ग्राऊंड रिपोर्ट : पढ़िए ‘ओवैसी’ की जीत पर अब क्या कह रहे हैं सीमांचल वाले !

नेहाल अहमद । Twocircles.net

बिहार के सीमांचल में ओवैसी ने कुल 5 सीट जीते और यकीनन ऐसा माना जा रहा है कि बिहार में महागठबंधन की हार की चर्चा से ज़्यादा ओवैसी की जीत की चर्चा हो रही है। इस दौरान ओवैसी का सियासी कद बढ़ा है इससे कोई इंकार नहीं लेकिन क्या उनका बढ़ता सियासी कद मुसलमानों के लिए फायदेमंद होगा भी या नहीं ! उनके सियासी कद को लेकर मुसलमान उन्हें क्या समझते हैं ? वोट कटवा ? मुसलमान की आवाज़ ? मिरर इमेज ऑफ हिन्दू राइट विंग या अन्य ? अगर कुछ और तो क्या ? और जो भी समझते हैं तो क्यों ? क्या कारण है ?


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Twocircles.net के सीमांचल बिहार के हमारे संवाददाता ने सीमांचल में ओवैसी के 5 सीट जीतने एवं बिहार में सरकार (महागठबंधन) न बनने पर ओवैसी को लेकर हमने ये जानने की कोशिश की कि आखिर स्थानीय लोगों की इस पर क्या प्रतिक्रिया है और ओवैसी एवं उनकी राजनीति को सीमांचल बिहार के मुसलमान अपने लिए किस तरह देखते हैं !

किशनगंज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र निवासी सह पीएफआई जिलाध्यक्ष सादिक़ अख़्तर ओवैसी की राजनीति का विरोध करते हैं वो कहते हैं कि यह ओवैसी की जीत नहीं है बल्कि बदलाव एवं महागठबंधन की हवा के मध्य मिले वोट के फायदे का नतीजा है। यह ओवैसी फैक्टर नहीं है। लोग बदलाव एवं महागठबंधन चाहते थे उसी में AIMIM ने बाजी मारी है। वो खुद की वजह से नहीं जीती है। बिहार विधानसभा चुनाव की AIMIM की तैयारियों को लेकर एक बड़ी बात वो कहते हैं कि AIMIM की सारी टीम का रुझान अमौर से अख्तरूल ईमान को जिताने में चला गया था और अन्य जगहों से ध्यान उठने लगा। जो तवज्जो हर जगह दी जानी थी वो केवल अमौर में ज़्यादा झोंक दी गई। अगर हर जगह ध्यान दिया होता तो किशनगंज विधानसभा से उपचुनाव में जीते सिटिंग विधायक कमरुल होदा क्यों हारते !  उनकी हार के लिए पार्टी की रणनीति ज़िम्मेदार है। ऐसी रणनीति ठीक नहीं । ओवैसी साहब अगर मुसलमानों का इतना ही हित चाहते हैं तो एसडीपीआई (SDPI) से गठबंधन क्यों नहीं करते ! उन्होंने एसडीपीआई से गठबंधन क्यों नहीं किया ! सादिक सवाल करते हैं कि ‘ओवैसी’ की विचारधारा कहां गई जब मालेगांव में नगर निकाय के चुनाव में उन्होंने शिव सेना के साथ गठबंधन किया। ओवैसी ने तेलंगाना में उस केसीआर (KCR) के साथ गठबंधन किया जिस केसीआर ने ‘तीन तलाक’, बाबरी मस्जिद विवाद, धारा 370 हटने और सीएए-एनआरसी का समर्थन किया था। ओवैसी असम में मौलाना बदरुद्दीन अजमल के ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के साथ क्यों नहीं मिल जाते ?

कांग्रेस-राजद-बसपा की तरह वन मैन शो की तरह क्यों रहते हैं ? अगर ओवैसी मुसलमानों के इतने बड़े हितकारी हैं तो जहां उनके विधायक नहीं हैं, वहां सरकार नहीं है, वहां जाकर सेवा स्वरूप लोगों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया क्यों नहीं कराते ? वहां काम क्यों नहीं करते ?

कटिहार ज़िंले के प्राणपुर विधानसभा क्षेत्र निवासी मोहम्मद नजमुस साक़ीब  (वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ में कैबिनेट के पद पर भी रह चुके हैं)  कहते हैं कि इस वक्त मुल्क यकीनन बहुत ही बुरे दौर से गुजर रहा है। हालात बहुत ही बुरे हैं लेकिन साथ ही साथ हमें यह भी देखना होगा कि बिहार का एक क्षेत्र जिसको सीमांचल कहा जाता है यहां पर लोग कितनी परेशानी का सामना करते हैं और किन बुनियादी सुविधाओं के भारी अभाव के कारण कई प्रकार के अवसरों से वंचित रहते हैं। हम लोगों ने देखा है कि 74 सालों से पूरे सीमांचल में नाम नेहाद सेकुलर पार्टियों ने वोट लिया लेकिन इस वोट के नाम पर इस क्षेत्र को लूटा गया है यानी जो नेता बने और जिन को चुनकर भेजा गया, उन्होंने सिर्फ और सिर्फ अपनी तरक्की की। क्षेत्र के लोगों को और उनकी परेशानियों को भूल गए।

इस बार एआईएमआईएम को पांच विधायक मिलने का संदेश साफ़ है कि सीमांचल की जनता अल्टरनेट ऑप्शन चुन रही है और चुनना चाहती है। उन्हें लगता है कि यह इस क्षेत्र के लंबित मुद्दों का समाधान कर सकती है। जैसे ग़रीबी, बेरोज़गारी, बाढ़, मजदूरों का पलायन, शिक्षा का बुरा स्तर इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण समस्याओं में से है। अब यहां के लोगों की उम्मीदें है कि यह पार्टी क्षेत्र के लंबित मुद्दों का समाधान निकालेगी।

कोचाधामन विधानसभा निवासी  एएमयू अलीगढ़ छात्र नेता मोहम्मद अफ़्फ़ान यज़दानी कहते हैं कि सीमांचल में ओवैसी की जीत केवल मुसलमानों के प्रयोग की है उसके अंतिम निर्णय की नहीं। इससे पहले तकरीबन 70 सालों तक मुसलमानों ने नाम निहाद सेक्युलर पार्टियों का साथ दिया और सबको सत्ता की बुलंदी तक पहुंचाने में नौजवानों ने अपनी जवानी कुर्बान कर दी। क़ौम के बुजुर्गों ने अपनी ज़िंदगी वक़्फ़ कर दी लेकिन मुसलमानों को क्या मिला !  दंगा मिला ,बाबरी मस्जिद का सानेहा मिला ,मॉब लींचिंग के नाम पर क़त्ल किया गया, जलता हुआ गुजरात मिला और हाल ही में दिल्ली में एक ‘सेक्युलर’ सरकार बनी जिसमें मुसलमानों ने झोली भर-भर कर वोट दिया लेकिन जब जामिया और दिल्ली को दंगाइयों के ज़रिये जलाया जा रहा था तब उस सरकार के चेहरे से सेक्युलरिज़्म का मुखौटा हट गया जो फ़र्जी साबित हुआ और इसी के साथ केजरीवाल सबके सामने बेनकाब हो गए। तब्लीगी जमाअत को लेकर भी केजरीवाल का रवैया निराशाजनक रहा। तमाम सेक्युलर नेताओं को यह सब मालूम है लेकिन फिर भी मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं जो आज मीम पर सवाल उठा रहे है कि ऐसी कौन सी हिक्मत बाकी है जिसपर मुसलमानों ने अब तक अम्ल नहीं किया है !

अफ्फान कहते हैं “क्या आपको नहीं लगता कि जब तमाम नाम नीहाद सेक्युलर पार्टियों ने मुसलमानों को धोखा दिया तब इस ‘लाचार’ क़ौम के मासूम आवामों ने असद्दुदीन ओवैसी का दामन थामने की कोशिश किया है और इसे हालिया राजनीति में आख़री उम्मीद की तरह देखने की कोशिश कर रहे हैं। ओवैसी के उभरने की वजह से नाम निहाद सेक्युलर पार्टी का चरित्र खुल कर सामने आया है। अब उन्हें भी लगता है कि मुसलमानों का वोट उनसे पास ठहरने वाला नहीं इसलिए वो भी मुसलमान की ख़ास ज़रूरत महसूस नहीं कर रहे”।

बहादुरगंज विधानसभा क्षेत्र जहां 2005 से लगातार कांग्रेस के विधायक थे और अब इस बार AIMIM ने वहां जीत हासिल कर कांग्रेस को उखाड़ फेंका है। यहां के निवासी मोहम्मद नौमिर आलम कहते हैं कि “सांसद  AIMIM प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी हमेशा भारत के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के साथ खड़े रहे हैं, उन्होंने केवल मुसलमानों के हक की बात नहीं बल्कि कई प्रकार के अल्पसंख्यकों की बात की है। उन्होंने हर राजनीतिक कदम भारत के संविधान को ध्यान में रखते हुए उठाया है। बिहार चुनाव में ओवैसी की पार्टी की 5 सीटों पर जीत मुस्लिम बहुल इलाके में उनकी विश्वसनीयता की वजह से हूई। कांग्रेस ने ख़ास कर मुस्लिम बहुल इलाके में अपनी पकड़ और विश्वास खो दिया है। यह ओवैसी की जीत का एक कारण रही वहीं दूसरी ओर एक कारण बदलाव भी रहा। यहां के लोग बदलाव चाहते थे। यहां वर्षों से कांग्रेस पार्टी रही लेकिन कांग्रेस ने कुछ ख़ास विकास नहीं किया। इसका यह मतलब नहीं कि महागठबंधन बिहार में कभी जीत ही नहीं सकता। यह तो लोगों ने विचार पर निर्भर करता है। मैं व्यक्तिगत रूप से यह समझता हूँ कि हिन्दू अपने आप को AIMIM की रैली, भाषणों एवं कार्यक्रमों की वजह से इकट्ठा होकर बीजेपी को वोट करते हैं । हिन्दू समुदाय का एक बड़ा वर्ग यह सोंचता है कि ओवैसी के भाषण एवं उनकी आवाज़ केवल मुसलमानों के लिए उठती है जो कि हिंदुत्व के विचारधारा के प्रसार और अज्ञानता की वजह से बिल्कुल ग़लत है। मैं यह नहीं मानता कि ओवैसी की वजह से महागठबंधन की हार हूई है। अपने गिरेबान में कांग्रेस को झाँकने की ज़रूरत है”।

बहादुरगंज विधानसभा के ही एक युवा रेहान रज़ा कहते हैं ” ओवैसी भले ही सीधे तौर पर बीजेपी के बी टीम हों या न हों लेकिन उनके बयानों का एक ख़ास फ़र्क हिन्दू समाज एवं उस समाज के वोटरों पर बहुत पड़ता है जो बीजेपी की तरफ़ इकट्ठा होने में योगदान देता है। साथ ही अपनी बात में जोड़ते हुए वो कहते हैं कि जहां छोटी-छोटी बात एवं निराधार तरीके से छात्रों एवं बीजेपी का विरोध कर रहे लोगों पर UAPA लग रहा है वहीं ऐसा क्या है कि ओवैसी व उसकी टीम के लोगों को कुछ नहीं होता है। दरअसल यह इसलिए नहीं होता है क्योंकि बीजेपी का काम जो बाकी रह जाता है उसे ओवैसी और उसकी पार्टी परोक्ष रूप से ही सही पूरा कर देती है। रेहान AIMIM की रैली में कुछ ऐसे नारों के लगाने को भी ठीक नहीं मानते। कारण उपर्युक्त है कि बीजेपी को इससे फायदा होता है “

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