अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली : दिल्ली से सटे फ़रीदाबाद में पिछले महीने गो-रक्षकों ने पांच मुसलमानों को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया था. गो-रक्षकों का दावा था कि मुसलमान अपने साथ गो-मांस लेकर जा रहे थे. मगर हरियाणा पुलिस ने अपनी जांच में पाया है कि पीड़ित मुसलमानों के पास गो-मांस नहीं, बल्कि भैंस का गोश्त था.
हरियाणा पुलिस की तफ़्तीश में हुआ यह ख़ुलासा क्या चौंकाने वाला है?
केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद से उत्तर भारत में चल रही गो-रक्षकों की हिंसक वारदातों का अगर अध्ययन करें तो नतीजे बिल्कुल नहीं चौंकाते और एक ख़ास क़िस्म के पैटर्न का पता चलता है.
आमतौर पर गो-रक्षकों की हिंसा का शिकार होने के बाद पुलिस पीड़ितों पर गो-रक्षा अधिनियम के तहत मुक़दमा दर्ज करती है. 14 अक्टूबर को फ़रीदाबाद में हुए कांड में भी पुलिस ने एफ़आईआर पीड़ितों पर ही दर्ज कर लिया था. बावजूद इसके कि पीड़ित आज़ाद ने कहा था, ‘अगर गाय का मीट निकला तो मुझे फांसी दे देना और अगर नहीं तो मुझे इन्साफ़ चाहिए.’
गो-रक्षकों की सैकड़ों हिंसक वारदात के बाद जांच में अभी तक ऐसा ख़ुलासा नहीं हुआ है कि पीड़ित अपने साथ गो-मांस ले जा रहा था. बावजूद इसके, ऐसी वारदातों में कोई कमी नहीं आ रही है और गो-मांस की अफ़वाह फैलाकर मुसलमानों को शिकार बनाया जा रहा है.
आरोप है कि फ़रीदाबाद में जिस वक़्त पांच मुसलमान युवकों को गो-रक्षक पीट रहे थे, उस वक़्त हरियाणा पुलिस के जवान भी वहां मौजूद थे.
अगस्त महीने में पहली बार बिहार के भोजपुर ज़िले में गो-रक्षकों ने हिंसक वारदात को अंजाम दिया. इस मामले में भी तीन मुसलमानों को पीटा गया, जबकि गो-मांस रखने का दावा महज़ अफ़वाह थी.
इसी साल जून में दिल्ली से 20 किलोमीटर दूर हरियाणा के बल्लभगढ़ में 16 साल के जुनैद को इसलिए पीट-पीटकर मार दिया कि वह मुसलमान है और उसके समाज में बीफ़ खाया जाता है.
साल 2016 में मध्य प्रदेश के मंदसौर रेलवे स्टेशन पर एक कट्टर हिंदूवादी संगठन ने दो मुस्लिम महिलाओं को गो-मांस तस्कर बताते हुए सरेआम पीटा था. इसके बाद से मंदसौर सिटी पुलिस ने उन पर गोवंश प्रतिषेध की धारा 4-5 और मध्य प्रदेश कृषक पशु परिक्षण अधिनियम की धारा-8 के तहत मामला दर्ज कर लिया था. मगर तफ़्तीश में पता चला कि महिलाओं के पास से बरामद मांस गाय नहीं, भैंस का है.
गो-रक्षकों की हिंसा के कमोबेश सभी मामलों की तफ़्तीश में अभी तक यही पता चला है कि मुसलमानों को मारने के लिए गो-मांस रखने की अफ़वाह उड़ाई जाती है, जबकि हक़ीक़त में ऐसा कुछ नहीं होता.
गो-मांस रखने या खाने का सबसे चर्चित मामला दादरी का अख़लाक़ हत्याकांड है. यूपी पुलिस ने अपनी शुरुआती तफ़्तीश में कहा था कि बरामद गोश्त ‘बकरी या उसके वंश’ का है. बाद में मथुरा की फ़ोरेंसिक लैब ने इसे ‘गाय या उसके वंश’ का गोश्त बताया. हालांकि यूपी पुलिस ने यह भी साफ़ किया है कि गोश्त का सैंपल अख़लाक़ के घर या फ़्रिज से नहीं लिया गया था. तत्कालीन डीएसपी अनुराग सिंह ने तब कहा था, ‘हमने अख़लाक़ के घर से 100 मीटर की दूरी पर, जहां अख़लाक़ को पीटा गया था, वहीं से गोश्त के सैंपल लिए थे.’
गो-रक्षकों की हिंसा पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चिंता ज़ाहिर की है. इसके बावजूद हमलावरों पर उनकी चेतावनी का कोई असर नहीं दिखा.
साबरमती आश्रम में भी उन्होंने कहा था, ‘क्या हमें गाय के नाम पर किसी इंसान को मारने का हक़ मिल जाता है? क्या ये गोभक्ति है? क्या ये गो-रक्षा है? ये गांधी जी-विनोबा जी का रास्ता नहीं हो सकता. हम कैसे आपा खो रहे हैं? क्या गाय के नाम पर इंसान को मार देंगे?’
बेशक़ पीएम मोदी अपने भाषणों में एक से ज़्यादा बार गो-रक्षकों की हिंसा पर चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं, लेकिन गो-रक्षकों की हिंसक वारदातों के अध्ययन से दो बातें बिल्कुल साफ़ निकलकर आ रही हैं.
पहली यह कि गो-रक्षकों के ज़्यादातर हमले भाजपा शासित राज्यों में हो रहे हैं. राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन इन हमलावरों पर कार्रवाई करने की बजाए पीड़ितों को मुक़दमा दर्ज कर उनकी परेशानी को और बढ़ाता है. कमोबेश सभी मामलों में मुसलमानों के साथ हिंसा का आधार गो-मांस को बनाया जाता है, लेकिन तफ़्तीश के नतीजे इसके उलट निकलते हैं. पुलिस या फॉरेसिंक लैब की जांचों में गो-मांस मिलने की पुष्टि नहीं होती.