नासिरुद्दीन हैदर खान
राम पुनियानी से बातचीत की यह दूसरी क़िस्त है. इसका पिछ्ला हिस्सा यहां पढ़ा जा सकता है. इस बातचीत का अगला और आख़िरी हिस्सा दो दिनों बाद यानी बुधवार को प्रकाशित किया जाएगा.
राम पुनियानी
देश की मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक हालात के बारे में आपके क्या विचार हैं?
मोदी सरकार के आने के बाद पिछले कुछ सालों में राजनीतिक हालात और बिगड़े हैं. भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए की सत्ता में आने और भाजपा को अपने बलबूते मिली बहुमत के बाद इससे जुड़े संगठन और संघ परिवार काफी सक्रिय हो गए हैं. अल्पसंख्यकों और उनसे वैचारिक रूप से मतभेद रखने वालों के खिलाफ तरह-तरह के बयान दिए जा रहे हैं. चुनाव के दौरान किए गए लम्बे-चौड़े वादे हवा हो गए हैं. खराब होती आर्थिक हालत, रोजगार के नए मौके पैदा न होने और जन विरोधी नीतियों की वजह से लोगों में जबरदस्त असंतोष है.
अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना बढ़ी है. पानसारे, दाभोलकर, कलबुर्गी जैसे बुद्धिजीवियों की हत्याएं कर दी गयीं. और कई प्रगतिशील बुद्धिजीवियों, जैसे – जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के विद्वानों, पर लगातार हमले किए जा रहे हैं. विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को खत्म किया जा रहा है. हमारे चारों ओर, गोमांस, लव जिहाद, घर वापसी जैसे मुद्दे छाए हुए हैं. यही नहीं, एक-एक कर विश्वविद्यालयों पर हमले किए जा रहे हैं. एफटीआईआई से इसकी शुरुआत हुई. इसके बाद आईआईटी मद्रास, जेएनयू और एचसीयू की स्वायत्तता को कुंद करने की कोशिश हुई ताकि बेखौफ सोचने वालों को काबू में किया जा सके और शैक्षणिक संस्थानों में आरएसएस के विचार को थोपा और संघ से जुड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को स्था़पित किया जा सके. इन सभी जगहों पर खास तरह का तरीका देखने को मिल रहा है. प्रगतिशील छात्र संगठनों के खिलाफ एबीवीपी शिकायत दर्ज कराती है. इस शिकायत पर स्थानीय भाजपा नेता हंगामा करते हैं और विश्वविद्यालयों पर प्रगतिशील छात्र संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव डालते हैं. एफटीआईआई की हड़ताल को तोड़ना या जेएनयू, एचसीयू पर हमला, इसके जीते-जागते उदाहरण हैं. इसके साथ ही राष्ट्रवाद और देशभक्ति के इर्दगिर्द नए भावनात्मक मुद्दे भी खड़े किए जा रहे हैं. ‘भारत माता की जय’ बोलने को किसी की देशभक्ति सिद्ध करने का पैमाना बनाने की कोशिश, हिन्दुत्व राजनीति और हिन्दू राष्ट्रवाद के बढ़ते प्रभुत्व का संकेत है. लगातार ऐसी घटनाएं देखने में आ रही हैं जब लोकतांत्रिक माहौल को खत्म करने के लिए ऐसे मुद्दों का इस्तेमाल किया गया. साध्वी, साक्षी, योगी और कैलाश विजयवर्गीय जैसे लोग इन सबमें अगुआ हैं. हालांकि कुछ लोग के लिए यह हाशिए पर हैं, लेकिन वे बार-बार साबित कर रहे हैं कि वे ही हिन्दू राष्ट्रवाद के असली चेहरे हैं.
साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता हाल के दिनों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले शब्दों में हैं. क्या ये महज शब्द हैं या कुछ और?
धर्म के नाम पर दकियानूसी और संकीर्ण विचार की पैरवी के लिए साम्प्रदायिकता शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. दूसरी ओर, हमारे संविधान की रूह में पैबस्त बहुलतावादी मूल्यों की हिफाजत की कोशिश धर्मनिरपेक्षता है. इन शब्दों का गहरा वैचारिक अर्थ है. ये शब्द अलग-अलग सामाजिक समूहों के राजनीतिक एजेण्डे और मकसद को बताते हैं.
राम मंदिर, शाहबानो केस, लव जिहाद, घर वापसी जैसे बांटने वाले मुद्दों के जरिए साम्प्रदायिकता ने अपनी जड़ें मजबूत की हैं. यह साम्प्रदायिक राजनीति, इस संकीर्ण समझदारी पर आधारित है कि एक धर्म के लोग ही एक राष्ट्र बनते हैं. इस विचारधारा ने दूसरे धर्म के लोगों के प्रति नफरत फैलायी है. यह विचार दूसरे के प्रति नफरत और हिंसा की वजह बनती है. नतीजतन, समुदाय धार्मिक आधार पर अलग-अलग समूहों में बंट जाते हैं. इन सब में बेगुनाह पिसते हैं. यह मौजूदा समाज का बड़ा रुझान बनता जा रहा है.
दूसरी ओर, धर्मनिरपेक्षता वह विचारधारा है जहां राज्य या सरकार किसी धर्म से रहनुमाई या निर्देशित नहीं होती है. जहां राज्य धार्मिक बहुलता की इज्जत करता है. बहुलतावादी मूल्यों को बरकरार रखता है. इसीलिए, साम्प्रदायिकता के विचार को मानने वाले सामाजिक समूह, धर्मनिरपेक्ष विचारों और ऐसे मूल्यों की राजनीति करने वालों पर हमले करते हैं.
अभी राष्ट्र, देशभक्ति पर काफी बहस हो रही है. आज तो राष्ट्रो के कई विचार सुनने को मिलते हैं. वैसे राष्ट्र का विचार क्या है?
जी हां, राष्ट्र और देशभक्ति के विचार को भावनात्मक मुद्दे के रूप में उछाला जा रहा है. इन मुद्दों के इर्दगिर्द दीवानगी पैदा की जा रही है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) पर हमले के बाद लगातार ऐसी चीजें देखने में आ रही हैं. देखा जाए तो राष्ट्र एक आधुनिक अवधारणा है. यानी एक खास भौगोलिक इलाके में रहने वाले लोग जब बेहतर समाज बनाने के लिए जब एक खास मकसद को आगे बढ़ाने के लिए एक साथ आते हैं तब राष्ट्र बनता है. दूसरी ओर देशभक्ति राष्ट्र या राज्य के प्रति वफादारी का नाम है. इसकी भावना लोगों में पैदा की जाती है. देशभक्ति के पैमाने में कोई एकरूपता नहीं है. संयोग से आज जो सबसे ज्यादा जोर से देशभक्ति का नारा उछाल रहे हैं, वे वही हैं जो राष्ट्रनिर्माण की प्रक्रिया से पूरी तरह अलग रहे हैं. औपनिवेशिक दौर में भारत धीरे-धीरे राष्ट्र के रूप में तब्दील हुआ. उससे पहले तो हमारे यहां राजशाही थी. राजा और प्रजा की व्यवस्था जन्माधारित थी. यह व्यवस्था, राजनीतिक, सामाजिक और जेण्डर गैरबराबरी पर आधारित थी. जब यह इलाका ब्रिटिश उपनिवेश का हिस्सा बना तो साथ ही साथ आधुनिक उद्योग और शिक्षा बढ़ी. समाज में उद्योगपतियों, मजदूरों, आधुनिक शिक्षित लोगों का नया समूह पैदा हुआ. ये सभी वर्ग स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के विचार पर आधारित भारतीय राष्ट्र के वास्ते औपनिवेशिक ताकत के खिलाफ संघर्ष के लिए एक साथ आए.
जमीदारों, राजाओं और ऊंची जातियों के रूप में पुराने वर्गों ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के विचार वाले इस नए उभार को अपने सामाजिक दबदबे के खिलाफ चुनौती के रूप में देखा और इसका विरोध किया. ये एकजुट हुए और राष्ट्रवाद के नाम पर अपने-अपने धर्मों का चोला ओढ़ लिया. इन्हों ने सामंती दौर की प्रथाओं और मूल्यों को बढ़ाने की कोशिश की. इन्होंने नई शब्दावलियों के साथ जाति और जेण्डर की ऊंचनीच की व्यवस्था को आगे बढ़ाने का प्रयास किया. ये भारतीय राष्ट्र के निर्माण से अलग रहे. वे तो मुस्लिम राष्ट्रवाद और हिन्दू राष्ट्रवाद का राग अलापते रहे.
आज हमारे मुल्क में मोदी सरकार के रूप में नयी सत्ता व्यवस्था आने के बाद हिन्दू राष्ट्रवादी फिर जोर लगा रहे हैं. वे भारतीय राष्ट्र के उस विचार पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं, जो सबको साथ लेकर चलने में यकीन करता है और बराबरी पर आधारित है. जहां तक भारत का सवाल है, यह राष्ट्र का आधुनिक विचार है. दूसरी ओर, मुस्लिम राष्ट्रवादी और हिन्दू राष्ट्रवादी अतीत का भ्रामक गौरव गान करते हैं. वे ऐसा गैरबराबरी के विचार को छिपाने के लिए करते हैं. यह गैरबराबरी उनके राजनीतिक एजेण्डे का अंतर्निहित गुण है.
वैसे, हमारे संविधान में राष्ट्र की क्या अवधारणा है?
जो लोग अतीत के गौरव और मूल्यों का राग अलापते रहे हैं, वे आज देशभक्ति का पैमाना तय कर रहे हैं. वे लोगों को खौफजदा कर देशभक्ति का टेस्ट ले रहे हैं. देशभक्ति का यह इम्तिहान भारतीय संविधान के मूल्यों के दायरे से पूरी तरह बाहर की चीज है. भारतीय संविधान यह शब्द इस्तेमाल करता है, ‘हम भारत के लोग’ और इसमें ‘हम’ बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है. ‘हम’ यानी हम सभी लोग चाहे वे किसी धर्म, जाति और लिंग के हों. संविधान, राष्ट्र के विचार के मामले में बहुत साफ है. यह ‘हम’ हैं और यह हम इस देश के सभी नागरिक हैं. यह ‘हम’ भारत की नींव है. भारतीय संविधान की नींव हैं. इसके उलट सम्प्रदायवादियों का ‘हम’ एक धर्म के मानने वाले ही हैं. यही नहीं, उनके ‘हम’ का दायरा समाज ऊंची जाति और उन जातियों के मर्दों तक सीमित है.
देशभक्ति या राष्ट्रभक्ति जैसे शब्द भी इस वक्त काफी चर्चा में हैं. क्या ये एक ही शब्द हैं या अलग-अलग हैं?
जब से मौजूदा सरकार ने जेएनयू प्रकरण के इर्दगिर्द मुद्दों को उठाना शुरू किया है तब से यह शब्द हमारे सामाजिक बहस का प्रमुख मुद्दा बन गया है. जेएनयू में नौ फरवरी को एक मीटिंग हुई. इसमें कुछ नकाबपोश लोगों ने कश्मीर के समर्थन में और भारत के विरोध में नारे लगाए. इसके बाद कन्हैया कुमार जैसे छात्र नेताओं पर मुकदमा कर दिया गया उन्हें राष्ट्रद्रोही बताया गया है. उनकी गिरफ्तारी हुई. इनमें से कुछ लोगों पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा भी किया गया.
देखा जाए तो राष्ट्रवाद का विचार ब्रिटिश दौर में उपनिवेश विरोधी आंदोलन के रूप में आया. यह भारतीय राष्ट्रवाद था. इसी के साथ मुस्लिम राष्ट्रवादी और हिन्दू राष्ट्रवादी भी उभरे लेकिन ये कभी भी ब्रिटिश विरोधी आंदोलन का हिस्सा नहीं रहे. यही नहीं, संविधान तो हमें राज्य/सरकार की नीतियों की आलोचना का हक देता है. राष्ट्रवाद जैसा शब्द संविधान का हिस्सा नहीं है. राष्ट्रद्रोह जैसी शब्दावली उनके लिए इस्तेमाल की जाती है जो राज्य से अंसतुष्ट हैं और हिंसा को बढ़ावा देते हैं या जहरीला भाषण देते हैं. इस वक्त यह प्रावधान उन सभी लोगों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है जो सरकार से असहमत हैं. शुरू से ही उत्तर पूर्व के राज्यों में सरकार की काफी आलोचना होती थी और वहां अलगाववादी संगठन भी थे. पिछले कई दशकों से कश्मीर की भी यही कहानी है. अलगाव की सबसे पहले मजबूत आवाज तो तमिलनाडु से उठी जब हिन्दी को थोपने की कोशिश की गई. महज भारत विरोधी नारे लगाना, अलगाववाद नहीं है. हां, अगर इसके साथ हिंसक उकसावा होता है तो इसे राष्ट्रद्रोह माना जाता है.
[नासिरुद्दीन हैदर पत्रकार हैं और लम्बे वक़्त से सामाजिक मुद्दों पर लिखते रहे हैं. कई नौकरियां कर चुकने के बाद उन्होंने अब लिखने का आधार स्वतंत्र कर दिया है. इस बातचीत के लिए TwoCircles.net उनका आभारी.]