आकिल हुसैन । Twocircles.net
फतेहपुर : उत्तर प्रदेश पिछड़े डेढ़ महीने से कोरोना की दूसरी लहर के विकराल रूप से गुजर रहा है। कोरोना की दूसरी लहर ने उत्तर प्रदेश में तबाही मचा रख दी। औसतन हर दिन कोरोना संक्रमण से कई हज़ार मौतें प्रदेश में हुईं। लोगों ने आक्सीजन की किल्लत, अस्पताल में इलाज़ न मिलने और दवाओं के अभाव में अपनी जान गंवाई।
एक तरफ़ कुछ लोगों ने तमाम मेडिकल संसाधन होने के बावजूद दम तोड़ा तो वहीं दूसरी तरफ़ बड़ा तबका ऐसा भी हैं जिसने तमाम मेडिकल संसाधनों के अभाव में जान गंवाई। Two circles.net ने उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में कुछ ऐसे गरीब परिवारों से बात की जिन्होंने कोविड की दूसरी लहर में किसी अपने को खोया हैं।
शहर के पीरनपुर इलाके में बिरयानी बेचकर गुज़र करने वाले मोहम्मद रियाज़ के पिता नूर मोहम्मद की रमज़ान के दौरान आक्सीजन के अभाव में मृत्यु हो गई थी। रियाज़ Two circles.net से बात करते हुए बताते हैं कि उनके पिता नूर मोहम्मद एकदम सही थे , उन्हें कोई बीमारी नहीं थी। वे बताते हैं कि एक दिन उनके पिता को बुखार आया तो दवा लाकर दे दी गई जिससे बुखार उतर गया, परंतु बुखार बना रहा कभी उतर गया तो कभी चढ़ गया।
रियाज़ कहते हैं कि दवा दो चार दिन चलती रही, वो सही हो गए लेकिन खांसी और जकड़न बनी रही। फिर इसी बीच एक दिन शाम में उनके पिता ने बताया कि सांस लेने में दिक्कत हो रही है तो पास के ही एक डाक्टर को दिखाया तो उसने इन्हें आक्सीजन पर रखने की जरूरत बताई। रियाज़ बताते हैं कि इसी बीच उनको लेकर अस्पताल गए लेकिन भर्ती करने से मना कर दिया गया , अस्पताल में कहा गया कि बेड खाली नहीं है।
रियाज़ बताते हैं कि काफ़ी बिगड़ती हालत में उन्हें घर ले आए और आक्सीजन ढूंढने लगे , काफ़ी ढूंढने के बाद आक्सीजन सिलेंडर मिला तो पर इतने पैसे न होने के कारण उसे काफ़ी कोशिश करने के बावजूद खरीद न सके। रियाज़ बताते हैं कि आक्सीजन वाले के पास जाकर उन्होंने काफी मिन्नतें की कि वो आक्सीजन सिलेंडर उन्हें दे दे बहुत ज़्यादा ज़रूरत है लेकिन उसने नहीं दिया। रियाज़ कहते हैं कि देर रात लगभग तीन बजें उनके पिता की आक्सीजन के अभाव में मृत्यु हो गई।
रियाज़ बताते हैं कि उनको मिलाकर पांच भाई हैं। वे बिरयानी बेचकर अपने परिवार का गुजारा करते हैं और कभी कभी दूसरी जगह जाकर भी बिरयानी बना देते है,ऐसे उनके परिवार का गुजारा होता है। रियाज़ बताते हैं कि उनके पिता नूर मोहम्मद की उम्र लगभग 67 साल थी। रियाज़ के अनुसार उनके पिता की मृत्यु 6 दिन के अंदर हो गई। रियाज़ यह भी कहते हैं कि उनके पिता एकदम स्वस्थ थे, उन्हें भी सिर्फ बुखार आया था।
55 वर्षीय हाफ़िज़ इमरान का भी कोविड की दूसरी लहर के दौरान मृत्यु हुई। हाफ़िज़ इमरान पेशे से हाफ़िज़ थे, मस्जिद में इमाम के तौर पर थे और अपने घर के बाहर परचून की छोटी सी दुकान लगातें थे। इमरान के 4 बच्चे हैं जिसमें दो लड़के तो दो लड़कियां भी हैं। मरहूम इमरान का सबसे बड़ा बेटा मोहम्मद हारुन 21 साल का है जो कानपुर विश्वविद्यालय के एक कालेज से बीएससी की पढ़ाई कर रहा है। घर में हारुन की अम्मी के अलावा कोई समझदार नहीं है जो परिवार को संभाल सके, हारुन के बाकि भाई बहन अभी छोटे हैं जो पढ़ाई कर रहे हैं।
मरहूम इमरान के बेटे हारुन ने Twocircles.net से बात करते हुए बताया कि उनके पिता शारिरिक तौर पर एकदम फिट थे और उनका स्वास्थ्य भी सही था पहले से कोई बीमारी नहीं थी। हारुन बताते हैं कि एक दिन अचानक सुबह उन्हें बुखार आया तो पास के मेडिकल स्टोर से दवा लाकर दे दी। बुखार हल्का हो गया लेकिन फिर शाम में चढ़ आया और सांस लेने में भी तकलीफ़ होने लगीं।
हारुन बताते हैं कि सांस लेने में तकलीफ़ की शिकायत के बाद वे अपने पिता को सरकारी अस्पताल ले गए , लेकिन भर्ती करने से डाक्टरों ने मना कर दिया। हारुन बताते हैं कि काफ़ी कोशिश करने के बावजूद भर्ती नहीं करा गया। फिर उन्हें घर ले आए। एक डाक्टर ने हारुन को बताया कि उसके पिता को आक्सीजन की जरूरत हैं। हारुन बताते हैं कि घर मे सबसे बड़े वहीं हैं तो उन्होंने आक्सीजन के लिए आक्सीजन सिलेंडर का काम करने वालों के पास संपर्क किया तो उन्होंने पहले कहा कि अधिकारी से लिखवा कर लाओ तभी देंगे।
हारुन बताते हैं कि वे इधर उधर अधिकारियों के पास भटकते रहें, मदद की गुहार लगातें रहें लेकिन किसी ने नहीं सुना। वे बताते हैं कि एक आदमी की सिफारिश के बाद उनके पिता को सरकारी अस्पताल में भर्ती तो कर लिया गया लेकिन वहां भी आक्सीजन नहीं था। हारुन ने आक्सीजन के लिए काफ़ी मशक्कत किया कि कहीं से आक्सीजन सिलेंडर मिल जाए परंतु कही से भी आक्सीजन की व्यवस्था नहीं हो पाईं।
हारुन बताते हैं कि देर रात उनके पिता का अस्पताल में देहांत हो गया। हारुन अपने 4 भाई बहनों में सबसे बड़ा हैं, हारुन बताते हैं कि उनके पिता की मृत्यु के बाद अब सब जिम्मेदारी उसके ऊपर हैं। वे बताते हैं कि अभी तो घर का खर्च किसी तरह पिता जी द्वारा जोड़ी गईं थोड़ी बहुत पूंजी से चल रहा है। हारुन कहता है वो अभी पढ़ाई कर रहा है और साथ ही एक कंप्यूटर की दुकान पर थोड़ा बहुत कंप्यूटर का काम सीखा था, अब वो कोई नौकरी की तलाश में हैं जिससे उसके परिवार का गुजारा हो सकें।
हारुन के घर के पास रहने वाले फैज़ान अली जो पेशे से वकील हैं वे कहते हैं कि उसके छोटे भाई बहनों की पढ़ाई की जिम्मेदारी वे उठाएंगे। हारुन बताता है कि आस-पड़ोस वाले उसके पिता की मृत्यु के बाद उसके परिवार का हाल जानने तक नहीं आए कि क्या खा पी रहे हैं और गुज़र कैसे चल रहा है।
बावर्ची का काम करने वाले मोहम्मद शफीक की मां अहमदुन की मृत्यु भी इसी दौरान हुई। शफीक Two circles.net से बात करते हुए बताते हैं कि उनके माता की उम्र लगभग 58 साल थी। शफीक बताते हैं कि उनकी मां अहमदुन एकदम सही थी उन्हें कोई बीमारी तक नहीं थी। वे बताते हैं कि एक दिन उन्होंने पीठ में दर्द की शिकायत की तो उन्हें दवा लाकर दे दी गई। दवा खाने के बावजूद पीठ में दर्द बना रहा। ऐसा दो चार दिन चला फिर एक दिन दर्द के अलावा बुखार चढ़ गया ,फिर एक मेडिकल स्टोर से दवा ले आएं।
शफीक बताते हैं कि उनकी मां को बुखार आने के अगले दिन सांस फूलने लगी। ज़्यादा सांस फूलने पर उन्हें अस्पताल ले कर भागे , पर अस्पताल में कुछ नहीं मिला। घर लाने के बाद आक्सीजन लगाने के लिए आक्सीजन के लिए इधर उधर संपर्क करते करते उनकी मां की मृत्यु हो गई। शफीक के अनुसार तबियत ख़राब होने के एक हफ्ते के अंदर उनकी मां का निधन हो गया।
शफीक बताते हैं वे शादी और अन्य कार्यक्रमों में खाना बनाने का काम करते हैं और साथ ही कबाड़ का भी काम करते हैं।शफीक बताते हैं कि उनके आसपास मोहल्ले में लगभग 20-25 मौतें अचानक हुई जैसे उनकी मां की हुई।
रियाज़, हारुन, शफीक जैसे कई हज़ार लोग हैं जिन्होंने किसी अपने को आक्सीजन,बेड, दवाओं, इलाज़ के अभाव में खोया हैं। कहीं अस्पताल में मरीजों को बेड नहीं मिला , तो श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में लोगों के अंतिम संस्कार के लिए जगह की कमी होने लगी थी। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अस्पतालों में सुविधाओं के लाखों दावे किए गए मगर सारे दावे कागज़ी और खोखले निकले।