कड़ाके की सर्दी में भी परवान चढ़ता किसान आंदोलन

तन्वी सुमन। Twocircles.net

दिल्ली की जानलेवा सर्दी में विद्वेष और मीडिया की सुस्ती के कारण लाखों किसान, विरोधी कानूनों को रद्द करने के लिए करो या मरो की लड़ाई में पिछले 54 दिनों से दिल्ली के बार्डर पर डटे हूं। इस विरोध की सबसे अनूठी विशेषता यह है कि तापमान गिरने के बावजूद किसानों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है बल्कि किसानों की लड़ाई और भी मजबूती से आगे बढ़ रही है। इस कड़ाके की ठंड ने अब तक 70 किसानों की जान ले ली है लेकिन उनकी शहादत का केंद्र सरकार पर कोई असर नहीं हुआ दिखता है। दिल्ली-हरियाणा के सिंधु बॉर्डर और टिकरी बार्डर के साथ ही दिल्ली-यूपी बॉर्डर यानी गाजीपुर-गाजियाबाद बॉर्डर पर किसान हैं कि हार नही मानते दिख रहे हैं।


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बातचीत करने पर पता चलता है किसान अपनी मांग को लेकर एकदम दृढ़ हैं। तीन कृषि विरोधी बिल मूलतः कृषि अधिनियमों का निरसन अर्थात् किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम के तहत किसान का अधिकार (संरक्षण और सशक्तिकरण) समझौता और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम जैसे कानूनों में बदलाव चाहते हैं ।

यह किसान जिसने अब जन आंदोलन का रूप ले लिया है, 25 नवंबर 2020 को भारतीय किसान यूनियन(BKU) की अगुवाई में शुरू हुआ था। भारतीय किसान यूनियन के साथ ही अब अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS), स्वराज इंडिया और अन्य किसान संगठन साथ में आ गए हैं। ये सभी संगठन अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का हिस्सा हैं, जो कई सौ किसान संगठनों का एक व्यापक मोर्चा है।

लाखों किसान अपने ट्रैक्टरों, ट्रॉलियों, बैलगाड़ियों और ट्रॉलरों के साथ दिल्ली के चार प्रमुख प्रवेश बिंदुओं पर तम्बू लगा अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और देश के बाकी हिस्सों से उनके लिए समर्थन जारी है। अब तो इस आंदोलन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिल रहा, कनाडा और ब्रिटिश संसद में इसकी चर्चा हुई और वह किसानों के साथ खड़े हैं।

किसान आंदोलन के सबसे अच्छी बातों में से एक है महिला किसानों का साथ में आना। वैसे तो हमारे देश में जब भी किसानों की बात आती है तो सबके जेहन में सिर्फ पुरुष किसान ही आते हैं। हमारे देश के ग्रामीण इलाकों में 73.2%  औरतें खेतों में काम करती हैं लेकिन उनके काम को मान्यता नहीं मिली है और आज भी देश का एक बड़ा तबका उन्हें किसानों के रूप में नहीं देखता है। सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर महिलाएं नेतृत्व करती हुई दिखाई पड़ रही हैं।

भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी’ की राज्य समिति की सदस्य सुखविंदर कौर ने बताया की “हम 5 जून से नए कानूनों के खिलाफ़ लड़ रहे हैं, जबकि उस वक़्त वह सिर्फ अध्यादेश ला रहे थे। महिलाओं का कृषि उद्योग में संघर्ष का इतिहास रहा है क्योंकि हम में से बहुत कम लोगों को वास्तव में किसी भी जमीन (भूमि) के मालिक होने की अनुमति है। यह कानून हमारी कठिनाइयों को और भी ज्यादा बढावा देंगे। “

गाजीपुर बॉर्डर स्थित प्रोटेस्ट साइट पर जगह जगह टेंट और साथ ही लंगर सेवाओं का हुजूम लगा हुआ है। महिलाएं, पुरुष और बच्चे बढ़- चढ़कर इस आंदोलन में हिस्सा ले रहे हैं। लंगर की तैयारियों के बीच एक टेंट में महिलाओं के हुजूम को देख उनसे बात करने पर मालूम चला की वह लोग सिर्फ इस आंदोलन का समर्थन करने के लिए उत्तर-प्रदेश के बरेली से इतने सर्द मौसम में दिल्ली आये हुए हैं। इसके साथ ही 26 जनवरी होने वाले ट्रैक्टर मार्च को लेकर सब बहुत उत्साहित हैं और उस दिन सरकार के लाख कोशिश के बावजूद वह लोग मार्च में हिस्सा लिए बगैर कहीं नहीं जाने वाले हैं। जगह-जगह ट्रैक्टर पर नारे लगाते हुए किसान बंधु आंदोलन स्थल पर मार्च कर लोगों का हौसला अफजाई कर रहे हैं।      गोरखपुर के बीजेपी कार्यकर्ता प्रबल प्रताप शाही ने गाजीपुर बॉर्डर पर बातचीत के दौरान बताया की कैसे उन्होंने केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ़ आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में चार दिन पहले भाजपा छोड़ दिया। उनके अनुसार कैसे किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और मंडी खत्म होने की आशंका है और किस प्रकार सरकार इसका समाधान कर पाने में नाकामयाब रही है।

कृषि मुद्दों पर इतने उतार चढ़ाव, सरकार संग असफ़ल वार्ता के साथ ही 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान ट्रैक्टर मार्च निकालने पर आमदा किसानों के साथ केंद्र सरकार क्या रुख अपनाती है यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा।

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