आस मोहम्मद कैफ़।Twocircles.net
मुजफ्फरनगर। शाक़िब (38) की पत्नी फ़िरदौस अपने ढाई महीने के बच्चे के साथ सुबक रही हैं। जिस हालात में वो है उसे एक अच्छे खाने की सख़्त ज़रूरत है। मगर अच्छे खाने की बात तो छोड़िए उसके बच्चे को दूध भी नही मिल पा रहा है। फ़िरदौस बताती है एक सप्ताह से रूखी रोटी खा रहे हैं, इससे पहले एक सप्ताह तक सिर्फ नमक के चावल खाते रहे। शाकिब बिल्कुल सन्न खड़े सुनते रहते हैं। तक़लीफ़ ने उनकी ज़ुबान पर ताला लगा दिया है। फ़टी हुई टीशर्ट और नेकर पहने उनके दो और बच्चें उनकी पेंट पकड़कर खड़े हो गए हैं। शाक़िब इस लॉकडाऊन से पहले तक एक ढाबे पर वेटर का काम करते थे। इसके लिए उन्हें पूरी रात के 330₹ मिलते थे। ढाई महीने पहले उन्हें एक और बेटा हुआ। उस दौरान वो एक महीने तक उसमें लगे रहे और और जो कुछ पैसे थे। सब ख़र्च कर दिए। उम्मीद थी कि रोज कमा रहे हैं तो 330₹ रोज़ में उनका परिवार पल ही सकता है।
डेढ़ महीना पहले हुए लॉकडाऊन के शुरुआती 21 दिन तो जैसे तैसे कट गए। मगर खाने की समस्या नही हुई। पिछले दो सप्ताह से उनके जिंदगी बुरी तरह तंग हो चुकी है। शाकिब कहते हैं, ‘आदमी खुद तो भूखा रह सकता है मगर बच्चों को कैसे भूखा रखेगा। पिछले एक सप्ताह सिर्फ चावल खाये और इन सात दिनों से सिर्फ रोटी खा रहे हैं। रमज़ान का महीना है। ना दूध आता है और ना कभी फल आएं है।सब्जी के तौर पर 3 दिन सिर्फ आलू बनाये है।’
शाक़िब की तक़लीफ़ यह है कि उसके पास राशन कार्ड नही है। वो पिछले साल ही मीरापुर आएं है यह मुजफ्फरनगर जनपद का एक कस्बा है। शाकिब यहां बिजनोर मार्ग पर एक ढाबे पर में काम करते थे। वो फिलहाल बंद है। तीन बच्चों के पिता शाकिब ने कभी ख्याल में नही सोचा था कि वो घर मे इस तरह बंद हो जायँगे। शाकिब कहते हैं, ‘जिंदगी में इतनी ही तक़लीफ़ तब हुई थी जब वो ऋषिकेश (उत्तराखंड)के अपने जमे-जमाएं (स्थापित) काम को छोड़कर यहां चले आए। (वो मूल रूप से शाहपुर मुजफ्फरनगर के रहने वाले है)। वहां मेरा पेंट का काम था। मैं बड़ी बड़ी कोठियों में रंग करता था। महीने में 15-20 हजार कमा लेता था। अच्छी जिंदगी थी। बच्चें स्कूल भी जाते थे। पिछले साल वहां कुछ अल्पसंख्यक मुस्लिमों के साथ बुरा बर्ताव हुआ तो हमें लगा कि अब यहां रहना सुरक्षित नही है। मेरे अब्बा दाढ़ी रखते थे उनके साथ भी बदतमीजी हुई। हम वहां से लौट आएं। शाहपुर में रोज़गार नही मिला। कुछ शर्म ने नही करने दिया। मीरापुर में रिश्तेदारी थी ,यहीं बाईपास पर एक ढाबे में वेटर की नौकरी कर ली। बच्चे ठीक पल रहे थे। दो रोटी सुकून से मिल रही थी अब लॉकडाऊन ने सारी जिंदगी बदल दी।’
रुआंसे शाक़िब बताते हैं कि कल (शुक्रवार) को वो अपने बच्चे के लिए 20₹ का दूध लाए थे। दूध 60 ₹ लीटर बिक रहा है। अंदर से उन्हें बहुत तक़लीफ़ हुई। रमज़ान में फल तो एक दिन भी नही आएं है। सहरी में दूध भी नही मिला है। आटा और चावल मिल जाता है। पड़ोसी मदद कर सकते हैं। मगर हम कहें किससे!! खुद अपने आप तो किसी के दरवाज़े पर नही जा सकते! अब कब्र का हाल तो मुर्दा ही जान सकता है।’
शाक़िब की पत्नी फ़िरदौस (34) मिनट भर खड़ी नही हो पाती है वो बैठ जाती है। उनकी गोद मे एक बच्चा है जो ढाई महीने भर का है। फ़िरदौस कहती है, ‘कमज़ोरी की वजह मैं चारपाई पर ही रहती हूं। ऐसे समय पर मेरी मायके से भी मदद नही आ सकती। आप समझ सकते हैं कि मुझे ग़िज़ा वाली चीजों की कितनी जरूरत है। वक़्त है जैसा भी है कट जाएगा अल्लाह पर भरोसा है।’
फ़िरदौस के तीन बेटे है। सबसे बड़ा शायान 8 साल का है। फ़िरदौस बताती हैं कि वो इससे पहले ऋषिकेश (हरिद्वार जनपद की तहसील ऋषिकेश बहुसंख्यक समाज की भावनाओं से जुड़ा है) रहते थे। पिछले कुछ सालों में वहां अल्पसंख्यक मुस्लिमों के लिए रहना थोड़ा मुश्किल होने लगा था। कुछ लोगो के साथ मारपीट भी हुई थी। बच्चों के मुस्तक़बिल को देखते हुए हम वहां से चले आए वहां अच्छा काम था। खाने पीने की कोई दिक्कत नही थी। ख़र्च तो यहां भी चल रहा था बस। लॉकडाऊन में बड़ी परेशानी खड़ी हो गई। मेरा दिल तब रोता है जब ढाई महीने का मेरा बच्चा भूख से बिलखता है। मेरे दूध से उसका पेट भर नही पता। पूरे रमज़ान इफ़्तार में फल नही आया। वैसे लॉकडाऊन का एक फ़ायदा भी है। बच्चें पड़ोस के घर नही जाते तो वो ज़िद भी नही करते। मगर हमें तो सब दिखता है।
फ़िरदौस के शौहर शाक़िब चुप-चुपचाप खड़े रहते हैं। उनके चेहरे पर उदासी और हताशा दोनों के भाव आते जाते हैं। वो कहते हैं, ‘हम ऐसे नही थे। अब कोई मदद करता है तो अच्छा नही लगता। बल्कि शर्मन्दगी महसूस होती है। मैं काम करना चाहता हूं। यह वक़्त तो सभी के लिए मुश्किल है !क्या हिन्दू क्या मुसलमान! बस रमज़ान की वजह से तक़लीफ़ ज्यादा हो रही है”!
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद एक शाकिब का परिवार ही इस मुश्किल से नही जूझ रहा है। ऐसे हजारों परिवार अब संघर्ष कर रहे हैं। लॉकडाऊन में खासकर गरीबों को चौतरफ़ा मार पड़ रही है। भारत मे 25 मार्च से पूरी तरह लॉकडाऊन है। जिसका सबसे ज्यादा असर निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों पर दिखाई देता है। सरकार राशन के तौर पर गेंहू और चावल दे रही है। मगर शाक़िब जैसे बहुत से परिवारों के पास राशन कार्ड नही है। रमज़ान के बीच यह तक़लीफ़ थोड़ी और बड़ी हो गई है।