TwoCircles.net News Desk
पटना : पिछले दिनों बिहार के उपमुख्यमंत्री व वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी ने बिहार का बजट पेश कर दिया है. लेकिन आरोप है कि बिहार सरकार द्वारा पेश किए गए इस बजट में किसानों, मज़दूरों एवं कमज़ोर वर्गों की उपेक्षा की गई है.
आंकड़े बताते हैं कि पिछले वित्तीय साल के मुक़ाबले इस बार कई अहम विभागों के बजट को कम कर दिया गया है.
उदाहरणस्वरूप अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का पिछले वित्तिय वर्ष यानी साल 2017-18 में 595.07 करोड़ का बजट रखा गया था, लेकिन इस बार साल 2018-19 में मात्र 437.76 करोड़ का बजट प्रस्तावित किया गया है. वहीं आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विभाग का बजट पिछले साल की तुलना में 3273.83 करोड़ रूपये कम कर दिया गया है. साल 2017-18 में 3950.97 करोड़ का बजट रखा गया था, लेकिन इस बार साल 2018-19 में सिर्फ़ 677.15 करोड़ का बजट रखा गया है.
जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय यानी एनएपीएम ने बिहार सरकार के बजट की समीक्षा की और प्रेस वार्ता के ज़रिए बिहार सरकार के बजट की सच्चाईयों को लोगों के समक्ष रखा.
एनएपीएम द्वारा आयोजित इस गोष्ठी में राज्य संयोजक मंडल के सदस्य कासिफ़ यूनुस ने बताया कि, अच्छी शिक्षा, बेरोज़गारी, खेती-किसानी का संकट, बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं एवं पलायन बिहार की प्रमुख चुनौतियां हैं, जिस पर सरकार को गंभीरता से काम करने की ज़रूरत है. लेकिन इस बजट में इस ओर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया गया. सरकार का साला 2018-19 का बजट इन समस्याओं से उबरने के लिए नाकाफ़ी है.
जेएनयू के प्रोफ़ेसर सुबोध नारायण मालाकार ने कहा कि, बिहार में खेती जीविका का प्रमुख स्रोत रहा है. हर साल बाढ़ और सुखाड़ की वजह से किसानों और मज़दूरों की कमाई में भारी कमी आई है. ऐसे में जब आपदा का ज़ोखिम पहले से ज़्यादा बढ़ गया है, बिहार सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन विभाग को आवंटित राशि में 3273.83 करोड़ रुपये की कटौती हैरान करने वाला निर्णय है.
वो आगे कहते हैं कि, पिछले साल के बाढ़ से सबक़ लेते हुए सरकार को आपदा प्रबंधन का बजट बढ़ाना चाहिए था. राज्य सरकार का यह निर्णय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी के किसान विरोधी होना साबित करता है.
आपदा प्रबंधन विभाग के पूर्व डायरेक्टर राकेश सिन्हा जी ने मौजूदा बजट में जहां सरकार ने अपने प्रचार में 233 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी की है, वहीं खाद्य एवं उपभोक्ता विभाग, स्वास्थ्य विभाग, पिछड़ा एवं अति पिछड़ा विभाग, अनुसूचित जाति एवं जन जाति विभाग, श्रम विभाग के बजट में पिछले साल की तुलना में कटौती कर दी है. इससे पता चलता है कि बिहार सरकार का ध्यान जन कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में कम और अपने प्रचार-प्रसार में ज़्यादा है.
उज्ज्वल कुमार ने कहा कि, इस बजट में किसानों आय बढ़ाने की कोई नीति नहीं है. किसानों को आय दुगुना करने में सिंचाई और अनाज ख़रीद को सरल बनाकर विशेष राहत पहुंचाया जा सकता था, मगर सरकार के बजटीय आवंटन में इन पहलुओं को नज़रअंदाज़ किया गया है. इस बार के बजट में सरकार ने मध्यम सिंचाई के लिए एक रुपया आवंटित नहीं किया है. जब मध्यम सिंचाई की योजनाओं को गांव-गांव तक नहीं पहुंचाया जाएगा तब हर खेत को पानी का नारा कैसे साकार हो सकता है.
बता दें कि अनाज ख़रीद में सरकारी उदासीनता और राजनीति का शिकार पैक्स वास्तविक किसानों से अनाज खरीदने में विफल रहा है. बिहार का आर्थिक सर्वेक्षण-2018 की रिपोर्ट बताता है कि पैक्स समूह बैंकों के क़र्ज़ वापस भी नहीं कर पा रहे हैं. सरकार ने इस बजट में भी पैक्स के सुदृढ़ीकरण के लिया कोई क़दम नहीं उठाया है.
उज्ज्वल कहते हैं कि, केन्द्र सरकार 22,000 ग्रामीण हाटों को निर्माण करने का वादा कर रही है, मगर बिहार की सरकार की योजनाओं में हाट तो दूर प्रखंड या ज़िला स्तर पर भी अनाज खरीद केन्द्र बनाने की बात नहीं है. इससे जगज़ाहिर है कि बिहार के किसान अपने अनाज को औने-पौने दाम में बिचौलियों के हाथ बेचने को मजबूर हैं. ऐसे में सरकार का यह कहना कि हम किसानों का आय दुगुना करने को प्रतिबद्ध हैं, यह जुमले के अलावा कुछ भी नहीं है.
सामाजिक कार्यकर्ता अनिल कुमार ने बताया कि, शिक्षा के बाज़ारीकरण को रोकने एवं रोज़गारपरक शिक्षा के लिए सरकार की कोई नीति स्पष्ट नहीं है. वित्तमंत्री यह स्वयं मानते हुए भी कि अंग्रेज़ी, गणित, भौतिकी, रसायन, जीव विज्ञान एवं वनस्पति विज्ञान के शिक्षकों की भारी कमी है, फिर भी सरकार इन खाली पदों पर स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति न कर गेस्ट टीचरों की बहाली कर शिक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही है.
उन्होंने आगे कहा कि, आम जन को परिवहन की सुविधा देने में सरकार ने पूरी तरह से हाथ खिंच लिया है. सरकार ने सार्वजनिक सड़क परिवहन में एक रुपये का भी आवंटन नहीं किया है. यह निर्णय बिहार में महंगे और निरंकुश परिवहन को ही बढ़ावा देगा.
इस प्रेस वार्ता में इस और भी ध्यान दिलाया गया कि, मनरेगा में 100 दिन के रोज़गार देने के क़ानून को सरकार ने अवहेलना की है. 142.2 लाख जॉब कार्ड धारक मज़दूरों में सिर्फ़ 0.6 प्रतिशत मज़दूरों को ही 100 दिन का रोज़गार मिला.
ग़ौरतलब है कि मनरेगा में कई राज्यों में मज़दूरी 265 रुपये तक पहुंच गई है, मगर बिहार सरकार सभी राज्यों से सबसे कम मज़दूरी दे रही है.
इस प्रेस वार्ता में कहा गया कि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह कहा था कि भाजपा-जदयू की डबल इंजन सरकार में बिहार का तेज़ी विकास होगा. मगर बजट से यह स्पष्ट हो गया है कि केन्द्र और राज्य सरकार बिहार के लोगों के आंखों में धुल झोंक रहे हैं. नीतीश कुमार और सुशील मोदी यह बताना चाहिए कि सामान्य सेवाएं एवं सामाजिक सेवाओं में बजट का आवंटन को कम कर बिहार का विकास कैसे किया जा सकता है?