सियासी इफ्तारों के बीच सुलगती अटाली की राख

वसीम अकरम त्यागी

सियासी इफ्तार में रमज़ान के इस आखिरी मरहले में उछाल आया है. एक दिन पहले कांग्रेस ने इफ्तार पार्टी का आयोजन किया था और सपा की इफ्तार पार्टी में पूरी की पूरी कैबिनेट ने सफेद कुर्ता, गले में साफा और सिर पर टोपी लगा ली.


Support TwoCircles

यह कौमी एकता अच्छी बात है. भारत जैसे सेकुलर देश में ये इस बात की दलील हैं कि भले ही दिखावटी ही सही मगर सेकुलरिज़म बरकरार है. इस बार तो आरएसएस ने भी इफ्तार पार्टी का आयोजन करके पैठ बनाने की कोशिश की है. मगर टीस वहां होती है जब धर्मनिरपेक्ष देश में अटाली जल जाता है, जलता रहता है मगर जलती हुई सभ्यता की सुध लेने वाला कोई नहीं होता.

IMG_2790

जिस उल्लास के साथ राजनीतिक दल इफ्तार पार्टी में हिस्सा लेते हैं, यदि इसी जोश के साथ इन दलों ने अटाली के दर्द को समझ लिया होता तो बात कुछ और ही होती. सियासी रहनुमा हों या फिर संघ परिवार – आखिर दोनों की कुछ तो जिम्मेदारियां होती हैं. क्या आरएसएस की इफ्तार पार्टी में शिरकत करने गएकिसी गैरतमंद में यह हिम्मत थी कि वह इंद्रेश कुमार से मालूम कर सकें कि अटाली के मुसलमानों की खता क्या है? यही सवाल कांग्रेसियों से भी है और यही सवाल उत्तर प्रदेश की उस कैबिनेट से भी है जो चंद लम्हों के लिये मुसमलान बन गई थी.

इफ्तार पार्टी में टोपी-साफा मत बांधिए माननीय, बस इतना सुनिश्चित कर दीजिये कि तुम्हारे शासन में किसी मुसलमान की टोपी नहीं उछाली जायेगी. अटाली चाहे कहीं का भी हो, वहां के मुसलमानों को उन्हीं की जमीन पर मस्जिद के निर्माण से नहीं रोका जायेगा. किसी रियाज पर गौकशी का आरोप लगाकर उसे सरेआम बाजार में घुमाकर नहीं पीटा जाएगा. किसी रेड़ा खींचने वाले अली मोहम्द के रेड़े को आग नहीं लगाई जायेगी, किसी की दुकान नहीं फूंकी जायेगी, किसी की बेटी के साथ बलात्कार नहीं किया जायेगा, किसी शहर को नफरत में नहीं बदला जायेगा.

क्या यह सब सुनश्चित करने की हिम्मत आपमें है? अगर जवाब ‘हां’ में हैं तो इस सियासी इफ्तार के कुछ मायने समझे जा सकते हैं और अगर जवाब ही नहीं है तो फिर खुद टोपी पहनकर मुस्लिमों को टोपी पहनाने की आखिर क्या जरूरत है? रमज़ान चल रहा है, सियासत को रमज़ान याद है मगर क्या अटाली के उन पचास घरों की राख सियासत को कुछ याद नहीं दिलाती? कि किस तरह एक-एक करके उनका सबकुछ तबाह कर दिया गया? जिस एकता और भाईचारे का परिचय देते हुए तमाम पार्टियों ने इफ्तार पार्टियों के आयोजन किये हैं अगर यही एकता और भाईचारा अटाली के लिए दिखाया जाता तो क्या किसी मुझ जैसे व्यक्ति को इफ्तार पार्टी की आलोचना करने का हक होता?

अजीब है न….कि सियासी लोग जिनकी टोपी पहनकर जिनको खुश कर रहे हैं, वही लोग टोपी पहनने की वजह से अपने ही घरों से विस्थापित किये जा चुके हैं, क्या कुछ शर्म नहीं आती कि ऐसा क्यों हो रहा है? इस ढोंग के चक्रव्यूह से अब तो मुसलमानों को बाहर निकल जाने दीजिए माननीय, अब तो ये आंखें कुछ देख चुकी हैं.

अब तो अटाली के बच्चे भी अपनी किताबों को राख होते देख चुके हैं.

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE