By TCN News,
लखनऊ: रिहाई मंच ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश और सिविल सोसाइटी के बड़े हिस्से द्वारा याकूब मेमन की फांसी की सजा रद्द किए जाने की मांग के बावजूद अगर उसे फांसी दी जाती है तो इसे भारतीय लोकतंत्र द्वारा दिन दहाड़े की इंसाफ की हत्या माना जाएगा। मंच ने सपा, बसपा, कांग्रेस, राजद, जदयू समेत कथित धर्मनिरपेक्ष दलों से इस मसले पर संसद में अपनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की है।
बकौल रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब, ‘जस्टिस काटजू का यह कहना कि टाडा अदालत के फैसले में याकूब के खिलाफ सबूत बहुत कमजोर हैं तथा इससे यह भी अंदाज़ लग जाता है कि उसने जो कुछ भी कहा है वह पुलिसिया टार्चर के कारण कहा है, इस पूरे मुकदमे को ही कटघरे में खड़ा कर देता है. इसके फैसले को खारिज किया जाना न्याय व्यवस्था में लोगों के यकीन को बचाने के लिए जरुरी है.’ शुऐब ने आगे कहा, ‘याकूब मामले में उसे कानूनी तौर पर प्राप्त राहत के सभी विकल्पों के खत्म होने से पहले ही उसके खिलाफ डेथ वारंट जारी कर दिए जाने जैसी गैरकानूनी कार्रवाई के अलावा भी कई कारण हैं जिसके चलते उसे फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता.’
रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने याकूब मेमन की फांसी को लेकर पांच सवाल उठाए. राजीव यादव ने कहा, ‘मेरा पहला सवाल है कि याकूब मेमन की गिरफ्तारी के दावों पर ही गंभीर अंतर्विरोध है. जहां सीबीआई ने उसे दिल्ली रेलवे स्टेशन से पकड़ने का दावा किया था तो वहीं याक़ूब मेमन और तत्कालीन खुफिया अधिकारी बी रामन के मुताबिक उसे नेपाल से उठाया गया था.
इसके पीछे की असल सचाई क्या है? दूसरा सवाल है कि याकूब की सजा का आधार जिन छह सहआरोपियों का बयान बनाया गया है, उनमें से पांच अपने बयान से मुकर चुके हैं. जो लोग अपने बयान से पलट चुके हों उनके बयान के आधार पर किसी को फांसी तो दूर, साधारण सजा भी कैसे दी जा सकती है?’ इसके बाद राजीव यादव ने कहा, ‘तीसरा सवाल यह खड़ा होता है कि जब बम प्लांट करने वाले आरोपियों की सजाएं उम्र कैद में बदल दी गईं तो फिर कथित तौर पर घटना के आर्थिक सहयोगी के नाम पर, जिससे उसने इंकार किया है, को फांसी की सजा कैसे दी जा सकती है? चौथा सवाल यह खड़ा होता है कि जब वह इस मामले का एक मात्र गवाह है जिसने जांच एजेंसियों का सहयोग करते हुए तथ्य मुहैया कराए तब उसे कैसे फांसी की सजा दी जा सकती है? क्योंकि किसी भी न्यायिक प्रक्रिया में मुख्य गवाह जो जांच एजेंसी या उसे पकड़ने वाली एजेंसी के कहने पर गवाह बना हो को फांसी देने का रिवाज़ नहीं है। अगर ऐसा होता है तो इसे उस शख्स के साथ किया गया धोखा ही माना जाएगा. यानी अगर याकूब फांसी पर चढ़ाया जाता है तो यह विधिसम्मत फांसी होने के बजाए धोखे से किया गया फर्जी एनकाउंटर है जो पुलिस द्वारा रात के अंधेरे में किए गए फर्जी एनकाउंटर से ज्यादा खतरनाक है. क्योंकि इसे पूरी दुनिया के सामने अदालत द्वारा अंजाम दिया गया होगा.’
राजीव यादव ने पांचवां और आखिरी सवाल उठाते हुए कहा, ‘जब याकूब मेमन को भारत लाने वाले ख़ुफ़िया अधिकारी रामन यह कह चुके हैं कि इस मुकदमे में अभियोजन पक्ष ने याकूब से जुड़े तथ्यों को न्यायपालिका के समक्ष ठीक से रखा ही नहीं तो क्या अभियोजन पक्ष द्वारा मुकदमे के दौरान रखे गए तथ्यों और दलीलों को सही मानकर दिए गए पोटा अदालत का फैसला खुद ब खुद कटघरे में नहीं आ जाता? वहीं याकूब जब पुलिस की हिरासत में आ गया था और वह अपने परिवार को करांची से भारत लाने के नाम पर गवाह बना तो ऐसे में यह भी सवाल है कि याकूब ने जो गवाही दी वह मुंबई धमाकों से जुड़े तथ्य थे या फिर पुलिसिया कहानी थी. दरअसल होना तो यह चाहिए कि बी रामन के लेख की रोशनी में अभियोजन पक्ष द्वारा तथ्य को छुपाए जाने, उन्हें तोड़ मरोड़कर अदालत में रखने उनके द्वारा आरोपियों से बयान लेने के लिए इस्तेमाल किए गए गैरकानूनी तौर तरीकों जिसका ज़िक्र जस्टिस काटजू ने भी अपने बयान में किया है, की जांच कराई जाए. यह जांच इसलिए भी जरुरी है कि इस मामले में अभियोजन पक्ष के वकील उज्जवल निकम रहे हैं जो कसाब मामले में मीडिया में उसके खिलाफ झूठे बयान देना स्वीकार कर चुके हैं.’
रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा, ‘जिस तरह फांसी के पक्ष में संघ गिरोह माहौल बना रहा है उससे साफ है कि सरकार और भगवा ब्रिग्रेड मीडिया ट्रायल के जरिए एक कम कसूरवार व्यक्ति का दानवीकरण कर उसे सिर्फ मुस्लिम होने के नाते फांसी पर लटकाकर बहुंसंख्यक हिंदू समाज के सांप्रदायिक हिस्से को खुश करना चाहता है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘याकूब पर अदालती फैसले ने इस छुपी हुई सच्चाई को बाहर ला दिया है कि हमारी न्याय व्यवस्था आतंकवाद को धर्म के चश्मे से देखती है. जो मुस्लिम आरोपी को फांसी देने में यकीन रखती है और असीमानंद, साध्वी प्रज्ञा, बाबू बजरंगी, माया कोडनानी, कर्नल पुरोहित जैसे आतंकवाद के हिंदू आरोपियों को जमानत दिया जाना जरुरी समझती है.’