Fahmina Hussain, TwoCircles.net
नई दिल्ली : मुस्लिम समाज में तलाक को लेकर हमेशा से बहस होता रहा है. एक बार फिर इस बहस को कानपुर में शनिवार को होने वाले उलेमा व वकीलों के एक इज्तिमा में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य व विधिक सलाहकार व उत्तर प्रदेश के अपर महाधिवक्ता ज़फ़रयाब जीलानी ने हवा दी है.
उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि –‘एक बार में तीन तलाक देने वालों को सज़ा मिलनी चाहिए. इसके लिए उलेमा-ए-कराम एक कांफ्रेंस बुलाएं और इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर ग़ौर करने के बाद इसका खाका तैयार करें. तलाक देने वाले पर जुर्माना लगाया जाए और इससे पीड़ित महिला की मदद की जाए.’
हालांकि इससे पूर्व ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और संबद्ध संगठन ‘तीन तलाक’ पर फिर से विचार करने की गुज़ारिश को नकार चुकी है.
पर्सनल लॉ बोर्ड का स्पष्ट तौर पर कहना है कि –‘कुरान और हदीस के मुताबिक़ एक बार में तीन तलाक कहना हालांकि जुर्म है, लेकिन इससे तलाक हर हाल में मुकम्मल माना जाएगा और इस व्यवस्था में बदलाव मुमकिन नहीं है.’
दरअसल, ऑल इंडिया सुन्नी उलेमा काउंसिल ने बोर्ड के साथ-साथ देवबंदी और बरेलवी मसलक को खत लिखकर कहा है कि अगर इस्लामी कानून में गुंजाइश हो तो किसी शख्स द्वारा एक ही मौके पर तीन बार तलाक कहे जाने को एक बार कहा हुआ माना जाए, क्योंकि अक्सर लोग गुस्से में एक ही दफा तीन बार तलाक कहने के बाद पछताते हैं.
तब उस समय ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना अब्दुल रहीम कुरैशी ने तलाक से संबंधित किसी भी पत्र मिलने से इंकार किया था. उनका स्पष्ट तौर पर कहना था कि –‘ बोर्ड को अभी ऐसा कोई पत्र नहीं मिला है.’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि –‘ काउंसिल के सुझाव से बोर्ड सहमत नहीं है.’
इस मौक़े से उन्होंने मीडिया को यह भी बयान दिया था कि –‘उन्हें अख़बार की खबरों से पता लगा है कि काउंसिल ने पाकिस्तान समेत कई मुल्कों में ऐसी व्यवस्था लागू होने की बात भी कही है. लेकिन दूसरे मुस्लिम मुल्क में क्या होता है, उससे हमें कोई लेना-देना नहीं है. पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, सूडान और दीगर मुल्कों में क्या हो रहा है, वह हम नहीं देखते. हम तो यह देखते हैं कि कुरान शरीफ़, हदीस और सुन्नत क्या कहती है.’
हालांकि इस मौक़े पर अपने बयान में उन्होंने यह भी कहा कि –‘इस्लाम में एक ही मौक़े पर तीन बार तलाक कहना अच्छा नहीं माना गया है, लेकिन इससे तलाक मुकम्मल माना जाएगा. इस व्यवस्था में बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं है.’
स्पष्ट रहे कि इन दिनों मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तीन तलाक के इस मसले पर ‘भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन’ नामक एक महिलावादी संगठन ने अपना अभियान छेड़ रखा है. इस अभियान के तहत इस संस्था ने एक सर्वे भी किया है, जिसका दावा है कि देश की 92 फीसदी मुस्लिम महिलाएं तीन बार तलाक बोलने से रिश्ता ख़त्म होने का नियम एक तरफ़ा मानती हैं और इस पर रोक लगाने की मांग कर रही हैं. इन महिलाओं के मुताबिक़ तलाक से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए और इन मामलों में मध्यस्थता का प्रावधान होना चहिए.
हालांकि मुस्लिम समाज में कुछ लोगों का आरोप है कि ‘भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन’ नामक यह संगठन आरएसएस जैसी संस्थान के इशारे पर चलाया जा रहा है.
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