आकिल हुसैन।Twocircles.net
उत्तर प्रदेश का कानपुर ज़िला देश में चमड़ा उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र हैं। कानपुर शहर भारत के कुल चमड़े और चमड़े के सामान के निर्यात में लगभग 20 प्रतिशत का योगदान देता है। यहां बनाए गए उत्पादों को कई अमेरिकी और यूरोप के देशों समेत विभिन्न देशों में निर्यात किया जाता हैं। कानपुर के चमड़ा उद्योग में जूते , बेल्ट, पर्स, चप्पल, वस्त्र, सैंडल जैसे चमड़े के उत्पादों की एक किस्म यहां बनाई जाती है।
विश्वप्रसिद्ध कानपुर का चमड़ा उद्योग आज पतन की ओर हैं। 2017 में सत्ता में आने के बाद यूपी की बीजेपी सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण का हवाला देते हुए कारखानों को बंद करने या उत्पादन सीमित करने का निर्णय किया था। कानपुर में चमड़े का कारोबार धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है। यहां की लेदर इंडस्ट्री अब बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल और बिहार की ओर शिफ्ट हो रही हैं। आलम यह है कि 402 यूनिट में सिर्फ 143 ही अधूरी क्षमताओं के साथ काम कर रही है। 3 साल में चमड़े का 20 हजार करोड़ रुपए का कारोबार घट गया है और 8 लाख रोजगार घट गए हैं।
यूपी का मेनचेस्टर के नाम से जानें जाना वाला कानपुर में पिछले कई दशकों से टेनरी उद्योग रहा है। वर्तमान में कई कारणों से परेशान टेनरी मालिक पलायन का रुख कर चुके हैं। कई बड़ी चमड़े की ट्रेनरी बांग्लादेश और तीन दर्जन ट्रेनरी पश्चिम बंगाल, बिहार का रुख कर चुकी हैं। कुछ वर्षों पूर्व तक कानपुर में विस्तार की योजना बना रही ट्रेनरी बांग्लादेश पश्चिम बंगाल और बिहार सरकार के साथ में एमओयू साइन भी कर चुकी हैं।
कानपुर के जाजमऊ में लगभग 402 ट्रेनरी हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों से मात्र 143 ट्रेनरी ही चल रहीं हैं। यह ट्रेनरिया भी नोटबंदी के बाद कोरोना की मार झेल रहीं हैं। कोरोना के मानकों के मुताबिक केवल 50 प्रतिशत कर्मचारी ही काम कर रहे हैं जिससे उत्पादन का बमुश्किल 25 फीसद ही कारोबार ही हो रहा है।
कानपुर में ट्रेनरी बन्द होने से बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है। वर्ष 2018 – 19 में कानपुर चमड़ा कारोबार से 10 लाख लोगों को रोज़गार मिला हुआ था। वर्तमान में यह आंकड़ा सिर्फ 2 लाख तक सिमट कर रह गया है। कानपुर के चमड़ा उद्योग का कारोबार लगातार घट रहा है , 2018-19 में व्यापार 30 हजार करोड़ रुपए का था जो 2019-20 में घटकर 25 हजार करोड़ रुपए हो गया। घटते घटते व्यापार 2020-21 में 10 हजार करोड़ रुपए पर आ गया।
यूपी चुनाव के लिए बीजेपी द्वारा जारी करें गए संकल्प पत्र में कानपुर को मेगा लेदर पार्क बनाने की बात कहीं गईं हैं। वहीं कानपुर के रमईपुर में सीएम योगी आदित्यनाथ देश का पहला मेगा लेदर क्लस्टर बनवाने का वादा कर रहे हैं जिससे कानपुर का चमड़ा उद्योग अपनी पहचान फिर से पा सकें। सरकार का दावा है कि कानपुर में मेगा लेदर क्लस्टर प्रोजेक्ट के तहत बनने वाले लेदर पार्क में 50,000 लोगों को प्रत्यक्ष रुप से रोजगार मिलेगा, जबकि डेढ़ लाख लोगों को परोक्ष रूप से रोजगार पाएंगे। इस कार्य के अंतर्गत डेढ़ सौ से अधिक टेनरी इस पार्क में कार्य करेगी। चमड़े से बनने वाले जूते, पर्स, जैकेट से लेकर अन्य उत्पादक को इस पार्क में बनाकर उनका निर्यात किया जा सकेगा।
चमड़ा फैक्ट्री में काम करने वाले खालिद कहते हैं कि अब एक महीने में दस – पंद्रह दिन ही काम मिल पाता है। वे बताते हैं कि काम कम होने की वजह से आमदनी भी कम हो गई हैं इसलिए वे दो-तीन ट्रेनरी में काम करते हैं।
कानपुर की एक ट्रेनरी में काम देखने वालें दानिश बताते हैं कि गंगा में प्रदूषण रोकने की कवायद में एनजीटी और प्रदूषण कट्रोल बोर्ड ने कानपुर के चमड़ा व्यवसाय पर नकेल कस दी जिससे की जाजमऊ की ज़्यादातर ट्रेनरी बंद हो चुकी है। दानिश बताते हैं कि जिन ट्रेनरी मालिकों के पास पैसा था उन्होंने ट्रेनरियां दूसरी जगह शिफ्ट कर दी बाकि जिनके पास पैसा नहीं था उन्होंने बंद कर दी।
ट्रेनरी मालिक मोहम्मद अर्शी बताते हैं कि कानपुर का चमड़ा उद्योग खस्ताहाल हालत में हैं। वे कहते हैं कि सरकार को लगता है कि गंगा में प्रदूषण के जिम्मेदार ट्रेनरी हैं जबकि गंगा में कानपुर शहर के कई खुले नालों का सीवर सीधे गिराया जा रहा है। हकीकत यह है कि गंगा नदी में उद्योग का पानी नहीं जा रहा है। अर्शी कहते हैं कि बीते सालों में सरकार ने चमड़ा उद्योग से निकलने वाली गंदगी को रोकने के लिए कॉमन इंफ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट बनाए हैं। इसमे कई करोड़ रुपए खर्च हुआ है। बावजूद इसके टेनरी उद्योग पर इसके सकारात्मक परिणाम नहीं दिखे।
कानपुर के टैनरी मालिक नैय्यर जमाल कहते हैं कि पहले तो प्रदूषण को लेकर चमड़ा उद्योग पर असर पड़ा। फिर नोटबंदी से चमड़ा कारोबार प्रभावित हुआ और फिर कोरोना आ गया जिसमें लगभग 1 साल तक बंद रहा। नैय्यर कहते हैं कि इन सबसे कानपुर के चमड़ा कारोबारियों का हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ हैं जिससे की मार्केट में सर्वाइव करना मुश्किल हो रहा है।
जानवरों की खाल का काम करने वाले इमरान बताते हैं कि पहले चमड़ा मंडी में रोज़ 25 से 30 ट्रक आते थे और करीब 1200 मजदूर इसमें काम करते थे। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से लगभग 20 लाख इस कारोबार से अपना घर चलाते थे। वे बताते हैं कि हर समुदाय के लोग इस व्यापार से जुड़े हुए थे।
चमड़ा मंडी में खच्चर चलाकर माल ढुलाई का काम करने वाले राम पाल के अनुसार पहले दिनभर में 500- 1000 से 1200 रुपए तक की कमाई हो जाती थी। अब तो 500 रुपए भी मुश्किल हैं। छह लोगों का परिवार नहीं चल पा रहा, तीन घोड़े थे जिनसे माल ढोते थे अब तो सिर्फ एक घोड़े से ही काम हो जाता है।
टैनरियों की बदहाली पर अब्दुल हई कहते हैं कि आए दिन मुश्किलों के चलते धीरे-धीरे कारोबारियों का मोह भंग होता जा रहा है। कई टैनरियां जो मानकों में फेल होने के चलते बंद हो गईं उनके मालिकों को खाने के लाले पड़ गए और मजबूर होकर दूसरा काम शुरू करना पड़ा है।