अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
बिसाहड़ा (दादरी) : जिस दादरी के बिसाहड़ा हत्याकांड के सहारे भाजपा यूपी के सारी सीटों पर पर चुनाव जीतने का कोशिश कर रही थी, उस ‘कोशिश’ का असर दादरी विधानसभा सीट पर भी पड़ता नज़र नहीं आ रहा है. यहां भाजपा की कोशिशों का नुक़सान सिर्फ़ इतना है कि बिसाहड़ा गांव का सामाजिक व साम्प्रदायिक ताना-बाना कमज़ोर हो गया है. यहां के बच्चें अब राजनीतिक हिंदू के तौर पर बड़े हो रहे हैं. इनके भीतर बढ़ता ज़हर कभी भविष्य में किसी की जान ले ले तो हैरानी नहीं होगी.
पहले चरण के मतदान के दिन शनिवार को हम बिसाहड़ा गांव गए. जैसे ही दादरी शहर से एनटीपीसी सड़क से कुछ किलोमीटर आगे बढ़ते हैं. बिसाहड़ा का महाराणा प्रताप प्रवेश-द्वार हमारा स्वागत करता है. प्रवेश द्वार पर ही महाराणा प्रताप घोड़े पर सवार विजय की मुद्रा में नज़र आते हैं. उनके पीठ पर तिरंगा बंधा है, तो वहीं एक हाथ में वो भाला लिए हुए हैं, लेकिन अब भाले के साथ भगवा ध्वज भी चिपका दिया गया है.
लोगों की मानें तो यह भगवा ध्वज महाराणा प्रताप को 28 सितंबर 2015 के बाद लगाया गया हुआ है. यह वही तारीख़ है, जिस दिन एक भीड़ ने इसी गांव में बरसों से रह रहे 60 साल के अख़लाक़ अहमद को गोमांश खाने की अफ़वाह में पीट-पीटकर मार डाला था.
अख़लाक़ के घर के बाहर आज भी सरकारी ताला लटक रहा है. आस-पास के तीन और घर भी सुने पड़े हैं. मकड़ी के जाले व तालों पर पड़े धूल इस बात की गवाही दे रहे हैं, यहां सालों से कोई नहीं रह रहा है. इस घर के बाहर ही चार बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं. हमारे फोटो लेने पर इन्हें हंसी आती है. ये पूछने पर कि ये अख़लाक़ का ही गांव है ना? इस पर वो सारे बच्चे तुंरत भड़क जाते हैं. ‘ये क्या अख़लाक़ के बाप का गांव है. ये बिसाहड़ा है बिसाहड़ा…’ हालांकि यही बच्चे कभी अख़लाक़ को ताऊ जी कहते थे, लेकिन आज इन्हें अख़लाक़ के नाम से ही नफ़रत है.
ये बच्चे अपनी बातचीत में सबसे पहले मीडिया पर गुस्सा दिखाते हैं. इनका मानना है कि, ‘मीडिया सिर्फ़ अख़लाक़ की बात करती है. हम हिन्दुओं की बात करने वाला कोई नहीं है.’
इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा अंकुर व 11वीं क्लास में पढ़ने वाला विजय बताते हैं कि, ‘अख़लाक़ ने गाय काटी, उसको मार दिया. हमारी गऊ माता को कोई काटेगा, उसको भी इसी तरह मार देंगे.’ क्यों? ये पूछने पर वो गुस्से में कहते हैं, ‘गाय को हम पूजते हैं. हमारे घर में रोटी बनती है तो पहली रोटी हम गउ माता के लिए निकालते है. कोई हमारी गउ माता को काटेगा हम उसको काट देंगे.’
11वीं क्लास में पढ़ने वाला अनुज की भी शिकायत है कि, ‘मीडिया इसे अख़लाक़ का गांव क्यों बोलती है. अख़लाक़ यहां रहता था. हमने उन्हें रहने दिया. लेकिन ये क्या उसके बाप का गांव है.’
ये बच्चे बातचीत में यह भी बताते हैं कि, ‘सरकार बदल जाएगी तो गांव के जो भी बच्चे जेल में हैं, वो सब छूट कर आ जाएंगे’ ये पूछने पर कि ये बात आप कैसे कह रहे हो, तो जवाब था, ‘भाजपा के नेताओं की यहां मीटिंग हुई थी. जिसमें यह कहा गया कि सरकार बनते ही सारे बच्चे छूटा लिए जाएंगे.’
इन बच्चों के दिमाग़ में भरा साम्प्रदायिक ज़हर इनकी बातों से साफ़ झलक रहा था. इन्होंने स्पष्ट तौर पर बताया कि हमने और पूरे गांव ने भाजपा को वोट दिया है, क्योंकि भाजपा ही हम हिन्दुओं की पार्टी है. लेकिन हमें इन्हीं बच्चों के बीच अंकित भी मिला, जिसने साफ़ तौर पर बताया कि उसने अपनी ज़िन्दगी का पहला वोट सम्प्रदाय के नाम पर नहीं, बल्कि विकास के नाम पर दिया है. अंकित अपनी बातों में बताता है कि, ‘गांव का सामाजिक ताना-बाना कमज़ोर हुआ है. इसे और कमज़ोर करने की कोशिशें भी लगातार चल रही हैं.’
अख़लाक़ के पड़ोसी राजेन्द्र सिंह बताते हैं, ‘अख़लाक़ के घर की शादी-बियाह मेरे ही घर के बाहर हुई हैं. हमारा रोज़ का उठना-बैठना था. उनकी-हमारी बेटियां सहेली थीं.’
वो आगे बताते हैं कि, ‘घर छोड़कर जाते हुए अख़लाक के भाई जान मुहम्मद मुझसे कहकर गया था कि हमारा घर देखते रहिएगा.’ राजेंद्र सिंह गांव के उन लोगों में से हैं जिन्हें अख़लाक़ की मौत और उनके घर वालों के जाने का बेहद अफ़सोस है.
अब हम इस गांव के दूसरी छोर की ओर जाते हैं. हर घर पर भाजपा का ही झंडा नज़र आता है. लोग बताते हैं कि ये पूरा गांव ठाकुरों का है. लेकिन कहीं-कहीं दूसरी जाति के लोग भी हैं. लेकिन इनकी इनकी संख्या काफी कम है. लोगों के मुताबिक़ यहां मुसलमानों के क़रीब 30 घर होंगे.
हमारी मुलाक़ात एडवोकेट मुनेन्द्र सिंह से होती है. मुनेन्द्र सिंह की भी मीडिया से खूब सारी शिकायतें हैं. वहीं सर्वेश व योगेश को भी इस बात का गुस्सा है कि हमें हिन्दू होने की सज़ा मिल रही है. अख़लाक़ के मौत पर तो अखिलेश, केजरीवाल, ओवैसी सब आएं, लेकिन रवि की मौत पर कोई नहीं आया. सिर्फ़ भाजपा के नेताओं ने साथ दिया.
इस गांव में एक छोटी सी मस्जिद भी है. लोगों के मुताबिक़ ये मस्जिद काफी पुरानी है. यहां क़रीब में ही रहने वाली एक महिला बताती हैं कि, अख़लाक़ की हत्या के बाद इस मस्जिद से लाउडस्पीकर के ज़रिए कभी भी अज़ान नहीं दी जा सकी है. क्योंकि अब इसकी इजाज़त नहीं है. हालांकि वो यह भी बताती हैं कि, ‘वैसे ये मस्जिद के लिए ज़मीन कभी ठाकुरों ने ही दी थी. मरम्मती के काम में भी उन्होंने ही मदद किया था, लेकिन अब सबकुछ बदल चुका है.’
70 साल की एक बुजुर्ग महिला का कहना है कि, ‘वैसे तो अभी इस गांव में कोई समस्या नहीं है. लेकिन उस दिन का डर आज तक दिल में बसा हुआ है. गांव के कई लोग घर बेचकर जा चुके हैं. मेरे पांच बेटे हैं. तीन बेटों ने अपना घर यहां के ठाकुरों को बेच दिया है.’
चुनावी राजनीति ने इस गांव में बहुत गड़बड़ी पैदा की है. इसकी झलक साफ़ तौर पर हर चेहरे में नज़र आता है. यहां के दोनों समुदायों में इंसाफ़ का अहसास भी कम हो गया है या यों कहें कि गायब हो गया है. अख़लाक़ के घर के क़रीब में ही रवि सिसोदिया का भी घर है. रवि अख़लाक़ की हत्या के आरोप में जेल में बंद था और एक साथ तक जेल में रहने के बाद इसकी जेल में ही मौत हो गई.
रवि की जेल में मौत ने साम्प्रदायिक ताक़तों बल्कि यूं कहें भाजपा नेताओं को हरकत में ला दिया था, जिन्होंने रवि की लाश तीन दिन तक रखकर बिसहड़ा में धरना प्रदर्शन किया. केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा, संगीत सोम समेत कई हिंदूवादी नेता मौक़े पर पहुंचे और विधवा पूजा सिंह को हर मुमकिन मदद का वादा दिया. लेकिन ये वादा भी सिर्फ़ चुनावी ही नज़र आया. हक़ीक़त में इन दोनों नेताओं ने इस परिवार की कोई मदद अब तक नहीं की है.
21 साल की रवि की पत्नी पूजा बताती हैं कि, ‘संगीत सोम ने वादा किया था कि वो मेरी एक साल की बेटी की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाएंगे, मुझे नौकरी दिलाएंगे. लेकिन इस वादे के बाद संगीत सोम दोबारा कभी भी नहीं आएं. चुनाव के दौरान भी कोई हाल पूछने नहीं आया.’
रवि की मां निर्मला का भी कहना है कि, ‘राजनाथ सिंह गांव में आए थे. लेकिन वो भी हमें झांकने तक को नहीं आएं. रवि के मौत का ज़िक्र तक नहीं किया.’
भाजपा के नेताओं से इस परिवार की अपनी शिकायते हैं. लेकिन ये पूछने पर कि आपने वोट किसको दिया है, तो जवाब था, भाजपा… इस परिवार से बात करने पर इस बात का अंदाज़ा साफ़ तौर पर लगता है कि इनके दिल में यह बात बैठ चुकी है कि भाजपा ही उनकी मदद कर सकती है, इसलिए उन्होंने वोट भाजपा को ही दिया. शायद ये परिवार अभी तक यह नहीं समझ पाई हैं कि गाय पर राजनीति भाजपा ने शुरू की और उनका बेटा उसी राजनीति की भेंट चढ़ गया है. अखिलेश यादव को ये मुसलमानों का नेता मानते हैं. उनकी शिकायतें हैं कि अखिलेश ने हमारी कोई मदद नहीं की. हालांकि ये बात अलग है कि अखिलेश सरकार ने ही इस परिवार को 20 लाख रूपये की आर्थिक मदद की है.
रवि की परिवार की तरह गांव के अधिकतम लोगों ने भाजपा को ही वोट दिया है. गांव के महाराणा संग्राम सिंह इंटरमीडिएट कॉलेज में आदर्श पोलिंग बूथ बनाया गया है. पुलिस और पैरा मिलट्री फोर्स अन्य इलाक़ों की तुलना में थोड़ी ज़्यादा है. बोलिंग बूथ से थोड़ी ही दूर पर भाजपा और राष्ट्रवादी प्रताप सेना के कार्यकर्ता अपनी-अपनी गुमटी में बैठे हुए हैं. सपा-कांग्रेस गठबंधन, बसपा या फिर रालोद का एक भी कार्यकर्ता या झंडा यहां नहीं नज़र आया. यहां ये बात भी बताते चलें कि बिसाहड़ा के लोगों में मतदान को लेकर काफी उत्साह था. यहां कुल 72 फ़ीसदी मतदान हुआ.
ये भी बताते चलें कि 2012 में नए परिसीमन के बाद दादरी विधानसभा सीट का चेहरा काफी बदल गया है. अब ये सीट पूरी तरह गुर्जर बाहुल्य सीट है. यदि आंकड़ों की बात करें तो यहां गुर्जर वोटरों की संख्या 1 लाख 20 हज़ार, मुस्लिम वोटरों की संख्या 48 हज़ार, ठाकुर वोटरों की संख्या 20 हज़ार, ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 12 हज़ार, जाट वोटरों की संख्या 6 हज़ार, वैश्य की 6 हज़ार, एससी-एसटी की 42 हज़ार व पंजाबी मतदाताओं की संख्या 7 हज़ार है.
स्पष्ट रहे कि इस बार के चुनाव में इस सीट पर 14 उम्मीदवार मैदान में थे. कांग्रेस से समीर भाटी, भाजपा से तेजपाल सिंह नागर, बसपा से सतवीर सिंह गुर्जर, रालोद से रविन्द्र सिंह भाटी, राष्ट्रीय किसान विकास पार्टी से जगदीश, राष्ट्रवादी प्रताप सेना से रमेश सिंह रावल, हिन्द कांग्रेस पार्टी से रामधान और शिवसेना से संजय कुमार हैं. इसके अलावा 6 उम्मीदवार बतौर निर्दलीय अपनी क़िस्मत आज़मा रहे हैं.
2012 दादरी विधानसभा चुनाव में यहां बसपा के सतवीर सिंह गुर्जर कुल 81137 वोट पाकर भाजपा के नवाब सिंह नागर को 37297 वोटों से हराया था. नवाब सिंह नागर को 43840 वोट मिले थे. यहां यह भी बताते चलें कि कांग्रेस के समीर भाटिया तीसरे नंबर पर रहते हुए 37764 वोट हासिल किए थे, वहीं सपा के राजकुमार भाटी को भी 23191 वोट मिले थे. इस बार सपा-कांग्रेस का गठबंधन है और इस गठबंधन से कांग्रेस समीर भाटिया ही चुनाव मैदान में थे. लोगों की माने तो समीर भाटिया भाजपा के तेजपाल सिंह नागर को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. हालांकि ज़्यादातर लोग कांग्रेस की जीक पक्की मान रहे हैं.
कभी दादरी के बिसाहड़ा हत्याकांड ने पूरे देश भर के राजनीत को प्रभावित किया था, मगर इस गांव से बाहर लोगों की सुगबुगाहट बताती है कि 11 मार्च को जो नतीजे आएंगे, वो सम्प्रदायवाद की इस आग से खासे दूर होंगे.
शुक्र है कि अख़लाक़ और गोमांस के नाम पर हुई राजनीत बिसहड़ा गांव तक ही सिमट कर रह गई और पूरे दादरी में पांव नहीं पसार पाई है. हालांकि भाजपा दादरी के भरोसे पूरे यूपी की चुनाव को पॉलराईज करने की पूरज़ोर कोशिश में लगी हुई थी. मगर प्रथम चरण के चुनाव में दादरी विधानसभा सीट पर जो समीकरण नज़र आया, उसने उसकी उम्मीदों पर पानी ज़रूर फेर दिया है.