…और मैंने नोखा को ‘डेल्टा’ के लिए लड़ते हुए देखा

दलित छात्रा डेल्टा मेघवाल की उनके कॉलेज परिसर में हुई विवादित मौत पर देश भर में चर्चा और चिंता है. कॉलेज-प्रशासन जहां इसे आत्महत्या बता रही है, वहीं परिवार का दावा है कि उनकी बलात्कार के बाद हत्या की गई है. TwoCircles.net के विशेष संवाददाता अफ़रोज़ आलम साहिल नोखा पहुंचे. उन्होंने वहां के लोगों से बात की. हालात को समझा और कई विशेष रिपोर्टें तैयार कीं. पेश है इस सीरिज़ की पहली रिपोर्ट…

राजस्थान का नोखा शहर इन दिनों चर्चा का केन्द्र बना हुआ है. वजह 17 साल की एक प्रतिभाशाली दलित लड़की ‘डेल्टा मेघवाल’ की अकाल मौत है, जो नोखा के श्री जैन आदर्श कन्या शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालय में BSTC (बेसिक स्कूल टीचर कोर्स) की पढ़ाई कर रही थी.


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इस वजह की तलाश करते हुए हम नोखा की गलियों में पहुंचे… यहां की तस्वीर में हमें यहां की तासीर की छाप नज़र आई.

मेरे ज़ेहन में कई सवाल थे. आख़िर डेल्टा मेघवाल के साथ ये क्यों हुआ? क्यों उसे घुट-घुट कर जीने और फिर मरने को मजबूर होना पड़ा?

Nokha

नोखा का पूरा माहौल, यहां की विरासत और यहां के जन-जीवन में मुझे मेरे सवालों का जवाब मिल गया. दरअसल, नोखा 21वीं शताब्दी में भी 16वीं शताब्दी की मानसिकता को जी रहा है. छुआछूत, भेदभाव, जात-पात से लेकर इंसान और इंसान के बीच ज़बरदस्त खाई का फ़र्क़ यहां के घरों, सड़कों, चौराहों व बाज़ारों तक फैला हुआ है.

छात्र अभिषेक गोयल साफ़ लफ़्ज़ों में कहते हैं –‘ये शहर ज़रूर बदल गया है, लेकिन यहां के लोगों की सोच आज तक नहीं बदली.’

ऑटो वाले निसार मोहम्मद का भी कहना है कि –‘डेल्टा को जातीयता के आधार पर मारा गया है…’ यही बात एक दलित नेता मोदनलाल ढ़िल्लड़ भी कहते हैं.

जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गए. ये छोटी-छोटी गांठे और भी विकराल होती नज़र आईं. कुछ बातें इतना ज़्यादा नफ़रत और ऊंच-नीच के आगोश में डूबे नज़र आएं कि इंसान ही इंसान का दुश्मन दिखाई देने लगा. उस माहौल में डेल्टा जैसी प्रतिभावान लड़की का और हश्र भी क्या होना था…

डेल्टा की एक दोस्त ने साफ़-साफ़ बताया कि –‘कॉलेज के हॉस्टल में जातीयता के आधार पर लड़कियों को कई तरीक़े से प्रताड़ित किया जाता था. खाना बनाने वाली भी लड़कियों के साथ भेदभाव करती थी. दलित लड़कियों के लिए अलग बर्तन थे और खाने के बाद इन्हें खुद ही धोना पड़ता था.’

वो बताती हैं कि –‘डेल्टा कई बार इसके विरोध में आवाज़ उठा चुकी थी. डेल्टा की यही बात टीचरों को खटकती थी.’ यह बोलते-बोलते उसके आंखों से आंसू टपकने शुरू हो जाते हैं. (डेल्टा के इस दोस्त का नाम सुरक्षा कारणों से हम यहां प्रकाशित नहीं कर रहे हैं.)

इस बात की पुष्टि डेल्टा के पिता महेन्द्रराम मेघवाल भी करते हैं. वो बताते हैं कि –‘डेल्टा ने मुझसे कहा था –पापा यहां बहुत परेशान हूं. मुझे यहां नहीं रहना’ लेकिन मैंने ध्यान नहीं दिया.

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सामाजिक कार्यकर्ता जुगल हटीला बताते हैं कि नोखा में छुआछूत की बीमारी बहुत ज़्यादा है. यहां जाति के आधार पर श्मसान घाट हैं. बड़े जाति वाले अपने व्यापार में दलितों को नहीं रखते और अगर दलित कोई खुद का व्यापार कर भी ले तो चलना काफ़ी मुश्किल है.

वो बताते हैं कि यहां के कई मंदिरों में दलितों का प्रवेश वर्जित है. एक मंदिर पर यहां तक लिख दिया गया कि फलां-फलां जाति के लोग अंदर नहीं आ सकतें. तब मैंने इसका विरोध किया था. मामले को थाने तक लेकर गया. आख़िरकार प्रशासन दबाव में आकर दिवार पर लिखें इन बातों को मिटाने का काम किया. जुगल हटीला इस समय कांग्रेस के साथ जुड़ें हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता चुन्नीलाल राजस्थानी बताते हैं कि –‘यहां छुआछूत का आलम यह है कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम तक में दलितों व सवर्णों के लिए खाने के अलग-अलग टेन्ट लगाए जाते हैं.’

वो बताते हैं कि इसी साल 26 जनवरी को नोखा शहर से 20 कि.मी. दूर एक गांव में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यक्रम में जब दलितों के लिए अलग टेन्ट लगाया गया तो हमने इसका विरोध किया. हालांकि यहां के शादियों में अब भी दलित समाज के टेन्ट अलग से लगाया जाता है. खाने के बाद दलितों को बर्तन भी खुद धोना पड़ता है. नहीं धोने पर कई बार पिटाई के मामले भी सामने आए हैं.

हालांकि नोखा के वरिष्ठ पत्रकार कैलाश मोयल का कहना है कि –‘दलित समाज ने यहां अब बहुत तरक़्क़ी है. पहले से काफी जागरूक हुआ है. इसमें सबसे आगे मेघवाल समाज के लोग हैं. इनके सामने सवर्ण टूट चुके हैं. बस यही बात सवर्णों को पच नहीं पा रही है और इन्हें प्रताड़ित करने के तरह-तरह के तरीक़े सोच रहे है.’

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यहां के लोगों में सबसे ज़्यादा आक्रोश इस बात की है कि डेल्टा मेघवाल के मौत के बाद भी कॉलेज व पुलिस प्रशासन ने उसके साथ भेदभाव किया.

उसे नगरपालिका के मृत पशुओं व कूड़ा ढ़ोने वाले टैक्ट्रर-ट्रॉली में बग़ैर उसके बदन पर कपड़ा डाले अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल में भी लाश को फ्रिज़र में रखने के बजाए एक कोने में ऐसे ही डाल दिया गया. यह बात यहां के मेघवाल समाज को क़तई बरदाश्त नहीं है. इनकी मांग है कि इसके लिए ज़िम्मेदार थाना अधिकारी पूजा यादव को तुरंत निलंबित किया जाए.

पूरा दिन नोखा के सुनसान सड़कों पर घुमते हुए हमने पाया कि लोग अपने कारोबार में ऐसे मस्त हैं, जैसे यहां कुछ हुआ ही ना हो. मगर शाम होने से पहले यहां का माहौल बदला हुआ नज़र आया. नोखा के शांत वातावरण में डेल्टा के इंसाफ़ के नारे गुंजने लगें. –‘डेल्टा के हत्यारों को गिरफ़्तार करो… जब तक सूरज-चांद रहेगा, डेल्टा तेरा नाम रहेगा… जैन कॉलेज की मान्यता रद्द करो… प्रशासन की गुंडागर्दी नहीं चलेगी… नहीं चलेगी…’

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इन मज़बूत व ऊंची आवाज़ों से स्पष्ट अहसास हुआ कि ये मुहिम अभी रूकने वाली नहीं है.

दरअसल, सवाल एक डेल्टा के इंसाफ़ का नहीं है. सवाल इन घटिया परंपराओं व स्तरहीन मानसिकता पर अंतिम प्रहार करने का है. नोखा के शांत फ़िज़ाओं से उठी इन आवाज़ों ने इस बात का यक़ीन दिला दिया कि लड़ाई दूर तक जाएगी और इसे जाना भी चाहिए…

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