छात्र संघ चुनाव के लिए जामिया में भूख हड़ताल, यूनिवर्सिटी का दमनकारी रुख़ बरक़रार

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net


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नई दिल्ली : केन्द्रीय विश्वविद्यालय जामिया मिल्लिया इस्लामिया इन दिनों डेमोक्रेसी का ‘फर्स्ट लेशन’ पढ़ने को बेताब है. इसके लिए तीन छात्र भूख हड़ताल पर बैठ चुके हैं. इनकी मांग है कि जामिया प्रशासन अगर अगले 24 घंटों में छात्रों की मांग को देखते हुए जामिया में छात्र संघ की बहाली की घोषणा नहीं करती है तो हम ये भूख हड़ताल अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा देंगे.

दूसरी ओर इस संबंध में जामिया का कहना है कि छात्र संघ को लेकर एक मामला हमीदुर रहमान बनाम जामिया (Writ Petition No.917/2012) दिल्ली हाईकोर्ट में है. जिसमें याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष छात्र संघ चुनाव कराए जाने की मांग की है. इसके हस्तक्षेप में 9 विद्यार्थियों के एक समूह ने इस केस में 28 फरवरी, 2012 को एक आवेदन दिया था और जामिया में छात्र संघ चुनाव का विरोध किया है.

जामिया का कहना है कि चूंकि यह मामला न्यायालय में है. ऐसे में छात्र संघ चुनाव कराना अदालत की अवमानना ​​के रूप में होगा. जामिया क़ानूनी रूप से चुनाव न कराने के लिए बाध्य है. इसका हल यह है कि याचिकाकर्ता द्वारा अदालत से याचिका वापस लेने के साथ-साथ जिन छात्रों ने आवेदन दिए हैं, वो भी अपने आवेदन वापस लें.

लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट में हमीदुर रहमान की ओर इस मामले को देख रहे एडवोकेट सिताब अली चौधरी का कहना है कि जामिया ने पहले भी इस मामले में अदालत को गुमराह किया था और अब भी छात्रों को गुमराह कर रही है.

वो बताते हैं कि कोर्ट की ओर से छात्र संघ चुनाव कराए जाने की कोई मनाही नहीं है. बल्कि कोर्ट ने खुद ही जामिया को इस संबंध में कहा था तो जामिया ने कोर्ट को बताया कि जामिया सब्जेक्ट एसोसियशन के ज़रिए यूनियन के लिए तैयार है. जो हमीदूर रहमान को स्वीकार्य नहीं था. अगर जामिया अब चुनाव कराने को तैयार है तो आसानी से चुनाव करा सकती है. इसमें अदालत की ओर से कोई बंदिश नहीं है.

वहीं याचिकाकर्ता हमीदूर रहमान का कहना है कि, जामिया ने छात्रों के प्रति हमेशा दमनकारी रूख अपनाती आई है, जो अब भी बरक़रार है. हम जामिया में डायरेक्ट चुनाव के पक्ष में हैं ताकि यहां के छात्र इसी बहाने पॉलिटिक्स के एबीसी से रूबरू हों. ताकि भारतीय राजनीति में जिस तरह से डीयू, जेएनयू जैसे यूनिवर्सिटियों ने अपना योगदान दिया है, वैसा ही जामिया भी दे. 

हमीदूर रहमान के मुताबिक़, जामिया ने मुझे हर तरह से दबाने की कोशिश की. वाईस चांसलर नजीब जंग ने अपने स्पेशल पावर का इस्तेमाल करके मेरा दाख़िला रोक दिया. मुझे कई तरह के लालच भी दिए गए. लेकिन मैं कभी बिका नहीं और न ही भविष्य में जामिया मुझे खरीद पाएगी.

भूख हड़ताल पर बैठे तीन छात्रों में शामिल एक छात्र मीरान हैदर का कहना है कि छात्र संघ चुनाव हम छात्रों का अधिकार है, लेकिन जामिया प्रशासन ने हमसे हमारा ये हक़ छीन रखा है. ये लिंगदोह कमेटी के सुझावों का सरासर अपमान है. जामिया प्रशासन ऐसा इसलिए कर रही है ताकि वो छात्रों के नाम पर अपने भ्रष्टाचार को जारी रखे और उन्हें कोई टोकने वाला नहीं हो.

इस मसले पर जामिया छात्र संघ के भूतपूर्व अध्यक्ष शम्स परवेज़ कहते हैं कि, जामिया अलग-अलग बहाने बनाकर हमेशा से छात्रों के अधिकारों का हनन करती आई है. छात्रों को क़ानूनी तौर पर ये अधिकार मिला हुआ है कि वो अपना नेता चुने तो फिर जामिया प्रशासन इन्हें इनके अधिकारों से कैसे वंचित रख सकती है. हद तो यह है कि जामिया छात्र संघ के नाम पर छात्रों से फीस भी वसूल करती रही है.

गौरतलब रहे कि पूरे आठ के साल बाद सन् 2005 में छात्र संघ का चुनाव कराया गया. दिसम्बर में चुनाव हुए. जनवरी के आख़िर में जीते हुए छात्र नेताओं ने शपथ ली, लेकिन इस छात्र संघ को मार्च में ही भंग कर दिया गया. उस समय के छात्रों का आरोप था कि जिन-जिन छात्र नेताओं ने इस चुनाव में सक्रिय रोल अदा किया, उन्हें जामिया ने आगे दाखिले से रोका. जब इस मामले को लेकर छात्रों ने विरोध-प्रदर्शन किया तो छात्र संघ अध्यक्ष के साथ मारपीट की गई. तबसे जामिया में अब तक छात्र संघ के चुनाव नहीं हो सके हैं.

साल 2011 में राष्ट्रीय स्तर पर बनी ‘फोरम फ़ॉर स्टूडेन्ट डेमोक्रेसी’ ने फिर से छात्र संघ के लिए आवाज़ उठाना आरंभ किया. जामिया प्रशासन ने इसे हर तरह से दबाने की कोशिश की. तब 2012 में ‘फोरम फ़ॉर स्टूडेन्ट डेमोक्रेसी’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष अफ़रोज़ आलम ने इस संबंध में एक जनहित याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल की. लेकिन जामिया ने इस मामले में कोर्ट को गुमराह किया और कोर्ट ने इसके बिना पर इस जनहित याचिका को खारिज कर दिया.

इसी जनहित याचिका को जामिया के पॉलिटिकल साइंस के छात्र हमीदूर रहमान ने 14 फरवरी, 2012 को दाखिल किया, जिसे कोर्ट ने स्वीकार्य किया. इस मामले को दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस वी.के. जैन ने 05 फरवरी, 2012 को एक रेगुलर केस के रूप में एडमिट कर लिया. कई सुनवाईयों के बाद इस मामले में आख़िरी सुनवाई जस्टिस विभू बखरू के कोर्ट में हुई, लेकिन अब तक इस मामले में कोई आदेश नहीं आ सका है. फिलहाल जामिया की ओर 09 अक्टूबर, 2017 को जामिया की ओर से एडवोकेट ज़ेबा खैर ने अपना वकालतनामा पेश किया है.

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