शाहनवाज़ नज़ीर, TwoCircles.net के लिए
मध्यप्रदेश की हाई सिक्योरिटी भोपाल सेंट्रल जेल के मुखिया दिनेश नरगावे अपना रूटीन काम निबटाने के बाद क़ुरआन पढ़ रहे हैं. उनके भीतर क़ुरआन पढ़ने की जिज्ञासा उनकी जेल में बंद उन क़ैदियों की वजह से हुई जिनपर प्रतिबंधित संगठन सिमी का सदस्य होने का आरोप है.
दिनेश नरगावे के मुताबिक़ सिमी के विचाराधीन क़ैदी क़ुरआन के नाम पर जेल के प्रहरियों और अफ़सरों में दहशत पैदा करते थे. वे बार-बार क़ुरआन में काफ़िरों के ज़िक्र और उनकी हत्या को जायज़ ठहराने की कोशिश करते थे. उन्होंने अपनी-अपनी क़ुरआन में कई आयतों को अंडरलाइन कर रखा था. लिहाज़ा उनसे उनकी क़ुरआन ले ली गई.
बड़वानी के रहने वाले दिनेश नरगावे आदिवासी समाज के हैं. वह युवा अफ़सर हैं और जेल अधीक्षक बनने से पहले रतलाम के एक कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर थे. बतौर जेलर जब उनकी पहली पोस्टिंग शहडोल में हुई तो जेल में दाख़िल होते ही वह बाहर निकल आए. वो सहज महसूस नहीं कर पा रहे थे अचानक से जेल में सज़ायाफ़्ता क़ैदियों के बीच पहुंचा दिए जाने पर.
फिलहाल यही दिनेश नरगावे फिलहाल भोपाल सेंट्रल जेल के अधीक्षक हैं जिनपर भोपाल सेंट्रल जेल में बंद 3 हज़ार कैदियों सुरक्षा की ज़िम्मेवारी है.
भोपाल सेंट्रल जेल में बंद सिमी के आरोपियों को दिनेश नरगावे धर्मांधता का शिकार क़रार देते हैं. उनके मुताबिक़, ‘ये आरोपी क़ुरआन की कुछ ख़ास आयतों को संदर्भ से काटकर पेश करते थे. लिहाज़ा, उनकी क़ुरआन लेकर उन्हें नई क़ुरआन पढ़ने के लिए दी गई. एक क़ुरआन मैंने भी ली है जिसे पढ़कर यह जानने की कोशिश कर रहा हूं कि क्या वाक़ई क़ुरआन में ऐसी आयते हैं जिनमें ग़ैर मुस्लिमों की हत्या को सही ठहराया गया है?’
दिनेश नरगावे के मुताबिक़ जेल में ये क़ैदी कई बार कह चुके हैं कि काफ़िर मिले तो उसकी हत्या कर देनी चाहिए. मगर मैं मानता हूं कि शिक्षा के अभाव में ये क़ैदी धर्मांधता का शिकार हुए हैं. जेल में बंद होने के बाद भी जिसे यह मज़हब और क़ौम की लड़ाई समझ रहे हैं, वह दरअसल एक आर्थिक युद्ध है और ये सभी उसके मोहरे हैं.
उन्होंने आगे कहा, ‘मैं इन्हें प्रेमचंद, सआदत हसन मंटो और रवींद्र नाथ टैगोर का साहित्य पढ़वाने की कोशिश कर रहा हूं. हो सकता है कि धर्मांधता के बादल इन पर से छंट जाएं.’
भोपाल सेंट्रल जेल पिछले साल उस वक़्त सुर्खियों में थी, जब 30 अक्टूबर 2016 की रात 2-3 बजे के बीच यहां जेल टूटने की एक वारदात हुई. मध्यप्रदेश पुलिस ने दावा किया कि जेल तोड़ने वाले सिमी के आतंकवादी थे और शहर के बाहरी हिस्से में उनकी घेराबंदी होने पर सभी आठ आतंकी एनकाउंटर में मारे गए.
इस वारदात के बाद से ही यहां बंद सिमी के मुलज़िम जेल प्रशासन पर शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगा रहे हैं. क़ैदियों ने घर वालों से लेकर अदालत तक से कहा है कि उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है.
यह शिकायत मिलने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक टीम ने हाल ही में जेल का दौरा किया जिसकी रिपोर्ट आना अभी बाक़ी है. लेकिन दिनेश नरगावे सभी आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर देते हैं. उनके मुताबिक़ यह इन क़ैदियों की दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है.
उन्होंने कहा, ‘भोपाल जेल ब्रेक से पहले इनके साथ आम क़ैदियों जैसा सलूक किया जाता था. ये सभी एक साथ नमाज़ पढ़ते थे. आम क़ैदियों के साथ ही इन्हें खाना दिया जाता था, लेकिन अब यह सब बंद कर दिया गया है. ऊपर से आदेश है कि इनकी कड़ी निगरानी की जाए. अब इन्हें अपने-अपने विशेष सेल में क़ुरआन या नमाज़ पढ़ना पड़ता है.’
नरगावे का दावा है कि विचाराधीन क़ैदियों ने जेल ब्रेक की साज़िश नमाज़ पढ़ने के दौरान ही रची थी. ये आपस में छोटे-छोटे समूहों में बंट जाते थे. इनसे से कुछ नमाज़ पढ़ रहे होते, कुछ अपने सेल में लेट जाते और कुछ दूसरे हिस्से में जमा होकर बैठ जाते. ऐसी सूरत में प्रहरी इनपर ढंग से नज़र नहीं रख पाता था और इसी कमी का इन्होंने फ़ायदा उठा लिया था.
नरगावे आगे कहते हैं, ‘जिन बैरकों में इन्हें रखा गया था, उनमें कमियां थीं. अगर चाबी पास हो तो हाथ डालकर बैरक ताला खोला जा सकता था. इनके बैरक में अलीगढ़ में बना डेढ़ सौ रुपए वाला सस्ता ताला लगा था. इन्होंने टूथब्रश से चाबियां बनाई थीं. इस कांड के बाद इनके बैरकों से प्लास्टिक की 18 चाबियां बरामद हुई थीं.’
क्या इन क़ैदियों के साथ सख़्ती और उन्हें विशेष सेल में अकेले बंद रखने की इजाज़त क़ानून देता है? नरगावे कहते हैं कि, यहां जो कुछ हो रहा है, वह क़ानून के मुताबिक़ ही हो रहा है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट अपनी रूलिंग्स में क़ैदी को एक विशेष सेल में बंद करने को अमानवयी और आधुनिक सोच के ख़िलाफ़ क़रार दे चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक तरह की सज़ा और एक क़ैदी के मूलभूत अधिकारों के विपरीत जाने वाला माना है.