Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net
यूपी में हाल में हुए उपचुनाव की एक छुपी हुई तस्वीर यह रही है कि बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (मजलिस) ने अपने तेवरों का परिचय दे दिया है.
पिछले दिनों उत्तरप्रदेश के तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए. मजलिस ने सिर्फ़ बीकापुर विधानसभा सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. प्रदीप कुमार कोरी नामक मजलिस के यह उम्मीदवार यहां चौथे स्थान पर रहें, लेकिन उनको मिले वोट कांग्रेस के वोट से कई गुणा ज़्यादा और बीजेपी के उम्मीदवार के लगभग बराबर है. यह आलम तब है जब सूबे में बीजेपी की कई सरकारें रह चुकी हैं और वर्तमान में वो केन्द्र की सत्ता में है.
बीकापुर के इस सीट पर मुक़ाबले में 12 उम्मीदवार मैदान में थे. लेकिन दरअसल मुक़ाबला समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच ही था. तीसरे स्थान पर बीजेपी थी. बीजेपी के उम्मीदवार रामकृष्ण तिवारी को कुल 11933 वोट मिलें, वहीं मजलिस को 11857 वोट हासिल हुए यानी बीजेपी से सिर्फ 76 वोट कम. जबकि कांग्रेस पांचवे स्थान पर रही और वोटों के मामले में काफी पीछे नज़र आई. उसके मुस्लिम उम्मीदवार असद अहमद को सिर्फ़ 2945 वोट हासिल हुए.
ऐसे में यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि एक नई नवेली पार्टी अपनी पहली ही कोशिश में इस क़दर मज़बूत वोट-बैंक के होने का अहसास करा जाती है तो ये आने वाले भविष्य की सियासी तस्वीर का आईना ज़रूर हो सकता है.
मजलिस से जुड़े युवा नेता आदिल हसन आज़ाद कहते हैं कि –‘आने वाले चुनाव में हम काफी सीटों पर कामयाब होने वाले हैं. बीकापुर सीट पर तो हमारे पास कार्यकर्ता ही नहीं थे. लेकिन अब युवाओं की पूरी फौज पार्टी के साथ रोज़ जुड़ रही है. आने वाला चुनाव हमारे नाम होगा और हम यूपी के काफी सीटों पर जीत दर्ज करेंगे.’
दरअसल, ओवैसी ने अपने राजनीतिक सोच का एक बेहतरीन परिचय देते हुए इस सीट पर दलित उम्मीदवार को टिकट दिया, जबकि दूसरी पार्टियां जातीय समीकरण में इसके उलट थे. मजलिस को मिले वोट बताते हैं कि मुसलमानों के साथ-साथ दलितों ने भी जमकर साथ दिया है. ऐसे में अगर यही कंबीनेशन 2017 के चुनाव में भी चल गया तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि मजलिस कई जमे-जमाए खिलाड़ियों का खेल बिगाड़ सकती है.
स्पष्ट रहे कि मजलिस पूरी मज़बूती के साथ इस मुद्दे को उठाती रही है कि ओवैसी मुसलमानों के सच्चे हमदर्द हैं. उसका यह भी कहना है कि बाकी पार्टियों ने मुसलमानों के वोटों का सिर्फ़ इस्तेमाल किया है और अपनी सत्ता की तिजोरी भरी है. खास बात यह है कि मुसलमान अब मजलिस पर भरोसा भी करने लगे हैं. जो पार्टी पहले सिर्फ़ हैदराबाद तक ही सीमित थी, वो अब महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश में दस्तक दे चुकी है.
मजलिस की यह सफलता इस ओर इशारा करती है कि देश में मुस्लिम राजनीत का एक नया ‘ध्रुव’ तैयार हो रहा है, जिसमें दलित भी साथ है. अगर इस ‘ध्रुव’ की चाल इसी तरह चलती रही तो आने वाले वक़्त में बड़े-बड़े महारथियों को पीछे छोड़ सकता है.