अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली : ‘सबका साथ —सबका विकास’ की बात करने वाली केन्द्र की मोदी सरकार अमिताभ कुंडू कमेटी रिपोर्ट पर कुंडली मार कर बैठ गई है. ये कमेटी मुसलमानों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पिछड़ेपन की स्थिति जानने के लिए गठित सच्चर समिति की सिफ़ारिशों के क्रियान्वयन की हक़ीक़त का जायज़ा लेने के लिए बनाई गई थी.
ये रिपोर्ट वर्तमान हालातों में बेहद ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके आधार पर मुसलमानों के ख़ातिर किए गए वायदों की ज़मीनी हक़ीक़त का अंदाज़ा होता है. इनकी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पिछड़ेपन की स्थिति में जो लगातार बड़ी गिरावट आई है और ख़ास तौर पर सरकारी नौकरियों में इनका प्रतिशत घटा है, ये रिपोर्ट उस सच का आईना है.
मोदी सरकार की इस रिपोर्ट पर सोची समझी ख़ामोशी का पता लोकसभा में भाजपा सांसद चन्द्र प्रकाश जोशी के ज़रिए पूछे गए सवालों से लगता है. जोशी ने संसद में 15 मार्च 2017 को अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी से पूछा था, क्या अमिताभ कुंडू समिति ने यह टिप्पणी की थी कि देश में अल्पसंख्यकों विशेषतः मुसलमानों के वंचित रहने के संबंध में मौजूदा वित्तीय संसाधन और भौतिक लक्ष्य अपर्याप्त हैं. यदि हां, तो सरकार द्वारा मुसलमानों की इन दशाओं में सुधार करने के लिए क्या क़दम उठाए गए हैं.
सांसद जोशी के इस सवाल पर मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी का जवाब है, सच्चर समिति रिपोर्ट पर भारत सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों के कार्यान्वयन की प्रक्रिया का मूल्यांकन करने एवं अल्पसंख्यकों के कल्याण के हेतु प्रधानमंत्री के नए 15 सूत्री कार्यक्रम की प्रभावोत्पादिकता के मूल्यांकन तथा नीतियों और कार्यक्रमों में हस्तक्षेप और सुधारात्मक उपायों की सिफ़ारिश के लिए जेएनयू के प्रो. अमिताभ कुंडू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन 05 अगस्त 2013 को किया गया था. समिति ने 09 अक्टूबर 2014 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जो इस मंत्रालय के विचाराधीन है.
यही नहीं, इससे पूर्व 26 जुलाई 2016 को राज्यसभा में कांग्रेस सांसद हुसैन दलवई, 08 मार्च 2016 को राज्यसभा कांग्रेस सांसद अविनाश पांडे, 12 मई 2015 को तेलंगाना की राज्यसभा सांसद गुन्डू सुधारानी, 03 मार्च 2015 को राज्यसभा कांग्रेस सांसद प्रो. एम.वी. राजीव गौडा और 25 नवम्बर 2014 को राज्यसभा सांसद मोहम्मद अदीब ने भी कुंडू रिपोर्ट के क्रियान्वयन के संबंध में सवाल पूछा था. तब भी नक़वी ने कहा था, समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है. इसे सभी मंत्रालयों व विभागों और नीति आयोग को समिति की सिफ़ारिश पर अपने विचार/ टिप्पणियां देने का अनुरोध किया गया है. आगे की कार्रवाई सभी संबंधित हितकारकों से टिप्पणियां प्राप्त होने के आधार पर होगी.
कांग्रेस सांसद हुसैन दलवई ने महाराष्ट्र में मुस्लिमों की स्थिति पर डॉ. महमुदूर रहमान समिति रिपोर्ट और पश्चिम बंगाल में लिविंग रिएलिटी ऑफ वेस्ट बंगाल नामक एक रिपोर्ट पर सरकार के ज़रिए लिए गए क़दम के बारे में भी सवाल पूछा था. लेकिन अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री का जवाब था, महाराष्ट्र की ऐसी कोई रिपोर्ट मंत्रालय को प्राप्त नहीं हुई है. पश्चिम बंगाल की सरकार ने सूचित किया है कि ऐसा अध्ययन एक निजी संगठन द्वारा किया गया है और उसने उस अध्ययन का कोई संज्ञान नहीं लिया है.
बताते चलें कि इस रिपोर्ट में डाइवर्सिटी आयोग बनाने के साथ-साथ कई सुझाव दिए गए हैं. समिति का मानना है कि कई मामलों में सच्चर कमेटी की सिफ़ारिशों को लागू किए जाने का असर नज़र आ रहा है. हालांकि ये रिपोर्ट यह भी बताती है कि सरकारी क्षेत्र में रोज़गार बढ़ नहीं रहा है बल्कि कम हो रहा है और आरक्षण सरकारी क्षेत्र तक सीमित है. इस रिपोर्ट के मुताबिक़, मुस्लिम समुदाय में ऐसे बहुत से पेशे हैं जिनमें वे अनुसूचित जातियों वाले काम करते हैं. इसलिए उन्हें भी अनुसूचित जाति के दर्जे में रखना चाहिए, उन्हें भी आरक्षण देना चाहिए. अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए जो क़ानून है (अनुसूचित जाति और जनजाति, अत्याचार निवारण, क़ानून, 1989) उसके दायरे में मुस्लिम समुदाय को भी लाया जा सकता है.
ये रिपोर्ट सरकार को यह भी सुझाव देती है कि, रोज़गार के क्षेत्र में मुसलमानों की ऋण ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं, उन्हें बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए. शिक्षा के क्षेत्र में भी मुस्लिम लड़कियां विशेषकर 13 साल के बाद स्कूल छोड़ देती हैं, उसमें सुधार की ज़रूरत है.
स्पष्ट रहे कि अमिताभ कुंडू की रिपोर्ट का मुसलमान तबक़े को बेसब्री से इंतज़ार था. मोदी सरकार ने जिस तरह से अपनी छवि तोड़ने और सबका विकास करने का वादा किया था, ये रिपोर्ट उसके लिए एक मानक की तरह थी. अगर इसकी सिफ़ारिशों पर अमल किया जाता तो ये मोदी सरकार के प्रतिबद्धता की गांरटी होती. मगर इसे ठंडे बस्ते में डालकर केन्द्र सरकार ने अपने इरादे साफ़ कर दिए हैं.
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