मोहम्मद अली Twocircles.net के लिए
नींबू बेचकर एवं मैकडॉनल्ड्स में नौकरी करके अपनी पढ़ाई पूरी करने वाला जाकिर खान एक ऐसा नौजवान है जिसके सपने को पूरा करने के लिए उसकी मां ने अपना घर बेच दिया था। राजधानी दिल्ली के एक छोटे से गांव बदरपुर का रहने वाला यह ज़ाकिर खान आज हिंदुस्तान के जाने माने आर्टिस्ट (कलाकारों) की सूची में शामिल हैं लेकिन इस मुकाम पर पहुंचने के लिए उन्होंने काफ़ी संघर्ष किया है। उनका संघर्ष आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल हैं।
ज़ाकिर खान का जन्म 1986 में हुआ, इनके पिता ट्रक बॉडी का काम करते थे तथा मां भैंस चराती थीं, ज़ाकिर ने अपनी 12 वीं तक की पढ़ाई दिल्ली के सरकारी स्कूल से पूरी की, उसके बाद उन्होंने जामिया से (ओपन) बीकॉम किया, बीकॉम करने के बाद उनको लगा कि आगे पढ़ने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं इसलिए कोई ऐसा कोर्स किया जाएं जिससे कहीं अच्छी नौकरी मिल सकें. काफ़ी सोच विचार के बाद उन्होंने साउथ एक्स में एनिमेशन के कोर्स में दाखिला ले लिया।
ज़ाकिर खान के अनुसार, एनीमेशन के कोर्स में दाखिला लेना बहुत मुश्किल था क्योंकि मेरे घर की स्थिति ठीक नहीं थी। मेरी एडमिशन फीस 18 हज़ार रुपए वह मेरी मां ने पड़ोसियों से कर्ज लेकर दी। उसके बाद मुझे हर महीने 5 हज़ार रुपए फ़ीस भी देनी थी तो उसके लिए मैने मैकडॉनल्ड्स में 4200 रुपए महीना की जॉब ज्वाइन कर ली। मैं रोज सुबह 6 बजे घर से निकल जाता था क्योंकि 7 बजे से 9 बजे तक मेरी क्लास होती थी उसके बाद 2 घंटा में वहीं बैठकर प्रेक्टिस करता था. 12 बजे से मैक्डी में मेरी जॉब होती थीं तथा रात को मैं 10 बजे तक फ्री होकर 11 बजे तक घर पहुंच जाता था, इसके बाद मैं देर रात तक इंस्टीट्यूट का होम वर्क करता था।
मेरे दोस्त कहते थे कि “आओ कही बाहर कुछ खाने चलते हैं” तो मैं अपने मन को मारते हुए उनसे मना कर देता था क्योंकि न तो मेरे पास पैसे थे और न ही थी टाइम था, मैं सुबह 6 बजे घर से निकलता था, रात को 11 बजे घुसता था. दिन प्रतिदिन मेरा शेड्यूल बहुत खराब हो रहा था क्योंकि मुझे प्रैक्टिस के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिल रहा था, इंस्टिट्यूट की फीस लेट होने के कारण हर बार गार्ड क्लास में आकर मुझे टोकता था जिसके कारण मुझे बहुत बुरा लगता था। एक दिन मैने अपनी अम्मी से कहा कि मुझे ये कोर्स अच्छे से करना है तो उन्होंने मेरी पढ़ाई के लिए घर बेच दिया, उससे मिले पैसे को मेरी पढ़ाई में लगाने लगी।
घर से मदद मिलने के बाद मैं दिल से मेहनत करने लगा, अब मैं ज्यादा से ज्यादा समय अपने इंस्टिट्यूट में बैठकर प्रेक्टिस करता था, छुट्टी वाले दिन अपनी गली में बैठकर लोगों के पोट्रेट (तस्वीर) बनाता था. एक दिन मेरे इंस्टिट्यूट में कुछ काम चल रहा था तो काफ़ी तार, लकड़ी के टिकड़े बेकार पड़े थे मैने उन सब को इकट्ठा करके उनसे एक कार और रोबर्ट बना दिया था जिसके देखकर सभी लोग हैरान रह गए. मुझे बचपन से ही हॉलीवुड मूवी देखने का शौक था इसलिए मैं आयरन मैन और जुरासिक वर्ल्ड जैसी मूवी देखकर उसमे जो भी तकनीकी इस्तेमाल होती थी उनके बारे पढ़ता था तथा इसी तरह के अवतार बनाने की कोशिश करता था।
पूरे भारत में एनिमेशन के जितने भी इंटीट्यूट होते हैं वह सब मिलकर होनहार बच्चों को “क्रिएटिव माइंड” का अवॉर्ड देते हैं, मैं अपने दोस्तों से बोलता था देखना एक दिन में भी इस अवार्ड को लूंगा, तो उसके लिए मैने काफ़ी मेहनत की तथा अंत में दो साल बाद “तारे ज़मीन पर” फ़िल्म के डॉयरेक्टर ने मुझे यह अवार्ड दिया। यह मेरे लिए बहुत बड़ा पल था।
कोर्स पूरा होने के बाद नौकरी की टेंशन सताने लगीं. काफ़ी मेहनत के बाद कठपुतली स्टूडियो में मुझे 5 हज़ार रूपए का पहला काम मिला. मुझे उनके लिए एक पुराना पेड़ बनाना था सॉफ्टवेयर से। इसके बाद मैने नट-बोल्ट से एक रोबर्ट बनाया, शुरूआत में मुझे वेल्डिंग नहीं आती थीं इसलिए मैने जो रोबर्ट बनाया था वह खुल भी जाता था और जुड़ भी जाता था जिसको देखकर सभी लोग हैरान रह गए कि तुमने यह कैसे बनाया।
इसके बाद भी काम मिलने में परेशानी आने लगीं तो मैने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर मोबाइल गेम पर काम करना शुरू कर दिया, 3- 4 गेम बनाकर प्ले स्टोर पर डाल दिए. जैसे ही गेम के ज़रिए पैसा आना शुरू हुआ तो मेरे दोस्तो ने मुझे धोखा दे दिया, सारा पैसा अपने पास रखने लगे, मैं अकेला पड़ गया था इसलिए मुझे पीछे हटना पड़ा।
इसके बाद मैने एक दो जगह नौकरी करके कुछ पैसे जोड़े, उन पैसों से मैने चोर बाजार और चावड़ी बाजार जाकर वहां से लोहे का कबाड़ा खरीद लिया, उस कबाड़े से घर में ही में छोटे छोटे स्क्रैप्चर जैसे: रोबर्ट, कार, बाईक, मक्खी इत्यादि बनाने लगा। मेरे यह स्क्रैप्चर लोगों को बहुत पसंद आने लगे, मैं उनको कनॉट प्लेस में ले जाकर बेचने लगा।
ललित कला अकादमी में मैने अपने स्क्रैप्चर की एक प्रदर्शनी लगाई, जहां पर मेरी मुलाक़ात सिलेक्ट सिटी वॉक (मॉल) के सीईओ से हुई उनको मेरे आर्ट बहुत पसंद आएं, उन्होंने मुझे अपने मॉल के लिए भी एक स्क्रैप्चर बनाने के लिए कहा, उनके कहने पर मैने वहा जाकर 15 फिट का लाल किला बनाया। इसके बाद मुझे एनडीएमसी द्वारा बनाए जा रहें “7 वंडर पार्क” में काम करने का ऑफर आ गया जहां पर मैने 35 फिट की स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी बनाई।
ज़ाकिर खान के बेहतरीन काम के लिए उन्हें ऑल इंडिया फाईन आर्ट्स एंड क्रॉफ्ट सोसाइटी का अवॉर्ड, ललित कला अकादमी ऐनीमेशन अवॉर्ड एवं क्रिएटिव माइंड अवॉर्ड मिल चुका हैं। फिलहाल ज़ाकिर खान एक बहुत बड़े प्रॉजेक्ट पर काम कर रहें हैं. जिसका वह अभी खुलासा नहीं कर रहें लेकिन उनका कहना हैं कि यह भारत का सबसे बड़ा प्रॉजेक्ट हैं।