सोशल मीडिया की वो आवाज़े जो बेआवाज़ की आवाज़ बन गए..!!!

आसमोहम्मद कैफ-Twocircles.net

खालिद हुसैन(38)क़तर में नौकरी करते है.तारिक़ अनवर (26)चंपारण से दुनिया भर की खाक छान रहे हैं.मोहम्मद शाहीन पिलखुवा से है और चादर के कारोबार से जुड़े है.सिद्धार्थनगर के


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माज़िद मज़ाज़(32) अध्यापक है.पूनम लाल(43) लखनऊ की आम ग्रहणी है.कोलकाता के वली रहमानी(19) दिल्ली में वकालत की पढ़ाई करते हैं.पटना धुव्र गुप्त (66)रिटायर्ड आईपीएस है.प्रयागराज के मोहम्मद जाहिद(44) बिजनेसमैन है.अर्शी खान दुबई में डॉक्टर है.ऐसे और भी है सब सामान्य नागरिक है.

 इलाहाबाद

मगर ये सब सोशल मीडिया के हीरो है.बेअवाज़ों की आवाज़ है.इनमे से एक भी पत्रकार नही है.राजनेता नही है और सेलिब्रेटी नही है.मगर तब भी इनकी तूती चहकती है. इनकी दीवानगी है.इनकी अपार लोकप्रियता है.इनके हजारों दीवाने है.इनके अपने अनुमान है ख्याल है .सोशल मीडिया की लोकप्रिय वेबसाइट फेसबुक पर इन्हें सबसे ज्यादा पढ़ा जाता है.सहमति असहमति के बीच ये सोशल मीडिया के चमकते चेहरे है.इनकी बात होती है तो इन पर बात होती है.

वली रहमानी कम उम्र में ही बड़ा प्रशसंक समूह बना चुके हैं।

देश के तमाम मुद्दों पर इनके विचार तेजी से पढ़े जाते है.राजनीतिक सामाजिक और ज्वलंत मुद्दों पर इनकी राय ध्यान खींचती है.आप इन्हें हिंदी में लिखने वाले फेसबुक के सरताज भी कह सकते है.कई बड़े लोग इन पर गहरी नजर गड़ाकर रखते है.

खास बात यह है इन सभी की सोशल मीडिया पर आकर लिखने शुरू करने की अपनी एक अलग कहानी है.सामान्य तौर पर मुलाकात में ये सब जमीन से जुड़े हुए लोग है.यह बात सभी मानते है पिछले कुछ सालों में उनकी जिंदगी बदल गई है कुछ के खिलाफ बेबाक लिखने के लिए मुक़दमा तक दर्ज हुआ है.कुछ से स्थानीय राजनेता अब मशवरा लेते है और कुछ ऐसे है कि उनका अपना कारोबार सोशल मीडीया की सक्रियता में ठप हो गया है.इनकी माने तो बहुतेरे दोस्त छिन गए है नए भी बने है.

अब सवाल है कि यह लिखते क्या है ! सिद्धार्थनगर के युवा  माज़िद मज़ाज़ के मुताबिक “वो उदास मौसम के खिलाफ लड़ रहे हैं.

माज़िद कहते है चूंकि मीडिया तंत्र बहुत पहले से निष्पक्ष नही रहा है इसलिए आज भी वैसा ही है मगर सोशल मीडिया से आई आवाज़ों ने अब जगाना शुरू कर दिया है.हम उन्ही मुद्दों पर सही रुख सामने रखते हैं जिन्हें कथित मेनस्ट्रीम मीडिया अपने तरीके से लाभ के लिए तोड़ मरोड़ देती है.

माज़िद के हिसाब से यह वैकल्पिक मीडिया का स्वरूप नही है क्योंकि वो बस अपने विचार लिख रहे हैं.
माज़िद मज़ाज़ उभरते हुए लेखकों में काफी गंभीर छवि रखते हैं।

वैसे आजकल इन विचारों में खतरा बहुत है जैसे क़तर में रहने खालिद हुसैन के खिलाफ बिहार में मुक़दमा दर्ज है.यह मुक़दमा उनपर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के विरुद्ध आपत्तिजनक लिखने के लिए दर्ज कराया गया है.अक्सर बिहार पुलिस उनके घर आती जाती रहती है.फेसबुक पर उनके एक लाख से ज्यादा फॉलोवर है.यदा कदा फेसबुक उनकी आईडी बंद करता रहता है इसलिए कई आईडी बनाई गई है. क़तर में नौकरी कर रहे खालिद देश मे घटित हो रहे लगभग हर महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपनी राय रखते है

खालिद हमें बताते हैं कि” वो दस साल से फेसबुक पर है चूंकि यह एक सोशल नेटवर्किंग साइट है इसलिए इसके माध्यम से मैं अपने दोस्तों और परिवारों से बातचीत ही करता रहा.बाद में हुए बदलाव ने मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया .राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर मैंने लगभग 3 साल पहले लिखना शुरू किया.मैं 12 साल  यहां नौकरी जरूर करता हूँ मगर मेरा दिल मेरे मुल्क हिंदुस्तान में रहता है वहां हो रही एक-एक गतिविधि पर मेरी नजर रहती है.मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसा मीडिया सही तरीके से अपना काम नही कर रहा है इसलिए मैंने अपनी बात को फेसबुक पर लिखना शुरू किया.ट्विटर पर लफ़्ज़ों की बंदिश थी.फेसबुक पर खुलकर बात होने लगी.लोगो को मेरी बात अच्छी लगी और अब मुझे क़तर में भी लोग पहचानते है”.

खालिद हुसैन पिछले 12 साल से क़तर में है मगर देश भर के एक मुद्दे पर अपनी राय रखते हैं।

खालिद की तरह कोलकाता के वली रहमानी भी सोशल मीडिया के एक लोकप्रिय चेहरा है.कोलकाता के वली रहमानी सिर्फ 19 साल के है और दिल्ली में रहते हैं.यहां वो वकालत की पढ़ाई कर रहे हैं.वली रहमानी अपनी बात को बेहतरीन तर्कों के साथ रखने के लिए जाने जाते हैं उनके भी लाखों की संख्या में फॉलोवर है.यूट्यूब उनका पसंदीदा कार्यक्षेत्र है.वली रहमानी की सोशल साइट्स पर आने की कहानी भी काफी चोंकाने वाली है.वो बताते है मैं 17 साल था जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने.उनके नफरत फैलाने वाले भाषण मैंने सुने थे.देश के सबसे बड़े राज्य ने उन्हें चुना तो बात समझ मे आई कि नफरत अपना काम कर रही है.मैंने इसी नफरत के खिलाफ लड़ने का फैसला किया. शुरुवात में लोगो ने मेरी लड़ाई को सांप्रदायिक समझा मगर जल्दी ही उनकी समझ मे आने लगा और अब मेरे आधे से ज्यादा समर्थक बहुसंख्यक समाज से है जो मुझे सराहते है.

धुर्वीकरण विरोधी मुहिम की कोई औपचारिक घोषणा तो नही है मगर सोशल मीडिया के ये ज्ञानी हजरात अमूमन नफरत की राजनीति के विरोधी है.हालांकि वो सिर्फ भाजपा की आलोचना नही करते बल्कि मौका पड़ने पर कथित धर्मनिरपेक्ष दलों को भी नही बख्शते.जैसे तारिक अनवर कहते है”एकदम आज़ाद होकर लिखते है और संपादक के नाराज होने का कोई खतरा नही है”.

मोहम्मद शाहीन नज़रन्दाज नही किया जा सकता है।

 सामाजिक हितों के लिए इसके बेहतरीन इस्तेमाल भी  किया गया है जैसे चंपारण के तारिक़ अनवर देश भर में घूम-घूम कर वंचितों दलितों और आदिवासियों के हित के लिए काम कर रहे है मगर सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता से पहले उनके काम का एक सीमित दायरा था अब वो बहुत बढ़ गया है “तारिक बताते हैं कि अब किसी गांव मेरे अब्बू जाते है तो कोई न कोई नोजवान पूछ ही लेता हैं आप तारिक़ भाई के अब्बू है न”!

तारिक फेसबुक पर बेहद संतुलित तार्किक और शानदार तरीके से अपनी बात कहने के लिए जाने जाते है वो कहते है “इसकी एक वजह मेरा घुमंतू होना है मैं सामाजिक गतिविधियों को लेकर घूमता रहता हूँ आजकल मीडिया यह नही कर रहा है इसलिए उनके पास हम जैसी जानकारी नही होती.जमीन की जानकारी का ही असर है तमाम स्थानीय राजनेता अब मुझसे मशवरा लेते है”.

धुव् गुप्त सरलता से सटीक बात कहते है।

पटना से रिटायर हुए आईजी  धुव्र गुप्त के जिक्र के बिना यह यह बात अधूरी है.गुप्त पिछले एक साल में फेसबुक पर सबसे बड़ा आकर्षण साबित हुए है उन्होंने हर सामयिक मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त की है और वो सराही गई है.धुव्र गुप्त के अनुसार “मैंने बस वो लिखा है जो मेरे दिल मे ख्यालात पैदा हुआ अब वो एक सोशल कॉज रखता है यह मेरे लिए गर्व की बात है मैं ऐसा करना जारी रखना चाहता हूँ.”

अब तक आपने ऊपर ऐसे लोगो के बारे  पढ़ा है जो शैक्षिक रूप से गढ़े हुए लोग है जैसे माज़िद मज़ाज़ पीएचडी कर रहे है.खालिद एमबीए है..धुव्र गुप्त  आईपीएस रह चुके है.वली रहमानी वकालत की पढ़ाई कर रहे हैं.तारिक अनवर टाटा सोशल संस्थान से एमएसडब्लू है.

तारिक़ अनवर चंपारण अपनी कलम से एक और नायक बनने की और अग्रसर है।

पिलखुवा के मोहम्मद शाहीन (46)इनसे इतर है.सोशल मीडिया ने उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल दी है.शाहीन चादर बेचने का कारोबार करते है.उनके दोनों बेटे हाफिज है.वो सिर्फ बारहवीं तक पढ़े लिखे है.मगर सोशल मीडिया पर उनका जलवा अपरम्पार है.आक्रामक शैली में मजहबी,सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अक्सर वो किसी न किसी से उलझते रहते हैं मगर इस सबके बीच उनकी स्वीकार्यता भी काफी हो गई है.

शाहीन बताते हैं”कम से कम मेरी जिंदगी तो फेसबूक ने बदल दी है हजारों नए दोस्त बने है बहुत सारे नए दुश्मन भी.वो नेता जो हमें कभी सीधे मुँह बात नही करते थे अब शाहीन भाई कहकर बात करते हैं हम अपनी बात कहने से हिचकते नही है हालांकि इससे बहुत अधिक सरदर्द भी मिला है मगर अच्छा है अपने दिल की बात हम लोगो तक पहुंचा पा रहे हैं.जब मीडिया ताकतवरों के हाथों में खेल रहा है तो हम गरीब लोगों के पास फेसबुक से अच्छा कोई हथियार नही है हम पूरे दम के साथ अपनी बात कहेंगे.”

पूनम लाल दलितों के मुद्दों पर मुखर होकर लिखती है।

लखनऊ की पूनम लाल(43) आम गृहणी है.उनके पिता आईएएस रह चुके है.पति इंजीनियर है.बेटी वकालत कर रही है मगर पूनम का सोशल मीडिया पर डंका बजता है. सरकार की कमियां उधेड़ने के लिए वो सोशल मीडिया पर मशहूर है.पूनम कहती है वो आधा घण्टा भी न्यूज़ चैनल नही देख सकती वो झूठ से भरे है और वंचितों दलितो मुसलमानों और पिछड़ो के प्रति दुर्भावना से रिपोर्टिंग करते हैं.मैं वो बात लिखती हूँ जो मुझ सहित करोड़ो लोगो के मन मे है.हमारे मीडिया जिनकी आवाज़ नही उठा रहा है हम उनकी आवाज़ है.

प्रयागराज के मोहम्मद जाहिद को आप इस संस्कृति का मजबूत स्तंभ कह सकते है वो आइडिया की खोज के लिए भी जाने जाते है.पिछले  साल से हालांकि उनकी लेखनी का असर कम हुआ है मगर शुरुवाती धूम धड़ाम उनके जरिये ही हुई. खास तौर दलित मुद्दों पर उनके नजरिया की विदेशों तक मे तारीफ हुई. हालांकि ऐसे और भी इनमे डॉक्टर अर्शी खान,सुनील यादव,चंद्रभान यादव,प्रिया पंत ,रेणु खान  जैसे नाम है.

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