गांधी की ज़मीन पर जाली नोटों का मायाजाल!

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

बेतिया /नौतन /रक्सौल : बिहार की राजनीत का एक कड़वा अध्याय… गांधी के तपस्या की ज़मीन पर जाली नोटों का खुला कारोबार… निशाने पर बिहार का चुनाव… और केन्द्र में वे लोग जो बिहार की नियति और चेहरा दोनों बदलने का दावा करते हैं.


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गुरूवार 01 अक्टूबर को पश्चिम चम्पारण के रक्सौल में डायरेक्टॉरेट ऑफ रेवेन्यू इंटिलिजेंस (डीआरआई) के ज़रिए बिहार-झारखंड में अब तक की सबसे बड़ी नक़ली नोटों का खेप पकड़ा गया. बताया जाता है कि 25.43 लाख के नक़ली नोट पाकिस्तान से दुबई के ज़रिए कोरियर से बिहार भेजा गया था. पांच सौ रूपयों के कुल 51 बंडल एक कार्टून में कंबल, टॉफी, मेकअप के सामानों व कुछ खाद्य पदार्थों के बीच छिपाकर रखा गया था.

बेतिया में भी उसी दिन बिहार विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने के मक़सद से बांग्लादेश के रास्ते लाए जा रहे 3 लाख के जाली नोटों के साथ दो महिला रंभा देवी व मीरा देवी की गिरफ़्तारी हुई. स्थानीय अख़बारों के ख़बर के मुताबिक ये दोनों महिला मुज़फ़्फ़रपुर के केन्द्रीय जेल में बंद लालबाबू के लिए काम करती हैं.

चम्पारण की धरती पर ये कोई पहली घटना नहीं है. जाली नोटों व अवैध हथियार के कारोबार यहां हमेशा से होता नज़र आया है, लेकिन बिहार चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहा है, इस कारोबार में उसी रफ़्तार से तेज़ी आ रही है. इस कारोबार में कई बार कई नेताओं के नाम भी सामने आ चुके हैं.

स्थानीय अख़बारों के ख़बर के मुताबिक़ 09 जून 2015 को एक बीजेपी नेता के साथ चार लोगों को अवैध हथियार के साथ गिरफ्तार किया गया. बेतिया एसपी के मुताबिक़ ये नेता ज़िला के विभिन्न क्षेत्रों में अवैध हथियार बेचने का धंधा करते हैं, जिसका खुलासा खुद नेता जी ने ही किया. वहीं बेतिया पुलिस ने 04 मई, 2015 को एक जीप से हथियार व गोली बरामद किए. इसी जीप से चार लोगों के साथ ज़िला पार्षद रामाशीष यादव की बेटे की भी गिरफ्तारी हुई थी.

जून महीने में ही बेतिया के ही नौतन प्रखंड के दक्षिण तेल्हुआ गांव में पुलिस ने एक अवैध शराब की फैक्ट्री में छापेमारी कर 10 लाख के जाली नोटों को बरामद किया था. इसके अलावा देशी शराब का पांच हज़ार खाली बोतलें, रैपर, पैकिंग मशीन व भारी मात्रा में कच्चा स्प्रिट बरामद किया था.

08 सितम्बर 2015 को भी एक महिला को रांची से बेतिया आने के क्रम में 9 लाख रूपये के जाली नोटों के साथ गिरफ्तार किया गया. यह महिला नौतन के इसी दक्षिण तेल्हुआ गांव जा रही थी. कहा जाता है कि यह गांव जाली नोट के कारोबारियों का मुख्य केन्द्र है. इसी गांव के कई निवासी देश में अलग-अलग जगहों पर लगातार पकड़े गए हैं. पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के मालदा ज़िले में इसी गांव का निवासी 13 लाख के जाली नोटों के साथ पकड़ा गया था. 23 सितम्बर को भी इसी गांव का निवासी 10 हज़ार के जाली नोट, लोडेड देसी पिस्टल व गोली के साथ गिरफ्तार हुआ था.

जाली नोटों की बात छोड़ दें तो असली नोटों का इस्तेमाल भी इस चुनाव में जमकर किया जा रहा है. निर्वाचन आयोग के मुताबिक़ बिहार में अब तक 2014 लोकसभा चुनाव से दोगुना पैसे ज़ब्त किए जा चुके हैं. 2014 चुनाव के दौरान चुनाव आयोग की कार्रवाई में 6 करोड़ रूपये ज़ब्त किए गए थे, वहीं इस बार पहले चरण के मतदान से पूर्व ही 12 करोड़ से अधिक की धन-राशि ज़ब्त की जा चुकी है. जाली नोटों का ब्योरा अलग है. उसके अलावा पिछले दिनों 10 लाख डॉलर भी ज़ब्त किए गए, जिसका भारतीय मूल्य 6.35 करोड़ रूपये आंका जा रहा है.

दरअसल, चुनाव जीतने का रास्ता तो एक ही है और वो रास्ता धन, बल और बाहुबल का है. तो इस तालाब में कुदने को सारी बड़ी-छोटी मछलियां बेचैन हैं. यही बिहार चुनाव की हक़ीक़त है.

ऐस में जब बिहार में चुनावी आचार-संहिता लग चुकी हो. इसके बाद भी जाली नोटों के कारोबार का हर रोज़ सामने आना और उसका चुनाव से सीधा कनेक्शन चुनाव आयोग के लिए बड़ी चुनौति पैदा करता है. चम्पारण में जाली नोटों के कारोबार का धंधे में बीजेपी के नेताओं का नाम होना इस बात का सबूत देता है कि बीजेपी सत्ता के लिए कुछ भी कर गुज़रने को तैयार है. हालांकि ये कहना बिल्कुल उचित नहीं होगा कि इस धंधे में सिर्फ बीजेपी ही है. इस हमाम और भी नंगे हैं.

खैर, सच तो यह है कि अगर इन संवेदनशील हालातों में भी चुनाव का रूख इन अनैतिक तरीक़ों से मोड़ने की कोशिश की जाती रही तो बिहार की जनता के विवेक पर चंद स्वार्थी तत्वों के साज़िश की परत अपना निशान छोड़ जाएगी और ये निशान इस लिहाज़ से बेहद घातक होगा कि ये देश के लोकतांत्रिक तौर पर सबसे अधिक जागरूक सूबे के भीतर लोकतंत्र की हत्या होगी.

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