सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा
अस्सी के दशक में पाकिस्तानी रिश्तेदार गर फोन करते थे तो पहला सवाल होता था… तुम्हारी तरफ ग़ुरबत के क्या हाल हैं… दूसरा जिहालत और तीसरा सवाल नया मज़हबी दंगा कब होगा?
बंटवारा भले मज़हब के नाम पर हुआ था, तमाम प्रोग्रेसीव लोग पाकिस्तान में थे। अपने उधर के रिश्तेदारों के सामने कभी कभी एहसासे कमतरी भी होती थी। कम से कम साहित्य, कला और शिक्षा के मामले में उधर का मुसलमान इधर से बेहतर था। अब शायद यक़ीन करना मुश्किल हो मगर कराची की नाईट लाईफ, फैशन(जिसे इधर नंगई कहा जाता था) किसी भी यूरोपीय देश से होड़ करता था।
वक़्त ने करवट ली। पाकिस्तान में जनरल ज़िया ने वो कर दिखाया जो तमाम मुस्लिम लीगी और जमाती मिलकर न कर पाए। अस्सी के दशक में पाकिस्तान में मदरसा क्रांति हुई। मुजाहिदीन इल्म हासिल करने पाकिस्तान आने लगे। पाकिस्तान में तमाम मज़हबी संगठन हावी होने लगे। जमात ए इस्लामी वहां संघ वाली भूमिका थी ही, जमातुद्दावा, लश्कर उल जिहाद, झांग्वी, हरकत (उधर के बजरंग दल, शिव सेना, हिंदू वाहिनी समझ सकते हैं) जैसे संगठन गली गली पैदा होने लगे। पाकिस्तान में इस्लाम का अभ्युदय हुआ और जम्हूरियते इस्लामी पाकिस्तान में से जम्हूरियत ग़ायब हो गई इस्लाम ( इस्लाम नहीं जमाते इस्लामी वाला) रह गया। ग़ैर इस्लामी के लिए दिल तंग होने लगे। पहले अहमदिया, फिर शिया और फिर हिंदू और सिख… एक एक कर सबको ठिकाने लगाने का खेल शुरू हुआ। जो बचा वो आज का पाकिस्तान है। बरबाद, बेहाल, ग़ुरबत का मारा, दीमक लगा पाकिस्तान।
इस सारी कहानी का मक़सद पाकिस्तान की बदहाली बयान करना नहीं है। ये सबक़ है जो अब हम दोहरा रहे हैं। हम पाकिस्तान से होड़ कर रहे हैं। लाख हम दावा करें कि हम अमेरिका और चीन के मुक़ाबिल हैं, हम पाकिस्तान बन रहे हैं। अस्सी के दशक में जो पाकिस्तान में हुआ वो हम दोहरा रहे हैं। इंतज़ार कीजीए। हमने तीस साल बाद ये तजुर्बे शुरू किए हैं। तीस साल बाद के हिंदुस्तान का तसव्वुर कीजीए और ज़ोर से एक नारा लगाईए, जय राष्ट्रवाद। हम भी आपके साथ वंदे मातरम कहते हैं। आपका दिल ख़ुश होगा। हमें भी तिस्कीन मिलेगी कि चलो पाकिस्तान न गए न सही, हमने हिंदुस्तान को ही पाकिस्तान बनते अपनी आंखों से देख लिया।
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सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा राज्य सभा टीवी में पत्रकार हैं