आसमोहम्मद कैफ़। Twocircles.net
इरफ़ान मंसूरी मुजफ्फरनगर में रहते हैं। 52 साल के है और वो पेशे से दर्जी है। राजनीति में रुचि रखते हैं। पहले वो नेलोपा के कार्यकर्ता थे उसके बाद पीस पार्टी के साथ हो गए और अब ऑल इंडिया मजलिस इतिहादुल मुस्लिमीन के मीरापुर विधानसभा के अध्यक्ष है। तीन दिन पहले इरफान मंसूरी ने अपने भतीजे नईम से सख़्त नाराजग़ी जाहिर की है और गुस्से में बातचीत ही करनी बंद कर दी है,ऐसा इसलिए किया है कि इरफ़ान मंसूरी को उनके एक कार्यकर्ता जाहिद ने आकर शिकायत की है कि उनका भतीजा नकीब -ए- मिल्लत हजरत ओवैसी को ‘बीजेपी का दलाल’ कह रहा था। जाहिद ने उस समय तो भतीजे को कुछ नही कहा मगर घर आकर शिकायत कर दी ! इरफान मंसूरी को जब यह शिकायत मिली तो वो बिफर गए और भतीजे पर लाल-पीले हो गए।
इरफान कहते है वो ओवैसी साहब के खिलाफ एक शब्द नही सुन सकते चाहे वो आदमी उनके परिवार का ही क्यों न हो ! ओवैशी साहब कौम के रहबर है ! नईम इस पर कहते हैं यह अपनी-अपनी राजनीतिक पसंद की बात है और मुझे मेरी वोट का पूरा हक है। मैं ओवैसी साहब की इज्जत करता हूँ मगर वो ठीक नही कर रहे हैं। ओवैसी साहब मेरे घर आते हैं तो मैं उन्हें खाना खिलाऊंगा उनका मान -सम्मान करूँगा, उनकी ख़िदमत में खड़ा रहूंगा,मगर मैं वोट उन्हें नही दूंगा। मुझे वोट सरकार बदलने के लिए देना है और ओवैसी साहब के प्रत्याशी सरकार बदलना तो दूर जमानत बचाने के लिए भी संघर्ष करेंगे वो सिर्फ बीजेपी को जिताने आये है।
इरफान और नईम जैसी चर्चा लगभग उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के हर घर मे है। हर घर मे एक मिनी संसद है। हर घर मे एक से ज्यादा धुरी है। जिस राजनीतिक व्यक्तित्व की सबसे ज्यादा बात होती है वो असदुद्दीन ओवैसी है,साथ में अखिलेश यादव पर चर्चा होती है। मायावती चर्चा से बाहर है और ऐतिहासिक रूप से मुसलमानों की अब तक की सबसे कम वोट पाने जा रही है। एक अजीब संयोग यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बुजुर्गों का झुकाव ओवैसी की तरफ है जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश में युवाओं में ओवैसी नायक है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की नई पीढ़ी ओवैसी के विरोध में खड़ी है और उनके समर्थक बड़ी उम्र के लोग हैं। ओवैसी की कामयाबी यह है कि पिछले कुछ ही महीनों में ओवैसी अपनी चर्चा को खाने की टेबिल तक ले आएं है। हर परिवार में एक सदस्य ओवैसी का कट्टर समर्थक जरूर है। उसे असदुद्दीन ओवैशी की बात सही लगती है और वो अपनी कयादत खड़ी करने का हिमायती है। वो एक बड़ा ख़्वाब देख रहा है ! मीम के नेता ताहिर अंसारी कहते हैं यही तो हमारी असली कामयाबी है।
चरथावल के ताहिर अंसारी ने अपनी सारी जिंदगी अपनी कयादत के ख़्वाब देखने मे गुजार दी है। वो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी कयादत के संघर्ष में 40 साल से जुटे हैं। 65 साल के ताहिर अंसारी मौलाना अब्दुल जलील फरीदी,डॉक्टर मसूद और डॉक्टर अय्यूब के बाद अब असदुद्दीन ओवैसी के साथ है। ताहिर अंसारी कहते हैं इसके अलावा उन्हें कुछ औऱ आता नही है ! भाषण सब यही याद है। एक बार सपा में चला गया था वहां मंच पर ही अपनी क़यादत पर जोर देने लगा ! वो कहते है कि सही बात यह है, मुद्दा ही अपनी कयादत है, चाहे नेता डॉक्टर मसूद हो,डॉक्टर अय्यूब हो या फिर ओवैसी साहब ! ताहिर कहते है कि यूपी में काम डॉक्टर मसूद और डॉक्टर अय्यूब साहब का बहुत ज्यादा है ! खासकर डॉक्टर मसूद जैसा संघर्ष तो मिसाल है, मगर बड़ा और राष्ट्रीय चेहरा होने की वज़ह असदुद्दीन ओवैसी की लोकप्रियता बढ़ी हुई है। हमें तो अपनी कयादत के एजेंडे पर रहना है ! जहां उम्मीद होगी वहीं खड़े हो जाएंगे ! ताहिर अंसारी बिहार में मजलिस के अच्छे प्रदर्शन की बात कहते हुए हुए कहते हैं हम 5- 6 सीटें जीत सकते हैं और अपनी मजबूत आमद भी दर्ज करा देंगे। ताहिर जोर देकर बताते हैं वो कम से कम 25 विधानसभा सीटों पर 10 हजार से ज्यादा वोट हासिल करेंगे। उनके पास यह पूरी सूची है। जिसमे उनके करीब की तीन विधानसभा चरथावल, देवबंद और थानाभवन भी है,लेकिन इतने में जीत नही होगी ! फिर मजलिस कर क्या रही है !
पहले सूबे की सियासत को समझते है। उत्तर प्रदेश में अब चुनाव बिल्कुल सर पर है। 90 दिन से कम का समय बचा है। फाइनल टच है इसलिए तमाम राजनीतिक दल अपना सब कुछ झोंक रहे हैं। मुख्य लड़ाई भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी में दिखाई देती है। बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस अस्तित्व बचाने के लिए सँघर्ष कर रही है। उत्तर प्रदेश में बहुत छोटी पार्टियां भी अपनी आमद को मजबूत बनाना चाहती है। इनमे राष्ट्रीय लोक दल अपने प्रदर्शन से चौंका सकती है। जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली रालोद किसानों के मुद्दों पर राजनीति करती है। यह पार्टी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुत मजबूत है। जयंत चौधरी के दादा चौधरी चरण सिंह भारत के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। पूर्वांचल में सुभासपा, अपना दल ,निषाद पार्टी और महान दल,पीस पार्टी और उलेमा काउंसिल जैसी छोटी पार्टियां है। इनमे से राजभर का दल, पीस पार्टी और महान दल समाजवादी पार्टी के साथ है। अपना दल के दो गुट है, एक समाजवादी पार्टी के साथ है और दूसरा बीजेपी के साथ है। निषाद पार्टी भाजपा के साथ है मगर हालिया गोरखपुर रैली में उनके नेता संजय निषाद नाराज़ हो गए हैं। अब भीम आर्मी और एआईएमआईएम दो चर्चित नाम शेष हैं। भीम आर्मी (असपा) के बारे में चर्चा है कि उनकी सपा से बात चल रही है। बिहार में 5 सीटों पर चुनाव जीतने के बाद आत्मविश्वास पाई एआईएमआईएम उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने आई है। चुनाव लोकतांत्रिक अधिकार है। कई पार्टियां विभिन्न राज्यों में चुनाव लड़ती है। वो वहां जीतती नही है मगर मौजूदगी दर्ज कराती है जैसे टीएमसी और शिवसेना भी उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ती है और बसपा राजस्थान और मध्यप्रदेश में चुनाव लड़ती आ रही है। वह एक अलग गणित है। एआईएमआईएम भी विस्तारीकरण पर विचार कर सकती है,वो कर रही है !
मगर इरादा सिर्फ विस्तारीकरण नही लगता है, ऐसा एएमयू के छात्र नेता रहे और राजनीतिक मामलों के जानकार अजमल रहमान बताते हैं वो कहते हैं कि एआईएमआईएम तेलंगाना में सिर्फ 8 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ती है।वो वहां केसीआर के साथ गठबंधन में है और सिर्फ मुस्लिम बहुल सीटों पर चुनाव लड़ती है। अब वो यूपी में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कहती है और समाजवादी पार्टी से गठबंधन में डिप्टी सीएम का ओहदा मांगती है। हैदराबाद में वो जो नही कर सकते वो यूपी में कैसे कर सकते हैं ! जबकि एआईएमआईएम के तेलंगाना में संगठन और कार्यकर्ता सब है यूपी में कोई आधार ही नही है ! एआईएमआईएम के पास पश्चिम बंगाल में संगठन नही था तो उनकी किसी सीट पर जमानत नही बची। वहां वोटर समझ गया कि वोट बंटने से क्या होगा ! यूपी के चुनाव में भी वो कहीं जमानत नही बचा पाएंगे। उनकी राजनीति समझ मे आ रही है। 2012 से पहले तक वो कांग्रेस के साथ थे केंद्र में सत्ता बदलने के साथ ही उनका नजरिया बदल गया। असदुद्दीन ओवैसी सीटों को जीत नही पाएंगे मगर वो बीजेपी की हिंदुत्व की पॉलिटिक्स को मजबूत करेंगे और बहुसंख्यक समुदाय को एकजुट होने का अवसर देंगे। अजमल कहते हैं एआईएमआईएम कि चुनाव लड़ने की कार्ययोजना भी यही सिद्ध करती है जैसे वो सिर्फ मुस्लिम बहुल सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं ! यह वो सीटें है जहां 30 फीसद से ज्यादा मुसलमान है। यहां वो सिर्फ मुस्लिम प्रत्याशी लड़ाएंगे,जज्बाती तकरीर करेंगे और धुर्वीकरण करने में मदद करेंगे।
अजमल रहमान जितना कह रहे हैं एआईएमआईएम उससे भी आगे चल रही है ! जैसे वो जाति के गणित और प्रभावी प्रत्याशियों पर दांव खेल रही है ! एआईएमआईएम के माइंड गेम आलम यह है वो ऐसे मुस्लिम नेताओं पर रिसर्च कर रही है जिन्हें समाजवादी पार्टी टिकट नही दे सकती है ! मगर वो कद्दावर नेता है। एआईएमआईएम की एक पूरी एक टीम एक दर्जन से ज्यादा नेताओं के संपर्क में है।असदुद्दीन ओवैसी जहां जाते हैं वहां ऐसे ही नब्ज पर हाथ रखते हैं। वो स्थानीय नेताओं की बेबसी पर तंज करते हैं और उनकी खुद्दारी को ललकारते है। मेरठ में एआईएमआईएम बाहुबली नेता और पूर्व सांसद अतीक अहमद की पत्नी अथवा बेटे को चुनाव लड़वाने की तैयारी ऐसी ही योजना का हिस्सा है। अतीक अहमद मुसलमानों में गद्दी समुदाय से आते हैं। यह समुदाय दूध का कारोबार करता है और मेरठ शहर में इनकी आबादी लगभग 50 हजार है। अतीक अहमद इलाहाबाद के रहने वाले हैं और वो मेरठ से 650 किमी दूर है। मेरठ में एआईएमआईएम के कार्यकर्ता शुएब के अनुसार ऐसा पहली बार नही हो रहा है ! यहां से मोहसिना किदवई और अवतार सिंह भड़ाना बाहर से आकर सांसद बन गए। अतीक अहमद कद्दावर नेता है उनके परिवार का कोई भी चुनाव लड़े यह उनका हक है। मेरठ शहर में समाजवादी पार्टी से रफीक अंसारी विधायक है। 2017 में समाजवादी पार्टी ने मेरठ दक्षिण विधानसभा से आदिल चौधरी को चुनाव लड़वाया था। आदिल चौधरी स्थानीय है और वो भी गद्दी समुदाय से आते हैं फिर भी अतीक अहमद यहां एक समूह को खासा प्रभावित करेंगे।
मेरठ में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता वसीम अहमद कहते हैं कि वो प्रभावित नही करेंगे बल्कि भाजपा को जितवा देंगे और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को हरवा देंगे। उनकी लड़ाई समाजवादी पार्टी से दिखती है। सपा ही उनका निशाना है। भाजपा के खिलाफ तो वो उतने आक्रामक नही है ! यहीं के निवासी एआईएमआईएम के समर्थक शुएब कहते हैं कि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को जितवाना हमारी ठेकेदारी नही है। वैसे भी 2017 में हमने तो चुनाव नही लड़ा था फिर समाजवादी पार्टी क्यों हार गई ! वसीम बताते हैं कि एआईएमआईएम सिर्फ समाजवादी पार्टी को हराने के लिए चुनाव लड़ रही है उनके भाषणों में सीधे अखिलेश यादव निशाना होते हैं जबकि सूबे में सरकार भाजपा की है। इनके कार्यकर्ता समाजवादी पार्टी में राजनीति कर रहे मुस्लिम समुदाय के नेतागणों को अपशब्द कहते हैं और निहायत ही बदतमीजी करते हैं। समाजवादी पार्टी को निशाना इसलिये बनाया जा रहा है क्योंकि वो ही एक मात्र ऐसी पार्टी है जो भाजपा को हरा सकती है ! चूंकि परिणाम नजदीकी हो सकता है इसलिए 20 मुस्लिम बहुल सीटों पर अगर खेल बिगड़ गया और वोटों का बंटवारा हो गया तो भाजपा जीत जाएगी।
अब आंकडो को समझते हैं उत्तर प्रदेश में कुल 20 फीसद मुसलमान है। 145 विधानसभा ऐसी है जहां 20 से 50 फीसद तक मुसलमान आबादी है। इनमे 30 सीटों पर 40 से 50 फीसद मुसलमान हैं। इनमे 15 सीटें तो केवल मुरादाबाद मण्डल की है। इसमें बिजनौर,मुरादाबाद, सम्भल और रामपुर है। यहां 2 विधानसभा सीट पर 50 फीसद से ज्यादा मुसलमान मतदाता है। इसमें से एक सीट रामपुर की है। इसके अलावा अमरोहा, सहारनपुर,मुजफ्फरनगर ,शामली है।पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर में 37 फीसद, मुजफ्फरनगर में 34,शामली में 30,मेरठ में 26, बागपत में 28, बिजनौर में 49,मुरादाबाद में 48, सम्भल में 51, रामपुर में 50,गाजियाबाद में 14,गौतमबुद्धनगर में 13 ,बुलंदशहर में 26, अलीगढ़ में 22 ,आगरा में 26, अमरोहा में 35, मथुरा में 11, फिरोजाबाद में 19, बरेली में 33,बंदायू में 28 फीसद लगभग आबादी है। उत्तर प्रदेश में कुल 403 विधानसभा है। मुसलमानों का सबसे अधिक 80 फीसद वोट एकमुश्त समाजवादी पार्टी को गया है और ऐसा 2017 के चुनाव में हुआ है। तब समाजवादी पार्टी को 47 विधानसभा में जीत मिली। हैरतअंगेज यह है कि अगर पूरी तरह सांप्रदायिक धुर्वीकरण होता है तो मुसलमान सिर्फ 2 विधानसभा पर अपना विधायक चुन सकते हैं। इस समय उत्तर प्रदेश की विधानसभा में कुल मुस्लिम विधायकों की संख्या 25 है।
एआईएमआईएम के नेता सैयद फरहान कहते हैं कि संख्या पर बात मत कीजिये! जिस समय मुजफ्फरनगर दंगा हुआ उस समय इसके दुगने से भी ज्यादा विद्यायक थे मगर किसी ने कुछ किया ! एक दर्जन से ज्यादा मुसलमान मंत्री थे मगर कोई कुछ बोला ! हमें भीड़ नही चाहिए काम के आदमी चाहिए ! लश्कर तो यजीद का बहुत बड़ा था मगर हमें हुसैन वाले चाहिए ! वैसे हाल ही में असदुद्दीन ओवैसी का हुसैन वाला बयान काफी चर्चा में है। असदुद्दीन ओवैसी ने उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान कहा है कि हज़रत हुसैन के विरुद्ध लड़ने वाले मुसलमान ही थे। उनके कार्यकर्ता अब प्रचार कर रहे हैं कि वो हुसैन वाले हैं और जो उनका विरोध कर रहे हैं वो यज़ीद वाले है। इस पर कई तरह की प्रतिक्रिया सामने आई है। मोहम्मद शाहीन ने इसे शर्मनाक बयान बताया है वो कह रहे हैं असदुद्दीन ओवैसी खुद को हुसैन के समकक्ष कैसे रख सकते हैं ! पहले इनके भाई अकबरुद्दीन अपने ख़्वाब में रसूलल्लाह के आने की बड़ी बात कर रहे थे ! सच यह है कि इनकी ईमानदारी के डंके सारे तेलंगाना में बजते है जहाँ इन्होंने हजारों करोड़ की जमीन कब्जा ली है।
हालात यह है असदुद्दीन ओवैसी को लेकर उत्तर प्रदेश में विचारों का बंटवारा साफ दिखाई देता है। मगर सवाल यह है ओवैसी कर क्या सकते हैं ! वो अपनी जिस हिस्सेदारी को लेने की बात करते हैं तो इस मुद्दे पर बात पहले भी हुई है ! नेलोपा और पीस पार्टी इसी हिस्सेदारी के मुद्दे पर आगे बढ़ी और फिर कमज़ोर पड़ गई ! नेलोपा ,पीस पार्टी और उलेमा काउंसिल के पास तो संगठन भी था ! पत्रकार राशिद अली खोजी बताते हैं कि ज़मीनी हकीकत को समझे तो एआईएमआईएम उत्तर प्रदेश में एक सीट भी जीतने की स्थिति में नही है लेकिन वो कई सीटों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकती है !
एआईएमआईएम के कार्यकर्ता इस समय अपने आलोचकों पर काफी गुस्साए हुए हैं ! उनकी रैलियों में भीड़ भी आ रही है ! मगर अब सवाल भी आ रहे हैं ! कुछ सवाल ऐसे है जिन्हें असदुद्दीन ओवैसी खड़ा करते हैं तो धर्मनिरपेक्ष दल के कार्यकर्ता असहज हो जाते हैं तो कुछ सवालों टीम ओवैसी उखड़ जाती है ! सहारनपुर के फरहाद गाड़ा कहते हैं कि आजादी के पहले एक बेरिस्टर आया था जिसने हमें बांटने का काम किया था अब एक और आया है जो फिर से बांटना चाहता है मगर इस बार हम नही बंटेंगे। हालांकि मुसलमानों में बंटवारा दिखाई देता है ..घर घर मे अब एक ओवेसी तो है।