By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,
साल 2012 के अक्तूबर महीने में तत्कालीन केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि देवालयों के निर्माण से ज़्यादा ज़रूरी है कि शौचालयों का निर्माण कराया जाए. इस बयान के परिणामस्वरूप हुए विरोध प्रदर्शनों को भारतीय लोकतंत्र बेहद अचकचाई निगाहों से देखता है, जहां कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं को जयराम रमेश के आवास के मुख्यद्वार पर नारेबाज़ी के साथ पेशाब किया.
इसे लगभग विरोधाभासी सचाई ही माना जाना चाहिए कि इस घटना के लगभग दो साल बाद, आज, यानी 2 अक्टूबर 2014, से पूरे देश में एक वृहद् स्वच्छता अभियान की शुरुआत की गयी है. इस अभियान का आह्वान खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से अपने भाषण के दौरान किया था. वे सफ़ाई पसंद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को एक स्वच्छ राष्ट्र उपहारस्वरूप देने की मंशा से आए हैं. इस बाबत हरेक सरकारी निकाय में राष्ट्रीय छुट्टी होने के बावजूद सभी स्तरों के कर्मचारियों को आना पड़ा, शपथ लेनी पड़ी और सफ़ाई अभियान में अपना योगदान देना पड़ा. संभवतः इस ‘देना पड़ा’ या ‘करना पड़ा’ के लहज़े की कोई ज़रूरत न होती, यदि आज गांधी जयंती सरीखा राष्ट्रीय अवकाश न होता.
अभियान की सफलता प्रदर्शित करता वाराणसी का चौक इलाका, जो नगर का आर्थिक केंद्र है.
इस अभियान के मद्देनज़र TCN ने कुछ लोगों से इस स्वच्छता अभियान के बारे में बात की. सबसे पहले हिन्दी के वामपंथी युवा आलोचक हिमांशु पंड्या ने इस ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की प्रासंगिकता पर अपने कुछ मौजूं विचार व्यक्त किए. हिमांशु पंड्या ने इसे शुरू करने की तारीख पर बात करते हुए कहा, ‘चूंकि आपकी लड़ाई सीधे नेहरू से थी और आप यह चाहते थे कि नेहरू के विचार और उनकी नीतियां पहले की तरह प्रसारित होना बंद हो जाए तो आपने शिक्षक दिवस को एक नए बाल दिवस के रूप में ढाल दिया, ताकि 14 नवंबर को मनाए जाने वाले बाल दिवस की प्रासंगिकता कम हो जाए. ठीक इसी तरह अब आपने गांधी पर निशाना साधा है. 2 अक्टूबर को मनाए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर आप स्वच्छ भारत अभियान लॉन्च करते हैं, इस तरह से आप गांधी जयंती के संदेश को धूमिल करने की फ़िराक में हैं.’
मुस्लिम बहुल क्षेत्र मदनपुरा, जहां कई स्थानों पर कूड़े को ढेर बनाकर यूं छोड़ दिया गया था
हिमांशु आगे कहते हैं, ‘आपके दामन पर जो 2002 के दाग हैं, दरअसल आप उन्हें साफ़ करना चाहते हैं. इसके लिए आपका सबसे बड़ा सहारा गांधी बनते हैं. आप गांधी के विचारों को तोड़-मरोड़कर भौतिक कूड़े तक समेट देते हैं, जबकि गांधी ने हमेशा साम्प्रदायिकता, ऊंच-नीच और हिंसा को साफ़ करने पर बल दिया. लेकिन लगता है कि उन विचारों से आपका कोई वास्ता नहीं.’
मुस्लिम बहुल क्षेत्र नईसड़क, जहां रोज़ाना सब्जी और कपड़ों का फुटकर बाज़ार लगता है.
युवा पत्रकार और जनपथ.कॉम के संचालक अभिषेक श्रीवास्तव कहते हैं, ‘मैं ज़्यादा विषयविद् होते हुए बात नहीं करूंगा. मेरा प्रश्न तो सिर्फ़ यह है कि यदि कूड़ा है तो वह क्यों है? आपके लिए ‘कूड़ा-कचरा’ शब्द के क्या मानी हैं? उनके अर्थ कितने वृहद-संकुचित हैं? अब से कुछ दिनों बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वामी श्रद्धानंद जयंती से शुद्धिकरण अभियान शुरू करने जा रहा है. संघ के घोर हिंदूवादी रवैये को देखते हुए यह स्पष्ट है कि यह अभियान पहले ईसाईयों और फ़िर मुस्लिमों को अपना निशाना बनाएगा.’
मरकाज़ी दारुल उलूम के पास रेवड़ी तालाब का इलाका.
अभिषेक समाज में व्याप्त अंतर के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि, ‘अब देखने की बात यह है कि आगे चलकर इस सफ़ाई अभियान और शुद्धिकरण अभियान में कितनी दूरी बनी रह पाती है? जैसा आप (TCN) अपनी पड़ताल के बारे में बता रहे हैं, उससे एकदम सम्भव है कि मामला आगे चलकर जब ‘कूड़े’ से ‘कूड़ा फैलाने वाले’ पर आएगा, तब तक आप(भाजपा) एक बहुत बड़े जनसमूह को किसी ख़ास समुदाय या तबके के खिलाफ़ मोड़ चुके होंगे. जनता तो कहने ही लगेगी कि भाई मुस्लिम या ईसाई कूड़ा फैला रहे हैं, इन्हें यहां से हटना होगा.’
दारुल उलूम के मुख्यद्वार व बाउंड्री से सटाकर नालियों के कचरे के कई सारे ढेर इस भांति लगा दिए गए.
हरिजनों और दलितों के प्रश्न पर हिमांशु पंड्या कहते हैं, ‘हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि वाल्मीकि समाज ने आजीविका के लिए नहीं बल्कि समाज को साफ़ करने की नीयत से इस काम को चुना. इसके साथ आप गांधी को पूरी तरह तजकर सिर्फ़ उस गांधी को पकड़ते हैं, जो वर्णाश्रम की बात करता है. आप अमरीका जाकर नवरात्र को पब्लिक प्रोपेगेंडा बना देते हैं. यानी आप जब दलित समाज और हरिजनों की तारीफ़ करते हैं, तो उन्हें सबकुछ बता देते हैं लेकिन उनके उत्थान के लिए कुछ नहीं करते हैं. गुजरात में अब भी मैनुअल स्कैवेंजिंग हो रही है, लेकिन इस दिशा में कोई कार्य नहीं.’
रेवड़ी तालाब के पास मुख्यसड़क पर फैला कूड़ा
इन बातों पर गौर करें तो गुजरात के हालातों पर विचार करने के कई बिंदु मिलते हैं. कुछ समय पहले सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसइ) की पड़ताल के बहाने बात करें तो साबरमती नदी पर रिवरफ्रंट के विकास के बावजूद कई जगहों पर साबरमती का पानी यमुना से भी ज़्यादा प्रदूषित है. ऐसे में यह प्रश्न उठना लाज़िम है कि भौतिक कूड़े से जुड़ा यह ‘सफ़ाई अभियान’ क्या पहले गुजरात में ‘मॉडल’ के रूप में विकसित नहीं किया जा सकता था? प्रधानमंत्री और केन्द्रीय मंत्रिमंडल के लगभग सभी सदस्यों ने झाड़ू लगाते हुए तस्वीरें खिंचवाई हैं, लेकिन जानकार प्रश्न उठाते हैं कि देश की नदियों में लगातार हो रहे प्रदूषण को रोकने के लिए क्या कोई ठोस नीति अभी तक नहीं बन पायी है? और कूड़े के अर्थ को इतना सीमित करना किस बात की निशानी है?
थाना भेलूपुर से बमुश्किल ५० मीटर की दूरी पर रेवड़ी तालाब की गली का मुहाना
हमने प्रसिद्ध गांधीवादी लेखक और पर्यावरण एक्टिविस्ट अनुपम मिश्र ने बात करने का प्रयास किया, लेकिन छुट्टी और तकनीकी समस्या के चलते कोई बात सम्भव न हो सकी.
रेवड़ी तालाब स्थित नगर निगम का कूड़ाखाना, जहां आसपास के इलाकों के कचरे ढेर किए जा रहे थे.
आगे जो तस्वीरें हम आपको दिखा रहे हैं, वे 2 अक्टूबर की दोपहर ली गयी प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की तस्वीरें हैं. शहर की प्रमुख सड़कें साफ़ कर दी गयी थीं, लेकिन मुस्लिम बहुल इलाकों में या तो कूड़ा उठाया ही नहीं गया था अथवा अन्य इलाकों का कूड़ा भी इन इलाकों में लाकर पटक दिया गया था. कुछ तस्वीरें शहर के भीड़भाड़ वाले इलाकों की भी हैं, जहां कूड़े को रोज़ के बहाने की तरह इस्तेमाल में लाया जा सकता है. एक सफ़ाई कर्मचारी रोशनलाल ने बताया कि, ‘हम लोगों को बताया गया था कि मेनरोड का कूड़ा सबसे पहले उठेगा. ‘अंदर के इलाकों’ में कोई जाता नहीं, इसलिए उधर ज़्यादा ज़रूरत नहीं है.’ इन तस्वीरों के साथ मोहल्लों और उनके संक्षिप्त ब्यौरे दिए गए हैं, जिससे इस ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की असल नब्ज़ को टटोला जा सके.