अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
नई दिल्ली : हाल में ही ‘सिटीजन अगेंस्ट हेट’ की ओर से जारी एक रिपोर्ट में यह बात खुलकर सामने आई है कि गो-रक्षा या नफ़रत के नाम पर भीड़ द्वारा की गई हत्या के ज़्यादातर मामलों में पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. जिन मामलों में गिरफ़्तारियां हुई थीं, उनमें भी ज़्यादातर आरोपी ज़मानत पर रिहा हो गए हैं. या फिर पुलिस के ग़लत तथ्यों के आधार पर अदालत द्वारा उन्हें दोषी क़रार नहीं दिया गया है. इस रिपोर्ट में सिर्फ़ 24 मामलों का ही अध्ययन किया गया है और ये सभी मामले जुलाई, 2017 के पहले के हैं.
‘सिटीजन अगेंस्ट हेट’ के संयोजक सज्जाद हसन बताते हैं कि, सरकार में शामिल लोगों के कई उदाहरण सामने आए हैं, जिससे साफ़ पता चलता है कि वो नफ़रत या गो–रक्षा के बहाने इस तरह की हत्याओं का समर्थन कर रहे हैं. अख़लाक़ के मामले में आप देख सकते हैं कि एक केन्द्रीय मंत्री अख़लाक़ की हत्या के आरोपियों के साथ होता है. यहां तक कि उन्हें नौकरी भी दे दी जाती है.
वो आगे बताते हैं कि, ज़्यादातर मामलों में उन्हीं संस्थाओं के सदस्यों के नाम आए हैं, जो आरएसएस या सरकार से किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई हैं. जैसे बुलंदशहर वाले मामले में हिन्दू युवा वाहिनी के सदस्यों के नाम एफ़आईआर में दर्ज हैं. झारखंड के रामगढ़ वाले मामले में भाजपा के ज़िला मीडिया सेल अध्यक्ष मुख्य आरोपी है तो वहीं पुणे में हिन्दू राष्ट्र सेना का अध्यक्ष आरोपी है. अन्य मामलों में भी यही हाल है.
गत दिनों हरियाणा डिस्ट्रिक कोर्ट में जस्टिस गत वाई.एस. राठौर ने जुनैद हत्याकांड मामले में अपने लिखित आदेश में सरकारी एडिशनल एडवोकेट जनरल नवीन कौशिक आरोपी के वकीलों की मदद करने की बात कही और साथ इस्तीफ़ा देने का आदेश दिया.
ग़ौरतलब रहे कि नवीन कौशिक आरएसएस से जुड़े हुए हैं और हरियाणा में सरकार बनने के बाद वो पहले वकील थे, जिनकी इस पद पर नियुक्ति हुई थी. इससे पहले वो चंडीगढ़ में आरएसएस की वकील इकाई अधिवक्ता परिषद के सदस्य भी रहे हैं. इसी तरह दूसरे मामलों में भी सरकार व पुलिस हत्यारों को बचाती हुई नज़र आ रही है.
सवाल है कि आख़िर क्या कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गो-रक्षा के नाम पर क़ानून हाथ में लेने वालों को चेतावनी के बावजूद इसका कोई असर नहीं दिख रहा है.
अब हम आपको हक़ीक़त बताते हैं कि गो-रक्षा के नाम पर हुई मारपीट व हत्या के किसी भी मामले में बीफ़ न मिलने और मोदी जी की चेतावनी के बावजूद क्यों गो-रक्षा के नाम पर हमलों की घटनाएं कम नहीं हो रही हैं.
दरअसल, आरएसएस इन हमलों में गो-रक्षकों के साथ है. खुद मोहन भागवत विजयदशमी के पर्व पर आरएसएस मुख्यालय में एक घंटे के अपने संबोधन में गो-रक्षकों का बचाव करते हुए उनकी तारीफ़ कर चुके हैं.
उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि, गो-रक्षकों को हिंसक घटनाओं के साथ जोड़ना ठीक नहीं है. गो-रक्षा से जुड़े हिंसा व अत्याचार के बहुचर्चित प्रकरणों में जांच के बाद इन गतिविधियों से गो-रक्षक कार्यकर्ताओं का कोई संबंध सामने नहीं आया है. इधर के दिनों में उलटे अहिंसक रीति से गो-रक्षा का प्रयत्न करने वाले कई कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुई हैं. उसकी न कोई चर्चा है, न कोई कार्रवाई.
भागवत ने इसके साथ ये भी कहा कि, गो-रक्षा संविधान का अभिन्न हिस्सा है. गो-रक्षकों और गो-पालकों को चिन्तित या विचलित होने की आवश्यकता नहीं है. चिंतित आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को होना चाहिए, गो-रक्षकों को नहीं. उन्होंने साथ ही ये भी ऐलान किया कि गो-रक्षा व गो-संवर्धन का वैध व पवित्र परोपकारी कार्य चलेगा और बढ़ेगा और यही इन परिस्थितियों का उत्तर भी होगा.
मोहन भागवत का ये बयान असली वजह है. क्योंकि असली सरकार, असली पावर तो इन गुंडारूपी तथाकथित गो-रक्षकों के सपोर्ट में खड़ा है. आरएसएस इन्हें सपोर्ट कर रही है.
ये आरएसएस का ही समर्थन है कि 2017 के मार्च महीने में मेरठ के भावनपुर क्षेत्र के जय भीमनगर के पास बजरंग दल के कुछ नेता पुलिस के साथ पहुंचकर एक बूचड़खाने में भाजपा नेता की जमकर पिटाई करते हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा नेता की इस मीट फैक्ट्री के अन्दर बड़े-बड़े फ्रीजर लगे हुए थे और तक़रीबन इनमें 40 क्विंटल मीट बरामद किया गया. इस मीट फैक्ट्री का संचालन कथित तौर पर बीजेपी नेता राहुल ठाकुर और उनके साथी अजय राघव और अनुज चौधरी मिलकर चलाते हैं. इस पिटाई में भाजपा नेता राहुल ठाकुर बुरी तरह से जख्मी हुए और उन्हें तुरंत इलाज के लिए मेडिकल एमरजेंसी में भर्ती करवाया गया. विश्व हिन्दू परिषद के नेताओं का यह आरोप है कि, इस फैक्ट्री से बरामद हुआ मीट गो-मांस है. भाजपा के नेता लगातार इस मामले को दबाने में लगे हुए हैं.