आदिवासी समाज से आने वाले देश के पहले मेयर है विक्रम आहाके

आकिल हुसैन।Twocircles.net

मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा नगर निगम में कांग्रेस ने 18 साल बाद मेयर का चुनाव जीता हैं।‌ छिंदवाड़ा नगर निगम में कांग्रेस का बनवास खत्म करने वाले 31 वर्षीय आदिवासी युवक विक्रम आहाके हैं। विक्रम आहाके बेहद साधारण परिवार से आते हैं, उनकी मां आंगनवाड़ी कार्यकर्त्री हैं तो पिता किसान हैं। विक्रम मेयर चुनाव में सबसे गरीब उम्मीदवार थे। परिवार की मदद के लिए कभी मज़दूरी करने वाला,तो कभी झूठी प्लेटें उठाने वाला तो कभी तेंदूपत्ते से पत्तलें बनाने वाला विक्रम आहाके आज मध्यप्रदेश का सबसे कम उम्र का मेयर हैं।


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छिंदवाड़ा नगरनिगम में मेयर के पद पर चुनाव के लिए कांग्रेस ने इस बार दिग्गजों को दरकिनार कर अपने साधारण से कार्यकर्ता विक्रम आहाके पर भरोसा जताया था। विक्रम आहाके ने छिंदवाड़ा नगरनिगम में कांग्रेस का सूखा खत्म करते हुए 3786 वोटों से जीत हासिल की है। उन्होंने बीजेपी के अनंत धुर्वे को चुनाव हराया है। विक्रम को 64363 मत प्राप्त हुए, तो वहीं बीजेपी के अनंत धुर्वे को 60577 वोट प्राप्त हुए हैं।

30 साल की उम्र में मध्यप्रदेश के सबसे युवा मेयर बने विक्रम आहाके छिंदवाड़ा के राजाखोह गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता नरेश आहाके खेती कर परिवार का पेट पालते हैं, मां निर्मला आहाके आंगनबाड़ी कार्यकर्त्री हैं।‌ बताते हैं कि जब विक्रम का जन्म हुआ था तो उस समय उनके पिता पंक्चर और चाय की दुकान चलाते थे। विक्रम ने अपनी पढ़ाई सिंगौड़ी के सरकारी स्कूल से पूरी की हैं। स्कूल में गर्मियों की छुट्टी के दौरान विक्रम मकानों में नींव खोदने का काम करते थे ताकि परिवार की आर्थिक सहायता की जा सकें।

पढ़ाई के साथ-साथ विक्रम ने परिवार की सहायता के लिए और अपने स्कूल कालेज की पढ़ाई में खर्चे के लिए मजदूरी के अलावा कभी शादियों में झूठी प्लेटें उठाई तो कभी दुकान पर झूठे कप-प्लेट धोये तो कभी चाय बांटी तो कभी साइकिल से पोस्टर बांटे। विक्रम को शादी में काम करने का 150 रुपए मिलता था। उन्हें स्कूल की काॅपी-किताब खरीदने तक में दिक्कत होती थी। वो थैले में काॅपी-किताब रखकर चार किलोमीटर दूर स्कूल जाया करते थे। इन सब कठिनाइयों के बावजूद विक्रम का पढ़ाई से कभी मोह भंग नहीं हुआ। उन्होंने कॉलेज में दाखिला लिया, वहां भी सफलता हासिल की और स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की।

छिंदवाड़ा पीजी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई के दौरान विक्रम को कॉलेज के छात्रों की समस्याओं ने उन्हें छात्र राजनीति में ढकेल दिया। छात्र राजनीति में विक्रम कांग्रेस नेता कमलनाथ से बहुत प्रभावित हुए, कमलनाथ की कार्यशैली और विकास कार्यों से प्रभावित होकर विक्रम कांग्रेस में आए और कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई से जुड़ गए। इसी दौरान विक्रम की दो बार सीआरपीएफ और एक बार पुलिस विभाग में भी नौकरी लग गई थी, लेकिन उन्होंने अपने संघर्षों के दिनों को याद करते हुए समाज की सेवा करने की ठान ली थी। 2013 में विक्रम ने अपना बीए पूरा किया था, इसके बाद वो भी खेती किसानी करने लगें।

बताते हैं कि एनएसयूआई के एक कार्यक्रम में कमलनाथ के सामने विक्रम ने सीआरपीएफ में सलेक्शन संबंधी अपाइंटमेंट लेटर पेश करते हुए कहा था कि ड्यूटी नहीं, समाज सेवा ही करते रहना चाहता हूं। इसके बाद वो राजनीति में सक्रिय हो गए, एनएसयूआई में पदाधिकारी की हैसियत से काम आरंभ किया था। विक्रम अपने संघर्ष के दम पर अपनी संगठन में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हुए। इसके बाद पार्टी में उनकी जिम्मेदारियां बढ़ती गईं। छिंदवाड़ा युवा कांग्रेस में जिला सचिव से लेकर छिंदवाड़ा की ज़िला कांग्रेस कमेटी में प्रवक्ता पद तक का निर्वाहन किया। विक्रम आहाके की मेहनत और लग्न से प्रभावित होकर कमलनाथ ने उन्हें अपना सांसद प्रतिनिधि बना दिया था। इसी बीच वर्ष 2015 में उन्होंने गांव से सरपंच का चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें हार का सामना था। मेयर चुनाव से पहले विक्रम आहाके कांग्रेस आदिवासी प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष थे।

मेयर विक्रम आहाके का जन्म 10 अक्टूबर 1991 में हुआ था। उनके परिवार में दूर दूर तक राजनीति में कोई सक्रिय नहीं हैं। पिछले वर्ष नवंबर में विक्रम की शादी जुन्नारदेव की रहने वाली मानसी से हुई है। चुनावी हलफनामे में उन्होंने अपनी कुल चल संपत्ति 338500 घोषित की है, इसके अलावा 50 हज़ार रुपए का कर्जा भी बताया है। विक्रम आहाके को कमलनाथ का बेहद करीबी बताया जाता हैं। विक्रम आहाके के अनुसार उन्हें मेयर पद का टिकट बिना मांगे दिया गया था, जब लिस्ट में उन्होंने अपना नाम देखा तो वो हैरान रह गए। बताते हैं कि विक्रम आहाके के पास अपनी खुद की गाड़ी नहीं है। वह क्षेत्र में आज भी साइकल की सवारी करते दिख जाते हैं।

अपनी जीत पर विक्रम आहाके कहते हैं कि जीवन में नहीं सोचा था कि इतनी बड़ी उपलब्धि, इतना बड़ा मौका मेरे जीवन में आएगा। संघर्ष मैंने हर पल किया। कभी नहीं सोचा था कि राजनीति में आऊंगा। मैंने चुनाव लड़ जनता के भरोसे पर खरा उतरने का काम किया। मैं जीवन भर उनका ऋणी रहूंगा। उन्होंने का कि मुझे जैसे अदने कार्यकर्ता को आज इस श्रेणी पर लाकर यहां खड़ा कर दिया। मैंने जीवन में कभी सोचा तक नहीं था।

महापौर के तौर पर प्राथमिकताओं पर विक्रम आहाके कहते हैं कि,’जिस गरीब परिवेश से वे आये, वही वर्ग उनके लिए पहले पायदान पर होगा। उसका हित करना पहला लक्ष्य रहेगा। फाकाकशी के दौर में कई बार भूखे सोये। एक बार तो किराया नहीं होने पर छिंदवाड़ा से अपने गांव करीब 19 किलोमीटर का सफर पैदल ही पूरा किया था, पुराने दुर्दिन, गरीबों की मदद के लिए प्रेरित करते थे और आगे भी करते रहेंगे।’

परिवार और रिश्तेदार विक्रम के महापौर बनने से बेहद खुश है। परिवार के लोगो को उस वक्त भी यकीन नहीं था कि कांग्रेस से महापौर जैसे बड़े पद का टिकट मिलेगा। चुनाव प्रचार के दौरान जब विक्रम को अपार जनसमर्थन मिलना शुरू हुआ, तो उस वक्त भी परिवार के लोग भरोसा ही नहीं कर पा रहे थे कि उनका विक्रम ही चुनाव लड़ रहा है।

राहुल गांधी भी विक्रम आहाके के मुरीद हो गए हैं। राहुल गांधी ने विक्रम का लकड़ियां कंधे पर ले जाते, तेंदू पत्ते से कुछ सामान बनाते और मां के पैर छूते तीन फोटो भी पोस्ट किए हैं। पोस्ट में उन्होंने लिखा है ‘अगर सच्ची मेहनत, लगन और ईमानदारी से सपनों के लिए लड़ा जाए, तो इंसान कुछ भी हासिल कर सकता है। राहुल गांधी ने लिखा कि,’मां आंगनबाड़ी में काम करती हैं, पिता जी किसान हैं और बेटा ‘महापौर’ है।

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