दिलीप मंडल के आवाज मुखर किये जाने के बाद अब दिल्ली सरकार के मंत्री राजेन्द्र कुमार गौतम ने कहा है कि वो जल्दी ही इसके विरोध में आंदोलन करने वाले हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव सहित कई बड़े दलों ने इसे गलत बताया है। किसान आंदोलन से जूझ रही केंद्र सरकार के लिए विरोध की नई आवाजें अच्छी नही है। यह रिपोर्ट पढिये

तन्वी सुमन । Twocircles.net


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केंद्रीय नौकरशाही के हिस्से में लैटरल एंट्री (भारतीय प्रशासनिक सेवा से इतर के अधिकारियों की एंट्री) की इजाजत देने के केंद्र सरकार के फैसले ने एक जटिल बहस को फिर से सुलगा दिया है, जिस पर कम से कम दो दशकों से जब-तब चर्चा होती रही है। संघ लोक सेवा आयोग ( यूपीएससी ) ने एक बार फिर लेटरल एंट्री से जॉइन्ट सेक्रेटरी स्तर के पदों की भर्ती निकली है। यूपीएससी ने विभिन्न सरकारी विभागों में 3 जॉइन्ट सेक्रेटरी और 27 डायरेक्टर लेवल के कुल 30 पदों के लिए आवेदन मांगी है। इस भर्ती से प्राइवेट सेक्टर के 30 और विशेषज्ञों को सीधे नियुक्त किया जाएगा।

यह चर्चा भारत सरकार द्वारा एक पायलट परियोजना के तहत ज्वाइंट सेक्रेटरी के पदों के लिए रिक्तियां निकाले जाने के बाद हुई हैं। ये भर्तियां तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर होंगी, जिसे प्रदर्शन को देखते हुए बढ़ाकर 5 साल भी किया जा सकता है। इसके लिए उम्मीदवारों की उम्र 40 साल से ज्यादा होना चाहिए और उनके पास कम से कम पीएचडी की डिग्री होनी चाहिए। विभिन्न मंत्रालयों में निकली जॉइन्ट सेक्रेटरी व डायरेक्टर पद के लिए आवेदन की अंतिम तारीख 22 मार्च 2021 तक है।

2014 में जनता के द्वारा चुने जाने के फौरन बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने जो कुछ शुरुआती बैठकें की थीं, उनमें से एक सिविल सेवा में लैटरल एंट्री के जरिए विशेषज्ञों की भर्ती का रास्ता निकालने को लेकर थीं। प्रधानमंत्री ने विभिन्न मंत्रालयों के सचिव को ज्वाइंट सेक्रेटरी के स्तर पर अकादमिक जगत और निजी क्षेत्र से नौकरशाहों के लैटरल एंट्री के लिए प्रस्ताव तैयार करने के लिए कहा था।  लेकिन, इस दिशा में अगले तीन वर्षों में कोई प्रगति नहीं हुई, जिसका कारण यह था कि इस दिशा में कोई गंभीर प्रस्ताव नहीं आया।

सबसे पहले यह जानते हैं कि आखिरकार किस प्रकार लेटरल एंट्री आरक्षण नीति को लेकर कुछ जरूरी सवाल उठाता है। जब चयन प्रक्रिया सरकार के हाथ में हो तब यह सवाल करना बहुत अहम हो जाता है कि भर्ती किए जाने वाले लोग ‘गुटबाजी की प्रवृत्तियों’ से मुक्त हैं या नहीं।

बहुत से वरिष्ठ पदों से सेवानिवृत्त आई एस अधिकारी इस चयन प्रक्रिया को थोड़ा संदेह के साथ देखते हैं। आए दिन इसे लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ रहा। समाज में कई लोगों ने इस मुद्दे को उठाया है कि लैटरल एंट्री की प्रणाली अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की नीति के तहत काम नहीं करेगी और यह संविधान के खिलाफ भी होगा।

पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी बीके चतुर्वेदी ने ने एक मीडिया समूह से कहा है , “जब तक वे उच्च विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में ठेके के तहत विशेषज्ञों की नियुक्ति कर रहे हैं, तब तक आरक्षण का सवाल उस तरह से नहीं उठेगा। लेकिन, अगर बड़े पैमाने पर लैटरल एंट्री की शुरुआत होती है, तो यह सही नहीं होगा और यह वर्तमान सिविल सेवा प्रणाली को नष्ट करके छोड़ेगा। अगर वे बड़े पैमाने पर इस तरह की भर्तियां करेंगे, तो आरक्षण को ध्यान में रखना ही होगा।“

2017 में जब बीजेपी सरकार ने लेटरल एंट्री की पहले भर्ती निकाली थी उस वक़्त CPI(M) के लीडर सीताराम येचुरी ने अपने ट्वीट में कहा था कि लेटरल एंट्री यूपीएससी और SSC जैसी संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश है। उन्होंने यह भी कहा कि लेटरल एंट्री एससी /एसटी लोगों को उन अधिकारों से वंचित रखता है जिसके द्वारा संविधान के अनुसार सरकारी नौकरियों में उन्हें आरक्षण मिलता है।

द बिजनेस इन्साइडर की एक रिपोर्ट में राज्य सभा के आंकड़ों से पता चलता है-

  • भारत सरकार के कुल 457 सेवारत सचिवों, संयुक्त सचिवों और अतिरिक्त सचिवों में से, केवल 12% अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और ओबीसी हैं।

  • इन सचिवों में से अधिकांश भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) से हैं। हालांकि, अधिकारियों के चयन के समय आरक्षण लागू नहीं होता है।

  • सरकार ओबीसी को 25.7% आरक्षण, एससी को 15% और सरकारी नौकरियों में एसटीएस को 7.5% आरक्षण देती है।

सोर्स: https://www.businessinsider.in/india/news/social-justice-data-shows-indian-government-doesnt-walk-the-talk-on-reservations/amp_articleshow/74223976.cms

एक अन्य रिपोर्ट में भी कुछ आंकड़ों को जारी किया गया है-

सरकारी डेटा के मुताबिक, केंद्र में तैनात 89 सचिवों में से केवल एक एससी और तीन एसटी के हैं। मिनिस्ट्री ऑफ पर्सनल, पब्लिक ग्रीवेंसए एण्ड पेंशन के आंकड़ों के अनुसार, कोई भी सचिव अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित नहीं है। जबकि, अधिकांश सचिव भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) से हैं।

केंद्र सरकार के मंत्रालयों में SC / ST / OBC अधिकारियों का प्रतिनिधित्व के आँकड़ें भी कुछ इस प्रकार हैं। केंद्र सरकार के मंत्रालयों में 93 अतिरिक्त सचिव के पद पर  सिर्फ छह एससी हैं और पांच एसटी हैं, जबकि इस रैंक के ओबीसी भी नहीं हैं।

275 संयुक्त सचिवों में 13 एससी, नौ एसटी और 19 ओबीसी श्रेणी के हैं। 1993 में मण्डल आयोग के लागू हो जाने के बाद से ही मंत्रालय ओबीसी अधिकारियों का आंकड़ा रखता है। मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद से, सरकार ने सरकारी नौकरियों में ओबीसी के लिए 27.5 प्रतिशत, एससी के लिए 15 प्रतिशत और एसटी के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य कर दिया है।

इन आंकड़ों को देख कर ही अनुमान लगाया जा सकता है कि किस प्रकार सरकारी नौकरी में आरक्षण के बावजूद उच्च पदों पर वंचित तबकों का प्रतिनिधि लगभग ना के बराबर है। अब यहाँ सवाल यह उठता है की इन हालात में लेटरल एंट्री के जरिए प्राइवेट लोगों को प्रशासनिक सेवा में भर्ती देना किस प्रकार वंचित तबकों को और भी ज्यादा हाशिये पर ला खड़ा कर देता है।

प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रहे नीरज कुमार ने Twocircles.net से बातचीत के दौरान बताया कि किस प्रकार लेटरल एंट्री के द्वारा भर्ती एससी /एसटी और ओबीसी को और भी ज्यादा हाशिये  पर ले जाएगी। उन्होंने बताया की जब सरकारी नौकरी में डायरेक्ट रीक्रूट्मन्ट में मण्डल आयोग के अनुसार आरक्षण देना अनिवार्य है तो निजी क्षेत्र के लिए दरवाजा खोलना यूपीएससी प्रणाली को नजरंदाज करने जैसा है। यह दलितों और ओबीसी को सिस्टम से दूरी बनाने पर मजबूर करने जैसा है।

कथित तौर पर चोर दरवाजे से हो रही इस लेटर एंट्री पर राजनीतिक दलों ने विरोध भी शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया पर दलित चिंतक प्रोफेसर दिलीप मंडल के आवाज मुखर किये जाने के बाद अब दिल्ली सरकार के मंत्री राजेन्द्र कुमार गौतम ने कहा कि वो जल्दी ही इसके विरोध में आंदोलन शुर करने वाले हैं। उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव सहित कई बड़े दलों ने इसे गलत बताया है।

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