पंच-नामा : यूजीसी, तोगड़िया, गिरिराज, पार्सेकर और गाय-बैल

By TwoCircles.Net staff reporter,

आज के पांच और उनकी पड़ताल ….. महाराष्ट्र की सरकार के लिए गाय-बैल ज़रूरी हैं या मर रहे किसान, क्या यूजीसी का वजूद अल्पदक्ष मंत्रालय मिटा देगा, फ़िर से लहराती भगवा ज़ुबानें और तोगड़िया को बंगाल में भी रेड सिग्नल.


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1. गए यूजीसी के दिन?
अच्छे दिन आम जनता के आएं या ना आएं, लेकिन केन्द्रीय मंत्रियों के, भाजपा से जुड़े हुए लोगों के और संघ के लोगों के अच्छे दिन ज़रूर आ गए हैं. इसी क्रम में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अच्छे दिन आए तो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अच्छे चाहे बुरे, जैसे भी दिन थे, अब लद गए से लगने लगे हैं. अपनी कम काबिलियत और योग्यता को लेकर चर्चा में रहने वाली स्मृति इरानी मानव संसाधन व विकास मंत्री हैं. इस मंत्रालय की एक कमेटी ने यूजीसी की कामकाज की समीक्षा करने के बाद इसे भंग करने की सिफारिश कर दी है. इस कमेटी के अध्यक्ष हरी गौतम थे, जो पहले खुद यूजीसी के चेयरमैन रह चुके हैं. इस कमेटी की सिफारिश की खबरों को सही मानें तो कमेटी में अपनी सिफारिश में कहा है कि यूजीसी में कोई फेरबदल करने से कोई लाभ नहीं मिलेगा. अच्छा होगा कि सरकार एक नेशनल हायर एजुकेशन अथॉरिटी का गठन करे. लेकिन यह बात जानने योग्य है कि यूजीसी का गठन संविधान के अधिनियम के तहत किया गया था, इसलिए इसे भंग करने के लिए भी लोकसभा और राज्यसभा में मंत्रालय को संघर्ष करना होगा. इसके बाद राष्ट्रपति से भी अनुमति लेनी होगी. हालांकि सरकार ने यह सफ़ाई दी है कि यह बात गलत है, लेकिन कमेटी की सिफारिशों और सरकार के रवैये को देखते हुए मामले की संजीदगी कुछ और ही कहती है.



2. प्रवीण तोगड़िया पर बैरिकेड
विश्व हिन्दू परिषद् के भी दिन यूजीसी जैसे होते जा रहे हैं. पश्चिम बंगाल की तृणमूल सरकार ने विश्व हिन्दू परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया के पश्चिम बंगाल में घुसने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है. प्रदेश सरकार ने कहा है कि प्रवीण तोगड़िया के प्रदेश में घुसने से धार्मिक तनाव फ़ैल सकता है. इस फैसले के आने का वक्त भी मुफ़ीद मालूम पड़ता है क्योंकि पांच अप्रैल को पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर में प्रवीण तोगड़िया एक जनसभा को संबोधित करने वाले थे. इसके पहले भी कर्नाटक और उड़ीसा की प्रदेश सरकारें प्रवीण तोगड़िया पर प्रतिबन्ध लगा चुकी हैं. प्रवीण तोगड़िया पर प्रतिबन्ध का फ़ैसला सही है लेकिन साथ में यह भी एक तथ्य है कि पश्चिम बंगाल की तृणमूल सरकार अपने ही उत्पाती विधायकों के खिलाफ़ कोई भी कार्रवाई करने में अब तक असमर्थ है. बलात्कार करने के लिए उकसाने वाले विधायक हों या सरे-आम दहशतगर्दी करने वाले लोग, तृणमूल को सेकुलर मूल्यों को सचमुच में बरतने के लिए सभी पक्षों को सज़ा देनी चाहिए.

3. गिरिराज सिंह की ज़ुबान
‘क्या पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किसी नाइजीरियन महिला से शादी की होती, तो क्या कांग्रेस उस महिला का नेतृत्व स्वीकार करती?’ केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इतना बोला ही था कि ठन्डे पड़े चूल्हे में धधकता कोयला गिर पड़ा. अभी तक कुछ दिनों से बयानबाजी का सफ़र रुका हुआ था, लोग चुप थे, मंत्री ज़्यादा नहीं बोल रहे थे और संघ के पदाधिकारी भी शान्त बैठे हुए थे. गिरिराज सिंह और गोवा के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पार्सेकर ने मामले को फ़िर से भगवा रंग में रंग दिया. गोवा के मुख्यमंत्री की कहानी हम आगे बताएंगे. विपक्ष ने मोदी सरकार से गिरिराज के इस्तीफ़े की मांग कर दी है और नाइजीरिया ने भी असहमति के सुर दर्ज़ करा दिए हैं.


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4. लक्ष्मीकांत पार्सेकर की ज़ुबान
केन्द्रीय मंत्री तो कम थे नहीं कि साथ निभाने को गोवा के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पार्सेकर भी रंगभेदी-नस्लभेदी टिप्पणी के खेल में ज़ोर आज़माइश करने उतर पड़े. गोवा में नर्सें और स्वास्थ्य कर्मचारी और एम्बुलेंसों के साथ-साथ अन्य मांगों को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गए. जब मामला बढ़ा तो नर्सों को मुख्यमंत्री ने मिलने के लिए बुलाया. नर्स अनुषा सावंत ने बताया कि जब वे लोग मुख्यमंत्री से मिले तो उन्हें लक्ष्मीकांत पार्सेकर ने कहा कि उन्हें धूप में प्रदर्शन नहीं करना चाहिए, नहीं तो उनका रंग काला पड़ जाएगा और उन्हें अच्छा दूल्हा नहीं मिलेगा. मुख्यमंत्री का कार्यालय इस टिप्पणी के बारे में कोई भी जानकारी होने से नकार रहा है, लेकिन हां…इस टिप्पणी की वजूद से नकारा भी नहीं जा सकता है, क्योंकि गोवा पहले भी भाजपा के लिए एक बड़ा खेल का मैदान रहा है, जहां ‘थोड़ी-बहुत छींटाकशी’ भी होती रहती है.

5. फोटो खींचिए गाय-बैल की और किसानों को मरने दीजिए
महाराष्ट्र के मालेगाँव में पुलिस सभी घरों में मौजूद गायों और बैलों की जानकारी जुटा रही है. इसके लिए मालेगाँव के लोगों से अपने-अपने गाय और बैलों की तस्वीरें खींचकर थाने में जमा करने को कहा गया है. पूरी जानकारी के साथ जानवरों की तस्वीरें भी लगाई जाएंगी. प्रशासन कह रहा है कि लोग अपनी निजी दुश्मनी निकालने के लिए झूठ ही फ़ोन कर परेशान करते थे, इसलिए इस परेशानी से बचने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है. लेकिन कुछ प्रशासनिक अधिकारी यह कारण दे रहे हैं कि गोमांस को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है. इन सब चोंचलेबाजियों के बीच एक ही प्रश्न ज़ेहन में उठता है, महाराष्ट्र की फडनवीस सरकार किसानों की आत्महत्याओं की ओर कब ध्यान देगी?

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