फहमिना हुसैन, TwoCircles.net
दिल्ली: सड़कों पर भागती जिंदगियां, चिलचिलाती धूप और रोज़ा, इन सब में ज़ेहन कहां कुछ सोचने का मौका देती है. चलते-चलते रिक्शे की तलाश में कुछ दूर निकल आने के बाद चौराहे वाली मस्जिद के पास एक रिक्शेवाले को देखकर कुछ सुकून मिला. रिक्शेवाले से मंज़िल तक जाने को कहा और कुछ दूर जाने पर पता चला बुज़ुर्ग रिक्शेवाले भी रोज़े से हैं.
उन्हें देखकर पता नहीं क्यों उनके बारे में जाने की शिद्दत-सी होने लगी? बातों का सिलसिला शुरू होने पर पता चला 65 साल के निज़ामुद्दीन उत्तर प्रदेश के बहराईच के रहने वाले हैं. दिल्ली में पिछले 6 साल से रिक्शा चला रहे हैं. इस उम्र में कमाई के बारे में पूछने पर बताते हैं कि घर में पांच बेटियां हैं, जिनकी शादी उन पर फ़रायज़ है. एक १० साल का बेटा भी है, वह भी स्कूल जाता है. अगर वे नहीं कमायगें तो घर और फ़र्ज़ को कैसे पूरा कर पाएगें?
धूप में रोज़ा रहकर रिक्शा चलाने के मेरे इस सवाल पर वे मुस्कुराते हुए कहते हैं धूप की शिद्दतें भी मेरे हौसलों और ईमान को डिगा नहीं सकती. रोजा फर्ज है, पर घरों का दीनी माहौल और रोजेदारों के लिए अल्लाह की ओर से ईनामात के वादे इन्हें इस इबादत की अदायगी से पीछे हटने नहीं दिया.
आगे बताते हैं कि 11 साल की उम्र से ही नमाज़ और रोज़े के पाबंद रहे हैं. इफ्तार के लिए वे मस्जिद जाते हैं. सेहरी के लिए वे पास की चाय की दुकान से चाय ले लेते हैं. कहते हैं रमजान में चाय भी महंगी हो गई है, जो 10 रूपए की मिलती थी वही रमजान में 12 रूपए की हो गई है.
निज़ामुद्दीन को मोतियाबिंद है. इस वजह से उन्हें रिक्शा चलाने में मुश्किल आती है. लेकिन इतने मुश्किलों के बाद भी वे अपना ऑपरेशन नहीं करा पा रहे हैं. उनका कहना है की अगर वे ऑपरेशन कराते हैं तो कुछ दिन वो रिक्शा नहीं चला पाएगें फिर घर का खर्च कैसे चल पाएगा?
रमजान आते ही उन्हें ईद की परेशानियां सताने लगती है कि घर में बच्चों के कपडे बनवाने होंगे. खुश होते हुए बताते हैं की घरवालों को उम्मीद लगी रहती है बाबा ईद पर नए कपडे लेकर आएंगे. इस उम्र में भी उनके हौसले कम नहीं हैं. सभी परेशानियों के बीच वे ईद और रमजान के लिए तत्पर हैं. हर मुश्किलों के बावजूद में ख्व़ाब पूरे करने और ईबादत को आमादा हैं.