राक़िब हमीद, TwoCircles.net
मलकपेट, हैदराबाद – सऊदी अरब में इंजीनियर रह चुके सत्तर की उम्र छू रहे मोहम्मद अहमद ने पिछले साल अप्रैल में जब अपने बेटे की लाश बैग में मिली, तो उस वक़्त वे उसके अगले कुछेक हफ़्तों में जेल से छूटने का इन्तिज़ार कर रहे थे. अमज़द के पिता की तरह उन्हें भी किसी रिश्तेदार ने फोन करके टीवी देखने को कहा. समाचार चैनलों पर अलैर मुठभेड़ की खबरें थीं. इसमें उनका बेटा वकारुद्दीन मारा गया था.
वकारुद्दीन और अन्य चार आरोपी मुठभेड़ में उस वक़्त मारे गए जब उन्हें वारंगल जेल से हैदराबाद सुनवाई के लिए ले जाया जा रहा था. जगह अलैर, तारीख 7 अप्रैल और स्थान पुलिस बस.
घटना के बारे में जानकारी देते हुए पुलिस ने कहा था कि रास्ते में वकारुद्दीन ने पेशाब करने के लिए गाड़ी रोकने के लिए कहा. अलैर के पास गाड़ी रोकी गयी. जब वह पेशाब करके वापिस आया तो उसने वहां मौजूद कॉन्स्टेबल की इंसास राइफल छीनने की कोशिश की. उसे देखते-देखते अन्य चार आरोपी भी इस हथियार छीनने की कोशिश करने लगे. साथ ही साथ वे लोग नारे भी लगा रहे थे. इसके बाद आत्मरक्षा में पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसमें सभी पांच आरोपियों की मौत हो गयी.
“कभी-कभी पुलिसवाले उसकी हथकड़ी खोलकर कहते थे कि भागो. वह नहीं भागता था क्योंकि उसे पता था कि उसे फर्जी मुठभेड़ में मारने की साज़िश है.”
लेकिन वकारुद्दीन के परिवार को पुलिस की थ्योरी में खोट नज़र आता है. क्योंकि उनसे परिजनों का दावा है कि अपनी गिरफ्तारी के बाद से मुठभेड़ के दिन तक वकारुद्दीन अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित था. उसे पुलिसवाले बहुत ज्यादा प्रताड़ित करते और पीटते थे.
वक़ार ने चार साल पहले 2012 अप्रैल में भी अपने पिता से मुलाक़ात में बताया था कि वारंगल जेल से हैदराबाद अदालत तक के रास्ते में पुलिस वाले उसे बार-बार मारते थे. इसके लिए वकारुद्दीन के पिता ने तत्कालीन आंध्र प्रदेश के चीफ जस्टिस और राज्य मानवाधिकार आयोग को पत्र भी लिखा था ताकि उनके हस्तक्षेप से वकारुद्दीन को वारंगल जेल से किसी और जेल स्थानांतरित किया जा सके.
इस पत्र में लिखा है, ‘मैं भी बेटे से मिलने वारंगल के सेन्ट्रल जेल गया था. वहां उसने मुझे बताया कि उसे अदालत ले जाने वाला पुलिस दल इस उसे बहुत प्रताड़ित कर रहा है. उसे शक था कि वे लोग उस पर भागने का इलज़ाम लगाकर उए फर्जी एनकाउन्टर में मार देंगे.’ अहमद बताते हैं, ‘मेरा बेटा उन दिनों बहुत डरा हुआ था. वह मुझे बताता था कि पुलिस वाले उसे बहुत गालियां देते हैं और मारते हैं.’
अहमद आगे बताते हैं, ‘कभी-कभी पुलिसवाले उसकी हथकड़ी खोलकर कहते थे कि भागो. वह नहीं भागता था क्योंकि उसे पता था कि उसे फर्जी मुठभेड़ में मारने की साज़िश है.’
वक़ार की माँ सादिका बेग़म कहती हैं, ‘मक्का मस्जिद धमाकों के बाद मेरे बेटे का नाम बाकी सब बेक़सूरों के साथ आरोपियों के साथ लगा दिया गया था. बाक़ी सभी गिरफ्तार हो गए तो मेरा बेटा घर में छुप गया था.’
वक़ार के परिवार के लिए सबकुछ तभी बदल गया जब साल 2010 में वकारुद्दीन को दो पुलिसवालों को मारने के जुर्म में मुर्शिदाबाद से गिरफ्तार किया गया था. उसके साथ अमज़द भी गिरफ्तार हुआ था.
“अहमद का केस ख़त्म होने वाला था. पुलिसवालों को यह लगा होगा कि उसे मारने का यही आखिरी मौक़ा है.”
आंध्र प्रदेश पुलिस ने वक़ार पर आरोप लगाया था कि वह दरस्गाह जिहाद-ओ-शहादत नामक संगठन का सदस्य है और उसने बाद में अमज़द के साथ मिलकर तहरीक़-ए-गलबा-ए-इस्लाम की स्थापना की थी. वक़ार व उसके कथित संगठनों पर देश भर में पुलिस वालों पर हमले और हमलों की योजना बनाने का आरोप लगाया गया था. पुलिस ने यह भी आरोप लगाया कि साल 2007 में प्रदर्शनकारी भीड़ पर की गयी फायरिंग का बदला लेने के लिए वह पुलिसवालों को मारना चाहता था.
लेकिन इसके उलट वकार का परिवार इन सभी आरोपों को खारिज करता है और कहता है कि वक़ार इन मामलों में बिलकुल निर्दोष था. अहमद कहते हैं, ‘ये सभी ऊपर के लोगों का किया धरा है. उन्होंने मेरे बेटे को फंसा दिया. वह पढ़ाई करता था. उसका मज़हब में भरोसा था लेकिन वह कभी भी गलत लोगों के साथ नहीं रहा.’
प्रशासन की हरक़त, परिजनों के सवाल
अहमद कहते हैं, ‘मेरे बेटे के लगभग नब्बे प्रतिशत केस की सुनवाई हो चुकी थी. सरकारी वकील सबूतों के अभाव में कुछ भी साबित नहीं कर पा रहा था. इसकी पूरी संभावना थी कि आने वाले दिनों में उसे जमानत पर छोड़ दिया जाता.’ बकौल अहमद, बेटे से आखिरी मुलाक़ात में उन्हें लग गया था कि पुलिसवालों की मौत का बदला लेने के लिए पुलिस वाले वक़ार को मार सकते थे. उन्होंने कहा, ‘अहमद का केस ख़त्म होने वाला था. पुलिसवालों को यह लगा होगा कि उसे मारने का यही आखिरी मौक़ा है.’
अहमद उन तस्वीरों को भी दिखाते हैं जिसमें सभी मारे गए आरोपी हथकड़ियों से बंधे हुए हैं. वे पूछते हैं, ‘हथकड़ी से बंधा आदमी क्या हथियार लूट सकता है?’
मुर्दों पर मुक़दमा
मुठभेड़ में वक़ार को मार देने के बाद अलैर पुलिस थाने में पुलिस ने उलटे मरे हुए लोगों पर 120b, 143, 147, 397, 307, 224, 332 r/w, 149 IPC व S 25(1), 27 आर्म्स एक्ट पर केस लाद दिया. इस मामले में पुलिस के पास बयान के नाम पर उदय भास्कर का बयान था, जो कैदियों को ले जाने वाले पुलिस दल को लीड कर रहे थे.
इस बाबत अहमद कहते हैं, ‘कोई मरे हुए लोगों पर कैसे मुक़दमा दर्ज कर सकता है? हम लोग पुलिस के खिलाफ 302 के तहत मुक़दमा दर्ज करने गए थे. लेकिन पुलिस ने हमें 160 CrPC के तहत नोटिस थमा दिया और हमारी कम्प्लेन दर्ज करने से मना कर दिया.’
मरे हुए आरोपियों का फिर से पोस्टमॉर्टम कराने की अपील की सुनवाई करते हुए आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट की बेंच ने पुलिस से सवाल किया था कि वे कैसे मरे हुए लोगों पर मुकदमा कर सकते हैं. हालांकि ऐसा कहने के बाद भी अगले दिन चीफ जस्टिस ने अगले दिन की सुनवाई में कुछ नहीं कहा. अमज़द का मानना है कि उन पर सरकार का दबाव था.
यह भी एक मुद्दा है कि कानूनन इस मामले की न्यायिक जांच की जानी चाहिए थी. क्योंकि आरोपी न्यायिक हिरासत में थे और उन पर आरोप अभी तक सिद्ध नहीं हो पाए थे. लेकिन CrPC के 176(1)(A) का उल्लंघन करते हुए इस मामले की मजिस्ट्रेट जांच कराई गयी.
यहां तक कि आरोप साबित हुए बगैर ही सरकार इन पाँचों आरोपियों को ‘आतंकवादी’ कहने लगी थी. तेलंगाना के मुख्य सचिव द्वारा जारी किए आदेश में वकारुद्दीन, अमज़द, ज़ाकिर, हनीफ और इज़हार को साफ़ तौर पर Terror Operative यानी आतंकी हरकतें करने वाला या आतंकवादी कहा गया है. सादिका बेग़म कहती हैं, ‘हम सरकार का आदेश देखकर सकते में आ गए थे. कोई उन्हें कैसे आतंकवादी कह सकता है जब देश की किसी भी अदालत ने उनके खिलाफ आरोप तय नहीं किये हैं?’
भंवर में न्याय
पिछले साल अहमद ने तीन अन्य मारे गए आरोपियों के परिजनों के साथ मिलकर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इस याचिका में उन्होंने अपील की थी कि पुलिसदल के खिलाफ 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए, इस मामले की जांच से SIT को हटाया जाए और मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी जाए.
लगभग एक साल पहले दायर की गयी इस याचिका में भी तक एक भी सुनवाई नही हुई है. नाउम्मीदी और गुस्से का पूरा भार अहमद ने न्यायालय पर छोड़ रखा है. वे कहते हैं कि किन्हीं केसों की रोजाना सुनवाई होती है लेकिन हमारे केस की अभी तक तो एक भी नहीं हुई है. आखिर में वे कहते हैं, ‘अदालत को एकदम आज़ाद काम करना चाहिए, बिना किसी दबाव के. ताकि हम लोगों को न्याय मिल सके.’