मुसलमानों को पिछड़ेपन से उबारने की अदुभुत कोशिश थी फ़ातिमा शेख़ की मुहिम

आकिल हुसैन।Twocircles.net

देश की पहली महिला शिक्षक फातिमा शेख की 191वीं जयंती देशभर में मनाईं गई। कोविड के चलते फातिमा शेख़ की जयंती पर कार्यक्रम वर्चुअल तौर पर हुए। पसमांदा मुस्लिम समाज ने भी फातिमा शेख के जन्मदिन पर एक वर्चुअल कार्यक्रम का आयोजन किया। वर्चुअल कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मंत्री अनीस मंसूरी शामिल हुए। अनीस मंसूरी ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में फातिमा शेख़ द्वारा करें गए संघर्ष को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।


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पूर्व मंत्री अनीस मंसूरी ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारत के पसमांदा मुसलमानों को शिक्षित करने के लिए आजीवन संघर्ष करने वाली देश की पहली महिला शिक्षक फातिमा शेख को भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने फातिमा शेख़ के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह मियां उस्मान शेख की बहन थी, जिनके घर में ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने निवास किया था। जब फुले के पिता ने दलितों और महिलाओं के उत्थान के लिए किए जा रहे उनके कामों की वजह से उनके परिवार को घर से निकाल दिया था।

अनीस मंसूरी ने कहा कि फातिमा शेख आधुनिक भारत में सबसे पहली मुस्लिम महिला शिक्षकों में से एक थी और उन्होंने स्कूल में पसमांदा बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया।ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले, फातिमा शेख के साथ पसमांदा समुदायों में शिक्षा फैलाने का कार्य किया।

अनीस मंसूरी ने अपने संबोधन में कहा कि ज्योतिबा फुले व सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं और उत्पीड़ित जातियों के लोगों को शिक्षा देना शुरू किया। इससे दोनों का बड़ा विरोध हुआ। उन्हें अपनी सभी गतिविधियों को रोकने या अपने घर छोड़ने का विकल्प दिया गया था। दोनों ने स्पष्ट रूप से घर छोड़ना पसंद किया। उन्होंने कहा कि जब फुले दम्पत्ती को उनकी जाति और न ही उनके परिवार और सामुदायिक सदस्यों ने उन्हें उनके इस काम में साथ नहीं दिया। तब फुले दम्पत्ती ने आश्रय की तलाश में रहने और समाज के उत्पीड़न के लिए अपने शैक्षिक सपने को पूरा करने के लिए अपनी खोज के दौरान वे एक मुस्लिम आदमी उस्मान शेख घर आए जो पुणे के गंजपेठ में रह रहे थे।

उन्होंने कहा कि उस्मान शेख ने फुले दम्पत्ती को अपने घर की पेशकश की और परिसर में एक स्कूल चलाने पर सहमति व्यक्त की। वर्ष 1848 में उस्मान शेख और उसकी बहन फातिमा शेख के घर में एक स्कूल खोला गया था। अनीस मंसूरी ने कहा कि पूना की ऊंची जाति से लगभग सभी लोग फ़ातिमा और सावित्रीबाई फुले के खिलाफ थे और सामाजिक अपमान के कारण उन्हें रोकने की भी कोशिश थी। यह फातिमा शेख थी जिन्होंने हर संभव तरीके से सावित्रीबाई का दृढ़ता से समर्थन किया।

पूर्व मंत्री अनीस मंसूरी ने कहा कि फातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ उसी स्कूल में पढ़ना शुरू किया। सावित्रीबाई और फातिमा सागुनाबाई के साथ थे, जो बाद में शिक्षा आंदोलन में एक और नेता बन गए थे। फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख भी ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले के आंदोलन से प्रेरित थे। उस अवधि के अभिलेखागारों के अनुसार यह उस्मान शेख था जिन्होंने अपनी बहन फातिमा को पसमांदा समाज में शिक्षा का प्रसार करने के लिए प्रोत्साहित किया।

उन्होंने कहा कि जब फातिमा और सावित्रीबाई ने ज्योतिबा द्वारा स्थापित स्कूलों में जाना शुरू कर दिया, तो पुणे से लोग स्वयं को परेशान करते थे और उनकी निन्दा करते थे। वे पत्थर फैंकते थे और कभी-कभी गाय का गोबर उन पर फेका गया था।

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