दादरी

(Courtesy: indianexpress)


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By नदीम ज़फ़र, TwoCircles.net

“अख़लाक़” मर गया
हिंदुस्तान का !

पड़ोसी का हक़?
छोड़िये,
लेकिन,
ज़िंदा रहने का हक़
तो दिया हुआ था,
संविधान का I

सब को गाये की फ़िक्र है,
और किसे ख़बर
क्या हुआ
इंसान का !

आँख के बदले आँख
तो पुरानी बात हुई
“डिजिटल इंडिया” है,
हुकुम है “हाई-कमान’ का!

अब केवल अफवाह पर
ख़ून जायज़ है
मुसलमान का!!

हमारे दुश्मन तो थे ही,
“देश प्रेमी” भी खुश हैं,
चलो अच्छा हुआ,
अख़लाक़ मर गया,
हिंदुस्तान का !!

(डॉक्टर नदीम ज़फ़र जिलानी, मेनचेस्टर, इंग्लैंड)

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