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By Nasiruddin Haider Khan

�क "ग�जराती" की तलाश

 


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यह अहमदाबाद की �क सड़क है। तेज फ़र�राटा वाली सड़क। बगल से ग�ज़रती रेल लाइन। पास में ही �क अंडर ब�रिज जिसमें महात�मा गांधी के जीवन की कई तस�वीर मिल जाती है।यह अहमदाबाद का शाही बाग़ का इलाका है। सामने लम�बी ऊंची इमारत। जहां रहते हैं शहर के ऊंचे लोग। जो बालकनी से शहर को देखते हैं, तो सब क�छ बौना नज़र आता है। आदमी से लेकर कार तक।

 

इसी सड़क के ठीक सामने अहमदाबाद का पà¥?लिस मà¥?खà¥?यालय है। गà¥?जराती में इसके बोरà¥?ड को पढ़ा जा सकता है। यहां पà¥?लिस कमिशनर का दफà¥?तर है। पर मैं आपको यह सब कà¥?यों बता रहा हूं। सड़क, इमारतें, पà¥?लिस मà¥?खà¥?यालय, कमिशà¥?नर…

 

क�योंकि म��े तलाश है �क 'ग�जराती' की। जिसके बारे में अवामी शायर मख़�दूम मोहिउद�दीन ने कभी कहा था:
यक़ी बख़�शा ज�बां को जिसने पहले उसके जीने का
वह पहला "नाख�दा" हिन�द�स�तानी के सफ़ीने का
दिये रौशन किये मन�दिर में काबे के चिराग़ों से
हज़ारों जन�नतें आबाद कर दीं दिल के दागों से
वह मिरासे जहां वह ख़�ल�द का पैगाम आता है
दकन की सरज़मीं पर ज़िन�दगी का जाम आता है

 

उसे बाबा-�-उर�दू का नाम दिया गया। यानी उर�दू का पितामह। गांधी जी ने जिस हिन�द�स�तानी की वकालत की, वो शायद अपने इसी ग�जराती से प�रेरित होकर की होगी। आख़िर दोनों ही साबरमती के संत थे। कहते हैं, उस ग�जराती ने �क �सी ज़बान को अपनाया, जो आम लोगों के दिल को छूती थी। उससे पहले, जिसे आज उर�दू कहा जाता है, उसकी ज़बान �सी नहीं थी। तभी तो लोग इस शायर के म�रीद थे। कोई इन�हें 'वली दक�ख�निनी', तो कोई इन�हें 'वली ग�जराती', या फिर 'वली म�हम�मद वली' के नाम से याद करता है। शायद �से ही दिखते थे जनाब वली ग�जराती। जन�म तो लिया 1688 में महाराष�ट�र के औरंगाबाद में पर ग�जरात से �सा इश�क ह�आ कि उन�हें वली 'ग�जराती' कहा जाने लगा। अहमदाबाद में ही आख़िरी सांस ली।

 

 

सनà¥? 2002 की भयावह याद लिये, पांच साल बाद 2007 में, मैं जब अहमदाबाद गया तो मन में खà¥?वाहिश थी कि देखें हजरत वली गà¥?जराती जहां मà¥?काम करते थे, उसकी कà¥?या सूरत है। "थे"कà¥?यूं… "थे" इसलिये कि जब 2002 में गà¥?जरात में राजà¥?य के संरकà¥?षण में à¤?क खास समà¥?दाय के सफाये का अभियान चल रहा था, तो इनके मà¥?काम की जगह भी साफ कर दी गयी। यानी पà¥?लिस मà¥?खà¥?यालय के सामने, कमिशà¥?नर की नाक के नीचे लगभग 250 साल पà¥?रानी इनकी इस जगमगाती मज़ार को न सिरà¥?फ ढहा दिया गया बलà¥?कि तà¥?रंत ही समतल सड़क भी बना दी गयी।
 
 
 

यह वली की मज़ार है… माफ कीजियेगा… कभी à¤?सी हà¥?आ करती थी। जहां अक़ीदतमंदों का à¤?सा ही तांता लगा रहता। रोशनी से जगमग और चारों और फ़िज़ा में गà¥?लाब की ख़à¥?शà¥?बू… नातों और कवà¥?वालियों की गूंज…

पिछले पांच साल से मज़ार की जगह à¤?सी समतल, सपाट सड़क है। कितना अचà¥?छा लग रहा है। है न…

मज़ार ढहाने वाले लोगों को लगा कि à¤?क मà¥?सलमान की निशानी मिटा दी गयी… पर इनà¥?हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि वह बादशाह नहीं, शायर था, अवामी शायर… मज़हब और जात पात के दà¥?नियावी दायरे से ऊपर… इसलिà¤? उसकी यादगारी के निशानी को मिटाना मà¥?मकिन नहीं था…

 

तभी तो समतल सड़क पर भी लोग उसके निशां तलाश ले रहे हैं। इसका मतलब… वह लोगों के दिल ओ दिमाग में अभी तक जिंदा है…

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मज़ार ढहाये जाने की पांचवीं बरसी पर इस साल भी अहमदाबाद के संवेदनशील आम जन उस जगह पर जà¥?टे और अपनी अक़ीदत पेश की । वली की याद में कवà¥?वालियां गायी गयीं। औरत मरà¥?द, बचà¥?चे और बà¥?ज़à¥?रà¥?गों ने दà¥?आà¤?ं मांगी। राह चलते लोगों ने सिर à¤?à¥?काया, आंखें बंद कर कà¥?छ मनà¥?नतें मांगी। तो à¤?क नौजवान ने तेज रफà¥?तार कार को बà¥?रेक लगाया आैर भर मांग सिंदूर से चमकती अपनी नवेली दà¥?लहन को बताने लगा कि यह बाबा है… गà¥?जराती बाबा… धमाल में लोगों ने यह जगह तोड़ दी… दà¥?लहन ने पूछा … कà¥?यूं… नौजवान सर à¤?à¥?काते हà¥?à¤? आगे बढ़ गया…

 

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पर जहन में चंद सवाल भी उठ रहे हैं; क�या पांच साल बाद भी सभ�य नागरिक समाज इस हाल में नहीं है कि वो यह मांग करे कि वली की मज़ार की पहचान वापस लौटायी जाये? क�या वाइब�रेंट ग�जरात में वली ग�जराती की कोई जगह नहीं होगी? क�या वली, ग�जरात की पहचान नहीं हैं? मेरे लिये हैं, क�योंकि मैं तो ग�जरात को वली ग�जराती से ही याद करना चाहूंगा! जो कहा करता था: "वली ईरानो तूरान में है मशहूर, अगरचे शायरे म�ल�के दकन है।"

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A Lucknow based journalist, Nasiruddin Haider Khan visited Gujarat in March 2007. He blogs at http://dhaiakhar.blogspot.com/

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