�क "ग�जराती" की तलाश
यह अहमदाबाद की �क सड़क है। तेज फ़र�राटा वाली सड़क। बगल से ग�ज़रती रेल लाइन। पास में ही �क अंडर ब�रिज जिसमें महात�मा गांधी के जीवन की कई तस�वीर मिल जाती है।यह अहमदाबाद का शाही बाग़ का इलाका है। सामने लम�बी ऊंची इमारत। जहां रहते हैं शहर के ऊंचे लोग। जो बालकनी से शहर को देखते हैं, तो सब क�छ बौना नज़र आता है। आदमी से लेकर कार तक।
इसी सड़क के ठीक सामने अहमदाबाद का पà¥?लिस मà¥?खà¥?यालय है। गà¥?जराती में इसके बोरà¥?ड को पढ़ा जा सकता है। यहां पà¥?लिस कमिशनर का दफà¥?तर है। पर मैं आपको यह सब कà¥?यों बता रहा हूं। सड़क, इमारतें, पà¥?लिस मà¥?खà¥?यालय, कमिशà¥?नर…
कà¥?योंकि मà¥?à¤?े तलाश है à¤?क 'गà¥?जराती' की। जिसके बारे में अवामी शायर मख़à¥?दूम मोहिउदà¥?दीन ने कà¤à¥€ कहा था:
यक़ी बख़�शा ज�बां को जिसने पहले उसके जीने का
वह पहला "नाख�दा" हिन�द�स�तानी के सफ़ीने का
दिये रौशन किये मन�दिर में काबे के चिराग़ों से
हज़ारों जन�नतें आबाद कर दीं दिल के दागों से
वह मिरासे जहां वह ख़�ल�द का पैगाम आता है
दकन की सरज़मीं पर ज़िन�दगी का जाम आता है
उसे बाबा-à¤?-उरà¥?दू का नाम दिया गया। यानी उरà¥?दू का पितामह। गांधी जी ने जिस हिनà¥?दà¥?सà¥?तानी की वकालत की, वो शायद अपने इसी गà¥?जराती से पà¥?रेरित होकर की होगी। आख़िर दोनों ही साबरमती के संत थे। कहते हैं, उस गà¥?जराती ने à¤?क à¤?सी ज़बान को अपनाया, जो आम लोगों के दिल को छूती थी। उससे पहले, जिसे आज उरà¥?दू कहा जाता है, उसकी ज़बान à¤?सी नहीं थी। तà¤à¥€ तो लोग इस शायर के मà¥?रीद थे। कोई इनà¥?हें 'वली दकà¥?खà¥?निनी', तो कोई इनà¥?हें 'वली गà¥?जराती', या फिर 'वली मà¥?हमà¥?मद वली' के नाम से याद करता है। शायद à¤?से ही दिखते थे जनाब वली गà¥?जराती। जनà¥?म तो लिया 1688 में महाराषà¥?टà¥?र के औरंगाबाद में पर गà¥?जरात से à¤?सा इशà¥?क हà¥?आ कि उनà¥?हें वली 'गà¥?जराती' कहा जाने लगा। अहमदाबाद में ही आख़िरी सांस ली।
यह वली की मज़ार है… माफ कीजियेगा… कà¤à¥€ à¤?सी हà¥?आ करती थी। जहां अक़ीदतमंदों का à¤?सा ही तांता लगा रहता। रोशनी से जगमग और चारों और फ़िज़ा में गà¥?लाब की ख़à¥?शà¥?बू… नातों और कवà¥?वालियों की गूंज…
पिछले पांच साल से मज़ार की जगह à¤?सी समतल, सपाट सड़क है। कितना अचà¥?छा लग रहा है। है न…
मज़ार ढहाने वाले लोगों को लगा कि à¤?क मà¥?सलमान की निशानी मिटा दी गयी… पर इनà¥?हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि वह बादशाह नहीं, शायर था, अवामी शायर… मज़हब और जात पात के दà¥?नियावी दायरे से ऊपर… इसलिà¤? उसकी यादगारी के निशानी को मिटाना मà¥?मकिन नहीं था…
तà¤à¥€ तो समतल सड़क पर à¤à¥€ लोग उसके निशां तलाश ले रहे हैं। इसका मतलब… वह लोगों के दिल ओ दिमाग में अà¤à¥€ तक जिंदा है…
मज़ार ढहाये जाने की पांचवीं बरसी पर इस साल à¤à¥€ अहमदाबाद के संवेदनशील आम जन उस जगह पर जà¥?टे और अपनी अक़ीदत पेश की । वली की याद में कवà¥?वालियां गायी गयीं। औरत मरà¥?द, बचà¥?चे और बà¥?ज़à¥?रà¥?गों ने दà¥?आà¤?ं मांगी। राह चलते लोगों ने सिर à¤?à¥?काया, आंखें बंद कर कà¥?छ मनà¥?नतें मांगी। तो à¤?क नौजवान ने तेज रफà¥?तार कार को बà¥?रेक लगाया आैर à¤à¤° मांग सिंदूर से चमकती अपनी नवेली दà¥?लहन को बताने लगा कि यह बाबा है… गà¥?जराती बाबा… धमाल में लोगों ने यह जगह तोड़ दी… दà¥?लहन ने पूछा … कà¥?यूं… नौजवान सर à¤?à¥?काते हà¥?à¤? आगे बढ़ गया…
पर जहन में चंद सवाल à¤à¥€ उठरहे हैं; कà¥?या पांच साल बाद à¤à¥€ सà¤à¥?य नागरिक समाज इस हाल में नहीं है कि वो यह मांग करे कि वली की मज़ार की पहचान वापस लौटायी जाये? कà¥?या वाइबà¥?रेंट गà¥?जरात में वली गà¥?जराती की कोई जगह नहीं होगी? कà¥?या वली, गà¥?जरात की पहचान नहीं हैं? मेरे लिये हैं, कà¥?योंकि मैं तो गà¥?जरात को वली गà¥?जराती से ही याद करना चाहूंगा! जो कहा करता था: "वली ईरानो तूरान में है मशहूर, अगरचे शायरे मà¥?लà¥?के दकन है।"
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