बेटा! खाला के घर चला जा, नहीं तो ये पुलिस वाले तुम्हें भी मार देंगे…

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

नई दिल्ली : पत्रकारों के सवालों से बूढ़ी जावेदा अब ऊब चुकी हैं. वो अब चाहती हैं कि बस जल्दी से इन्हें इनके घर पहुंचा दिया जाए. मैं उनसे कुछ बात करने की कोशिश करता हूं, लेकिन वो मुझ पर ही अपना सवाल दाग़ देती हैं —पहले ये बताओ, मेरे बेटे को पुलिस वालों ने क्यों मार दिया? आख़िर ग़लती क्या थी उसकी? वो तो मेरा नेक बच्चा था. उसने क्या गुनाह किया था? फिर उनकी आंखों से आंसू छलक आते हैं…


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जावेदा वो बदनसीब मां हैं, जिसके बेटे मंसूर को मेरठ की पुलिस ने 27 सितम्बर, 2017 को एक ‘एनकाउंटर’ में मार दिया, लेकिन मां जावेदा का कहना है कि उसके बेटे को 26 सितम्बर को ही दोपहर में पुलिस घर से ले गई थी. अगले दिन पुलिस फिर से घर आई और एक सादे कागज़ पर ये कहते हुए हस्ताक्षर कराया कि मंसूर का वारंट पेपर है. बाद में मीडिया के ज़रिए मालूम हुआ कि मंसूर को मार दिया गया है. बता दें कि इस मामले में अभी तक पुलिस या मजिस्ट्रेट द्वारा कोई बयान दर्ज नहीं किया गया है.

ये कहानी आज दिल्ली के प्रेस क्लब में जावेदा से बात करते हुए सामने आई. दरअसल ‘सिटीजन अगेंस्ट हेट’ नामक संस्था आज यहां उत्तर प्रदेश व हरियाणा में हो रहे फ़र्ज़ी एनकाउंटरों को लेकर ‘चुप्पी तोड़ो’ रिपोर्ट जारी कर रही थी.

इस कार्यक्रम में जावेदा के अलावा हाल के दिनों में एनकाउंटर के नाम पर मारे गए गुरमीत की मां महेन्द्री व बहन ममता कुमारी भी आई थीं. वहीं शमशाद की पत्नी सालेहा भी मौजूद थीं. शमशाद को सहारनपुर पुलिस ने 11 सितम्बर, 2017 को एक एनकाउंटर में मारने का दावा किया था. लेकिन सालेहा पुलिस के इस दावे को ग़लत बताती हैं.

रिपोर्ट रिलीज़ के इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण थे. उन्होंने उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यानाथ को निशाने पर लेते हुए कहा कि, यूपी में एनकाउंटर के नाम पर पुलिस के ज़रिए ‘कोल्ड ब्लडेड मर्डर’ किए जा रहे हैं. सीएम कहते हैं कि हम एनकाउंटर कर रहे हैं, करेंगे और सबको ठोक देंगे. ये कोई फिल्म नहीं चल रही है कि हीरो की तरह आपके इस काम पर तालियां बजाई जाएं. ये योगी नहीं ढोंगी हैं. मैं इन्हें ढोंगी आदित्यानाथ कहता हूं.

उन्होंने यह भी कहा कि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा है कि एनकाउंटर में शामिल पुलिस अधिकारियों को मेडल न दिया जाए, लेकिन योगी लगातार इन्हें मेडल और प्रमोशन दे रहे हैं. 

उन्होंने केन्द्र सरकार पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट व राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने एनकाउंटर को सिरियसली लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा कि एनएचआरसी की अपनी इंवेस्टीगेशन टीम होनी चाहिए, लेकिन केन्द्र सरकार इसके लिए एनएचआरसी को फंड मुहैया नहीं करा रही है.    

इस अवसर पर रिहाई मंच के राजीव यादव ने भी योगी आदित्यानाथ को निशाने पर लिया और बताया कि यूपी एनकाउंटर पॉलिटिक्स के नाम पर सिर्फ़ दलितों व मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने ‘एनएसए’ पॉलिटिक्स पर भी सवाल उठाया और बताया कि किस तरह से सहारनपुर में भीम आर्मी के चन्द्रशेखर का एनएसए बार-बार बढ़ाकर उसे जेल में प्रताड़ित किया जा रहा है.

बता दें कि इस रिपोर्ट रिलीज़ कार्यक्रम से पहले कल सोमवार को ‘सिटीजन अगेंस्ट हेट’ की एक टीम ने एनएचआरसी के अध्यक्ष एच.एल. दत्तू से मुलाक़ात की और उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा ‘मुठभेड़’ कहे जाने वाले 17 केसों पर अपनी शिकायत दर्ज कराई.

इस टीम में प्रशांत भूषण, अधिवक्ता शेरील डिसूज़ा के साथ-साथ पीड़ित परिवार के सदस्य भी शामिल थे. इस अवसर पर आयोग के दफ्तर में 9 परिवारों ने भी अपनी अलग-अलग शिकायतें दर्ज करवाई.

‘सिटीजन अगेंस्ट हेट’ के ज़रिए तैयार की गई इस रिपोर्ट में साल 2017-18 में हुए कुल 28 ग़ैर-न्यायायिक हत्याओं का दस्तावेज़ीकरण किया गया है. इसमें 16 उत्तर प्रदेश और 12 हरियाणा के मेवात ज़िले के केस हैं. परिवारों के बयान और उपलब्ध क़ानूनी कार्यवाहियों और कागज़ातों के विश्लेषण से उभरी इस रिपोर्ट में इन ‘पुलिस एनकाउंटर’ के सच को उजागर किया गया है और ख़ास तौर पर नतीजे में पाया गया है कि कैसे ये ‘एनकाउंटर’ असल में पुलिस द्वारा पूर्वनियोजित तरीक़े से की जा रही हत्याओं का एक सिलसिला है.

इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को दरकिनार करते हुए हर केस में दोषी पुलिस अफ़सरों के ऊपर कोई कार्यवाही किए बिना मरने वाले लोगों पर ही पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज कर ली है. हर केस में दर्ज हुए दस्तावेज़ों में तक़रीबन एक जैसी ही कहानियां पेश की गई हैं, जिससे इनके सच्चे होने पर संदेह होता है. हर केस में ‘गुंडा’ ही मारा जाता है, दूसरे लोग बच निकलते हैं. पुलिस ने एक भी केस में मरने वालों के परिजनों का कोई बयान दर्ज नहीं किया है.

पुलिस का ख़ौफ़ पीड़ित परिवारों की आंखों में साफ़ तौर पर देखा जा सकता है. जब दिल्ली के प्रेस क्लब से पत्रकार अपना काम करके जा चुके थे तो पीड़ितों को इस बात का डर सताने लगा कि हमने कैमरे के सामने अपना सच तो रख दिया, लेकिन अब पुलिस हमें परेशान करेगी. वाजेदा प्रेस क्लब से बाहर आते ही घबरा उठती हैं और अपने साथ आए सामाजिक कार्यकर्ता अकरम को ढूंढ़ने लगती है. तभी उनका बेटा उन्हें समझाता है. इस पर वो घबराई नज़रों से अपने बेटे को देखते हुए कहती हैं कि, बेटा! तू खाला के घर चला जा, नहीं तो ये पुलिस वाले अब तुम्हें भी मार देंगे… 

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