अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
छपरा/सीवान/गोपालगंज : बिहार की राजनीति में ‘धर्म का कॉकटेल’ घोलने की साज़िशें शुरू हो चुकी हैं. जातीय समीकरणों में पिछड़ती पार्टी यह काम ज़ोर-शोर से कर रही है. यह वही पार्टी है, जो ‘सबका साथ –सबका विकास’ के नारे पर मुल्क का विकास करने का दावा करती रही है. मगर जमीनी स्तर पर इस दावे के चिथड़े उड़ते नज़र आ रहे हैं. एक के बाद एक ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, जो इस बात का पक्का संकेत देता है कि यह पार्टी लोगों को धर्म के आधार पर बांटने की पुरज़ोर तैयारी में जुट गई है और इस बंटवारे की फ़सल बिहार की सत्ता हथियाकर काटना चाहती है.
स्पष्ट रहे कि पिछले दिनों जनसभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय राज्य मंत्री व भाजपा सांसद गिरिराज सिंह कह चुके हैं, ‘बिहार में इस बार धर्म और अधर्म के बीच लड़ाई है. नरेंद्र मोदी द्वारा अश्वमेध का घोड़ा छोड़ा जा चुका है. इसे रोक पाना नीतीश कुमार और लालू यादव के लिए आसान नहीं होगा. छोटे और बड़े भाई चाहे जितनी भी कोशिश कर लें, इस बार बिहार में परिवर्तन तय है.’
हालांकि बिहार बीजेपी वर्किंग कमिटी के सदस्य अमरेश राय TwoCircles.net से विशेष बातचीत में बताते हैं, ‘गिरिराज सिंह के बयान में ‘धर्म’ का मतलब न्याय और अन्याय की लड़ाई से था.’ वहीं बजरंग दल के गोपालगंज जिला संयोजक पंकज कुमार सिंह का कहना है, ‘जो हिन्दुओं का काम करेगा, यहां की जनता उसी को वोट देगी.’ धर्म व अधर्म के सवाल पर वह बताते हैं, ‘राम के समय भी राक्षस था, आज भी राक्षस है, जेहादियों की शक़्ल में… हमारे लिए यही अधर्म है.’
सीवान के एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है, ‘यहां के लोगों में टॉलरेंस की कमी आई है. अविश्वास काफी गहरा हुआ है. आरएसएस गांवों में काफी सक्रिय हो चुका है. जिलों को आग में झोंकने की पूरी तैयारी है. महावीरी अखाड़े का सीजन भी आ गया है.’
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छपरा के एक सैलून में कर्मियों से बार करने पर कि इस बार वोट किसे देना है तो स्पष्ट जवाब था, ‘नरेन्द्र मोदी’. हमने दोबारा सवाल किया कि नरेन्द्र मोदी ही क्यों? तो उनका कहना था, ‘भाजपा ही एकमात्र पार्टी है, जो हिन्दू धर्म की रक्षा कर रही है.’ आख़िर कैसे? इस सवाल पर वो बताने लगे, ‘अब हमारे गांव में भी मंदिर बनने लगे हैं. नगरपालिका चौक पर भी मंदिर बन रहा है. पीछे की तरफ़ भी मंदिर का निर्माण हो रहा है. क्या कांग्रेस की सरकार में इतने मंदिर बन पाए थे?’
सचाई यह है कि यह लोग ग़लत नहीं हैं. छपरा, सीवान व गोपालगंज के कई गांव व शहरों में मंदिर निर्माण कार्य ज़ोरों पर है. लोगों के मुताबिक धार्मिक सक्रियता बढ़ी है. मंदिर निर्माण के नाम पर शोभा-यात्रा व कलश यात्रा तो एक आम बात है.
इतना ही नहीं, दलित बस्तियों में भी अब ‘शिव चर्चा’ होने लगी हैं. बजरंग दल के गोपालगंज ज़िला संयोजक के मुताबिक ‘त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम’ ज़ोरों पर हैं. ये त्रिशूल गुजरात से आ रहे हैं. ‘त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम’ क्यों? इस पर वह बताते हैं, ‘ताकि हिन्दू अपनी रक्षा कर सके.’ पंकज के मुताबिक जल्द ही गोपालगंज-सीवान में प्रवीण तोगड़िया भी आने वाले हैं.
इतना ही नहीं, सारण प्रमंडल के तीनों ज़िलों में ‘गौ-हत्या’ के विरूद्ध अभियान काफी ज़ोरों पर है. गोपालगंज व उसके आस-पास बक़ायदा इसके लिए ‘श्री राम सेना’ व ‘हनुमान सेना’ कार्य कर रही है. हालांकि ‘श्री राम सेना’ की स्थापना बजरंग से निष्कासित एक कार्यकर्ता ने ही की है. सारण प्रमंडल के तीनों ज़िलों में गांव में बसने वाले मुस्लिम आबादी का आरोप है कि ‘श्री राम सेना’ कमज़ोर मुसलमानों को टारगेट करती है. मवेशी ले जाने या लाने वालों को मारा जाता है. इनके अलावा केन्द्रीय राज्य मंत्री रामकृपाल यादव की देख-रेख में भी बिहार के विभिन्न ज़िलों में ‘गौ रक्षा –राष्ट्र रक्षा’ अभियान चलाया जा रहा है.
सारण प्रमंडल के तीनों जिलों में ज़्यादातर लोगों की नज़र में ‘भाजपा मतलब हिन्दुओं की पार्टी’ और बाकी सब पार्टियां ‘एन्टी-हिन्दू’ हैं. इसके पक्ष में लोगों के अपने-अपने तर्क भी मौजूद हैं. गोपालगंज के उर्दू कॉलेज में लेक्चरर गुलाम हुसैन बताते हैं, ‘लोग आकर इस बारे में सवाल करते हैं कि नीतीश कुमार मुस्लिम लड़के-लड़कियों में ही पैसा क्यों बांटते हैं? दलित व पिछड़े वर्ग के लड़के-लड़कियों को पैसा क्यों नहीं मिलता? क्या हिन्दू लड़के-लड़कियों को आगे नहीं पढ़ना चाहिए?’ हुसैन के मुताबिक छपरा में पैसे बांटते समय लोगों ने पथराव भी किया. स्पष्ट-सी बात है कि मुसलमान तो यह काम करेगा नहीं क्योंकि पैसा तो उसी को मिल रहा है.
‘मुख्यमंत्री अल्पसंख्यक विद्यार्थी प्रोत्साहन योजना’ के तहत बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से मैट्रिक में प्रथम व द्वितीय स्थान के लिए उत्तीर्ण छात्र-छात्रा को क्रमश: दस व आठ हजार रुपए दिए जाते हैं. बिहार इंटरमीडियेट से प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण सिर्फ छात्राओं दस-दस हजार रुपए दिए जाते हैं. यह योजना 2007 में ही बिहार सरकार ने शुरू की थी.
गोपालगंज के मो. अमीरूल्लाह बताते हैं, ‘यहां हर बार लड़ाई ‘जय श्री राम’ व ‘नारे तकबीर’ के बीच कर दी जाती है.’
सारण प्रमंडल में सक्रिय समाजिक कार्यकर्ता राशिद हुसैन बताते हैं, ‘संघ के लोग गांव-गांव घूमकर गरीबों-दलितों को यह संदेश दे रहे हैं कि मुसलमानों को इस चुनाव में जीत के बाद पाकिस्तान भगा दिया जाएगा और उनकी ज़मीनें आप सब में बांट दी जाएंगी.’
राशिद आगे बताते हैं, ‘गांव में दलित भी अब धार्मिक हो गए. संघ के लोग उनको यह बताते फिर रहे हैं कि हमने नीची जाति के मोदी को पीएम बनाया है.’ राशिद के मुताबिक एक मुस्लिम मवेशी लेकर जा रहा था, जिसे रास्ते में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने खूब मारा-पीटा और फिर पूरा शहर बंद करवाया गया.
बिहार की सत्ता के जंग की तारीख जैसे-जैसे क़रीब आ रही है. लोगों के दिलों में ‘धर्म’ के नाम पर नफ़रत पैदा करने की साज़िशें लगातार बढ़ती जा रही हैं. मुनासिब होगा कि इस धर्म के समीकरण को पाठकों के बीच लाते रहा जाए जिससे मालूम चलता रहे कि बिहार का ‘विकास’ किस दिशा में हो रहा है?