‘रासुका से तो अच्छा है मुझे मार दे सरकार’ : भीम आर्मी सुप्रीमो चंद्रशेख़र आज़ाद


आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net


Support TwoCircles

सहारनपुर : भीम आर्मी के सुप्रीमो चंद्रशेखर आज़ाद पर राज्य सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (रासुका) की कार्यवाही कर रही है. यह कार्रवाई बेहद गुपचुप तरीक़े से चल रही थी और स्थानीय प्रशासन ने इसे मीडिया से दूर रखा गया, मगर कल अदालत में पेशी पर आए चन्द्रशेखर आज़ाद ने इसका खुलासा कर दिया.

अदालत में पेशी पर पहुंचे चंद्रशेखर ने अपने दर्द को ज़ाहिर करते हुए पत्रकारों से कहा कि, सरकार उन पर रासुका लगाने के बजाए उनका क़त्ल कर दे. कुछ भी ड्रामा रचकर एन्काउंटर में मार दे. अगर उन्हें दलित इतने ही बुरे लगते हैं तो वो यही करे. उनकी आवाज़ कुचलने का इससे अच्छा तरीक़ा और कोई नहीं है. चंद्रशेखर आज़ाद के साथ भीम आर्मी के ज़िला अध्यक्ष कमल वालिया भी रहे.

भीम आर्मी के वकील और आज़ाद की पैरवी में जुटे एडवोकेट हरपाल ने चंद्रशेखर पर रासुका की कार्यवाही की पुष्टि की है. हालांकि प्रशासन ने इस पर कोई बयान नहीं दिया है.

इस सच के सामने आने के बाद दलितों में इसे लेकर रोष फैल रहा है. आज़ाद के वकील हरपाल के मुताबिक़, 9 मई को हुए प्रदर्शन के दौरान चन्द्रशेखर प्रशासन के अधिकारियों के साथ भीड़ को समझा रहे और माहौल को संभाल रहे थे. उनके माध्यम से हिंसा किए जाने का कोई प्रमाण नहीं है. उनके हाथ में कोई लाठी तक नहीं है. उनका कोई उत्तेजना फैलाना वाला भाषण पुलिस के पास नहीं है. उनके ख़िलाफ़ रासुका का कोई आधार नहीं बनता है. यह सीधेसीधे दमन नीति है.

वो बताते हैं कि, रासुका समाज में हिंसक तरीक़े से समाज में भय फैलाने पर इस्तेमाल किया जाता है. कोई बताए कि चंद्रशेखर के ख़िलाफ़ क्या सबूत है.

वहीं चंद्रशेखर के परिजन दावा करते हैं कि पिछले कुछ दिनों से चंद्रशेखर आज़ाद से जेल में किसी को मिलने भी नहीं दिया जा रहा है. रामनगर में रहने वाली चंद्रशेखर की बुआ कैलाशो कहती हैं, कोई बताएगा हमारी ग़लती क्या है? हम सदियों से भेदभाव झेल रहे हैं, नाजायज़ हमें सताया जा रहा है.

अम्बेडकर युवा मंच के संयोजक सुरेन्द कुमार का कहना है कि, यह सबकुछ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इशारे पर हो रहा है. बताते चलें कि भीम आर्मी के चार सदस्य अभी भी जेल में हैं और 2 अभी गिरफ्तार नहीं हुए हैं. इनमें राष्ट्रीय अध्यक्ष विनय रतन सिंह भी शामिल हैं.

ध्यान रहे कि 22 अप्रैल को शब्बीरपुर गांव में हुए जातीय संघर्ष में दलितों के 55 घर जलाकर राख कर दिए गए थे. यह बवाल महाराणा प्रताप शोभायात्रा को गांव के बीचोंबीच दलित बस्ती से निकाले जाने को लेकर हुआ था, जिसका यहां के प्रधान शिवकुमार ने विरोध किया था. आरोप है कि हिंसा में शामिल ठाकुरों पर पुलिस ने कोई संतुष्ट करने वाली कार्रवाई नहीं की है. लेकिन प्रशासन के मुताबिक़ दो ठाकुरों पर भी रासुका लगाई गई है.

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE