याकूब क़ुरैशी के 51 करोड़

By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,

वाराणसी/ मेरठ: पेरिस के एक व्यंग्यात्मक साप्ताहिक अखबार शार्ली एब्दो पर आतंकवादी ताकतों ने हमला किया. हमला होने के बाद गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय गणराज्य के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस घटना के बाद कड़ा ऐतराज़ जताया. चूंकि देश की सत्ता पर ऐसी पार्टी क़ाबिज़ है, जिसपर बहुत पहले से ही सम्प्रदायवादी क्लेशों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया जाता रहा है, इसलिए सत्ताधारी पार्टी और उसकी कृपा से कृतार्थ हुए समाचार चैनलों के लिए यह ज़रूरी था कि वे शार्ली एब्दो पर हुए हमले को जो चाहे वह रूप दे सकें.


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लेकिन इसी उहापोह और गमज़दा माहौल में बसपा विधायक हाजी याकूब क़ुरैशी ने सार्वजनिक मंच से बयान दिया कि वे शार्ली के दफ़्तर पर हमला करने और १२ लोगों को मौत के घाट उतारने वाली शख्सियत को 51 करोड़ रुपयों का इनाम देंगे. इतने पर भी बयान नहीं थमना था सो नहीं थमा, उन्होंने आगे कहा कि जो भी पैगम्बर का अनादर करेगा उसकी मौत शार्ली एब्दो के पत्रकारों और कार्टूनिस्टों सरीखी होगी.



याकूब क़ुरैशी (Courtesy: The Hindu)

क़ुरैशी के शब्दों में ही बात कहें तो उन्होंने कहा था, “पैगम्बर की शान से छेड़छाड़ करने वाला सिर्फ़ मौत का हक़दार है और ऐसे लोगों के खिलाफ़ कानूनी कार्यवाही शुरू करने की कोई ज़रूरत नहीं है. रसूल के आशिक़ ही उन्हें सजा देंगे.” हालांकि ध्यान देने वाली बात यह भी है कि याकूब क़ुरैशी के इस सरीखे बयान कुछ नए नहीं हैं. साल 2006 में याकूब ने पैगम्बर का कार्टून बनाने वाले डेनिश कार्टूनिस्ट का सिर कलम करने वाले को भी 51 करोड़ रुपयों का इनाम और सोने से तौलने की बात कही थी.

बयानबाज़ी की बात न भी करें तो याकूब का विवादों से एक किस्म का याराना-सा लगता है. साल 2006 में ही याकूब बिना टिकट लखनऊ मेल में यात्रा करने के लिए रोशनी में आए. उसके बाद 2011 में आला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में सिपाही से मारपीट कर उसके कपड़े फाड़ डाले और 2014 में मतदान के वक्त याकूब ने अपने समर्थकों के साथ धक्कामुक्की की थी. याकूब के घर पर नौकरानी ने संदिग्ध परिस्थितियों में खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी.

हाजी याकूब क़ुरैशी मीट के एक बड़े व्यापारी हैं. अल-फहीम मीटेक्स के नाम से याकूब क़ुरैशी मीट पैकेजिंग इंडस्ट्री चलाते हैं, जहां से अरब व अन्य खाड़ी देशों में मीट का निर्यात किया जाता है.

लेकिन इतने गमज़दा और खौफज़दा माहौल में इस किस्म के बयान आने से प्रश्न उठना लाज़िम है कि इसकी ज़रूरत क्या थी? क्या एक जनप्रतिनिधि इस तरह के बयानों से समाज को दिग्भ्रमित नहीं करता है? जब बात इतने बारीक़ से फ़र्क पर आकर टिकी हो कि एक ख़ास धर्म को धर्म के बजाय आतंकवाद का स्कूल मान लिया जाता हो, तो क्या ऐसे बयान समाज में फैली अज्ञानता और असमानता को और नहीं बढाते हैं और क्या इस्लाम सम्बन्धी पूर्वाग्रहों को बल नहीं देते हैं?

मेरठ शहर के ही बाशिंदे अय्यूब खान कहते हैं, “पेरिस के साथ-साथ दुनिया के दूसरे हिस्सों में जो भी आतंकवादी घटनाएं हो रही हैं, उनसे इस्लाम पर अविश्वास बढ़ता जा रहा है. पूरे मज़हब को एक ही कटघरे में खड़ा करने की क़वायद तेज़ होती जा रही है. ऐसे में क़ुरैशी साहब के बयान से लोग और ज़्यादा अविश्वास की स्थिति में आ जाएंगे.”

गंगोत्री कालोनी में रहने वाले फैज़ल कहते हैं, “किसी भी व्यक्ति या संस्थान द्वारा किसी भी मज़हब की भावनाओं को ठेस पहुंचाना गलत है. लेकिन यदि कोई चीज़ गलत है तो ज़रूरी नहीं कि उसका विरोध भी गलत तरीके से किया जाए. वहाबी ताक़तों से लड़ने के लिए पहली शर्त होनी चाहिए कि कहीं हम भी उन जैसों न हो जाएं.”

ज़ाहिर है कि याकूब का बयान किसी भी तरीके से जस्टिफाई नहीं किया जा सकता है. लेकिन यह भी ढूंढने की ज़रूरत है कि उन्हें ऐसे बयान देने की ज़रूरत क्यों पड़ी? आतंकी घटनाओं और आईएसआईएस-अलकायदा-तालिबान जैसे कट्टरपंथी और हिंसक संगठनों के कारनामों ने लगभग एक समूचे मज़हब को एक रंग से रंग दिया है. रंग के बजाय ठप्पा कहें तो मुमकिन है कि मज़मून ज़्यादा मुफ़ीद होगा. याकूब के बयान से समाज के भीतर गुस्से का पता चलता है जो गलत भाषा और गलत शब्दों के साथ बाहर आ रहा है.

आतंक की सभी घटनाओं को केन्द्र में रखने का कोई प्रयास नहीं किया गया, अलबत्ता उस ख़ास मज़हब को केन्द्र में रखकर बात की जा रही है जो गाहे-बगाहे इन घटनाओं का एक अनजाना-सा आधार बन जाता है. इसे ऐसे समझने का प्रयास किया जा सकता है कि ज़मीरी तौर पर जो भी असंतुष्टि किसी भी एक ख़ास मज़हब में क़ाबिज़ है, उसे ज़ाहिर होने का कोई तो रास्ता चाहिए. वह असंतुष्टि जब बेहद अहिंसक और नामंज़ूर तरीके से सामने आती है तो उसे याकूब क़ुरैशी के बयानों सरीखे रास्ते मिलते हैं. और मौजूदगी का यही फ़साना है कि उसके निर्दोष और भोलेपन के बरअक्स बात करने के लिए कोई समझदार और शान्त आवाज़ नहीं है.

यह तो साफ़ ही है कि इस बयान से याकूब को बहुधा लाभ मिल सकता है, लेकिन इस लाभ का कितनी फीसद हिस्सा उस समाज के बीच उतरेगा जो ऐसी ही बयानबाज़ी के बाद आंकलन का शिकार होता आया है. ज़ाहिर है कि याकूब कुछेक कानूनी उठापटक के बाद फ़िर से पटल पर दिखने लगें, लेकिन केन्द्र सरकार के रंग और पिछली छः-सात महीनों में देश में हो रही घटनाओं के बाद समाज का क्या रंग पटल पर दिखेगा, यह कहना ज़रा मुश्किल है.

बहरहाल, याकूब क़ुरैशी के खिलाफ़ कोतवाली थाने में आईपीसी की धारा 505 के तहत एफआईआर दर्ज़ कर ली गयी है. याकूब को गिरफ़्तार करने के लिए दबिश दी जा रही है लेकिन याकूब भूमिगत हो गए हैं. खबर यह भी है कि प्रदेश में बुरी राजनीतिक परिस्थिति से जूझ रही बसपा ने याकूब को कड़ी फटकार लगाई है.

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