अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली : पूरा बिहार बेहाल है. सोशल मीडिया पर बाढ़ की तस्वीरें व वीडियो मन को विचलित कर देने वाली हैं. सीमांचल की तस्वीरों को देखकर तो किसी के भी आंखों में आंसू आ सकते हैं. इस बीच चम्पारण की स्थिति भी भयावह होती जा रही है. अब वहां से भी तस्वीरें सामने आने लगी हैं.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ अब तक 226 लोगों की मौत हो चुकी है. हज़ारों गायब हैं. हालांकि वास्तविक आंकड़ें इससे कहीं अधिक हैं.
यहां यह भी स्पष्ट रहे कि बाढ़ के इस क़हर से सिर्फ़ बिहार ही नहीं, असम और पश्चिमी बंगाल का उत्तरी हिस्सा और यूपी के कई ज़िले भी जूझ रहे हैं. इससे पहले गुजरात, हिमाचल प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, राजस्थान और त्रिपुरा भी बाढ़ की क़ुदरती मार को झेल रहे हैं.
इस बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से राज्य में बाढ़ के हालात पर चर्चा कर चुके हैं. उन्होंने बिहार को स्थिति से निपटने के लिए केंद्र की तरफ़ से तमाम सहयोग का आश्वासन दिया है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इससे पहले असम के मुख्यमंत्री को भी मदद का भरोसा दे चुके हैं. गुजरात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के भाजपा सांसदों से राज्य के बाढ़ प्रभावित लोगों के मदद करने का आग्रह किया और कहा कि केन्द्र सरकार गुजरात में सभी आवश्यक राहत उपलब्ध कराने के लिए वचनबद्ध है.
मगर मीडिया में आए ख़बरों के मुताबिक़ अभी तक किसी भी राज्य को केन्द्र सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहीं की गई है और न ही लोगों को ‘प्रधानमंत्री राहत कोष’ में आर्थिक मदद करने की कोई घोषणा की गई है. जबकि इससे पूर्व की सरकारें हर बाढ़ से निपटने के लिए ‘प्रधानमंत्री राहत कोष’ में देश के आम लोगों से आर्थिक मदद की अपीलें करती रही हैं.
हालांकि इस बीच देश भर के राजस्व अधिकारी बाढ़ प्रभावित राज्यों के लिए अपने एक दिन का वेतनदान करने का ऐलान किया है. इन अधिकारियों के संगठन ने मीडिया में जारी अपने बयान में बताया कि यह राशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा की जाएगी. बताते चलें कि देश भर में करीब 3,000 भारतीय राजस्व सेवा (आइआरएस) के अधिकारी हैं.
यहां बताते चलें कि इस समय यानी 31 मई, 2017 तक ‘प्रधानमंत्री राहत कोष’ में कुल 2919.49 करोड़ रूपये मौजूद हैं.
यहां यह भी स्पष्ट रहे कि ‘इंडिया टूडे’ के एक ख़बर के मुताबिक़ ‘प्रधानमंत्री राहत कोष’ एक प्राइवेट संस्था है, जिसका सरकार से कोई लेना–देना नहीं है.
इस कोष की स्थापना देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की जनवरी 1948 में जारी अपील से हुई थी, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान से आए विस्थापितों की सहायता के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष बनाया था. उस अपील के मुताबिक़ फंड का संचालन एक कमेटी करेगी, जिसमें प्रधानमंत्री, कांग्रेस अध्यक्ष, उप प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, टाटा न्यासियों का प्रतिनिधि और प्रधानमंत्री राहत कोष की प्रबंध समिति में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स द्वारा नामित सदस्य होंगे. लेकिन पीएमओ की वेबसाइट के मुताबिक़ सारे निर्णय पीएम ही विवेक से करते हैं.
अब इस कोष का इस्तेमाल बाढ़, चक्रवात, भूकंप, दुर्घटनाओं–दंगों के पीड़ितों को राहत देने के अलावा दिल की सर्जरी, गुर्दा प्रत्यारोपण, कैंसर जैसी गंभीर और महंगे इलाज के लिए भी होता है. यह फंड बजटीय प्रावधान से नहीं, बल्कि नागरिकों, कंपनियों, संस्थाओं से मिले दान से संचालित होता है. इसमें दान करने वालों को अंशदान पर इनकम टैक्स भुगतान में छूट मिलती है. लेकिन इस फंड से मिलने वाली सहायता के पात्र व्यक्तियों के चयन की कोई प्रक्रिया नहीं है. सहायता पूरी तरह से प्रधानमंत्री के विवेक और उनके निर्देशों के अनुसार दी जाती है. इस कोष का काम पीएमओ के संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी राहत कोष के सचिव के तौर पर देखता है, जबकि उनकी सहायता के लिए निदेशक स्तर का अधिकारी तैनात होता है. इस कोष का ऑडिट संवैधानिक संस्था कैग नहीं, बल्कि बाहरी चार्टर्ड एकाउंटेंट करता है.
यहां यह भी बताते चलें कि बाढ़ की मार को नेपाल भी झेल रहा है. यहां चीन के वाइस प्रीमियर वांग यांग ने नेपाल को 10 लाख डॉलर की मदद देने की घोषणा कर दी है. लेकिन अपने देश के तमाम राज्य केन्द्र सरकार से आर्थिक मदद का अभी इंतज़ार ही कर रहे हैं. हालांकि आम भारतीय नागरिक दिलों-जान से बाढ़ प्रभावितों की हर संभव मदद में लगे हुए हैं.