‘मुसलमान औरतों की आवाज़: सड़क से संसद तक’: बंदिशों की बेड़ियों को झकझोरने की कोशिश
Fahmina Hussain, TwoCircles.net
बदलते समय, बदलते समाज, बदलते परिवेश के बीच अब हिन्दुस्तान की मुस्लिम महिलाओं ने भी बंदिशों की बेड़ियों को झकझोरना शुरु कर दिया है. शिक्षा, आजीविका, बुनियादी सुविधाएं, नौकरी के मौक़े और अन्य सभी संसाधनों तक औरतों की पहुंच होनी चाहिए, ताकि उन्हें हाशिये की स्थिति से उबरने में मदद हो सके.
इन्हीं मुद्दों को रखते हुए ‘बेबाक कलेक्टिव’ नामक महिला समूह मंच ने आज दिल्ली के राजघाट स्थित गांधी सदन में मुस्लिम औरतों के अधिकारों के सन्दर्भ में ‘मुसलमान औरतों की आवाज़: सड़क से संसद तक’ विषय पर दो-दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया.
इस दो दिवसीय सम्मलेन में उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, कश्मीर, तेलंगाना और अन्य राज्यों से तकरीबन 400 से अधिक महिलाएं शामिल हुईं. इस सम्मेलन का मुख्य उदेश्य मुस्लिम औरतों के जीवन से सम्बंधित कई मुद्दें जैसे शिक्षा, अतिवाद, भेदभाव, हिंसा और भारत के संविधान द्वारा दिए गये अन्य मौलिक अधिकारों पर चर्चा और बहस करना था.
इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए जस्टिस राजेन्द्र सच्चर ने कहा कि –‘इस्लाम ने ही पहली दफ़ा औरतों को उनका हक़ दिया.’
उन्होंने कहा कि –‘सभ्य समाज की ज़िम्मेदारी है कि अल्पसंख्यकों को उनका अधिकार दे. अल्पसंख्यकों के जो फंड्स होते हैं, सरकार उनको उन पर खर्च नहीं करती. इनके नाम पर जारी फंड्स दूसरे समुदाय को फायदा पहुंचाने के लिए किया जाता है.’
एडवोकेट वृन्दा ग्रोवर ने कहा कि –‘सरकारें कमिटियां किसी मामले को दबाने के लिए बनाती हैं. लेकिन कभी-कभी सरकारें धोखा खा जाती हैं. कुछ ऐसा ही सच्चर कमिटि व जस्टिस वर्मा कमिटी मामले में हुआ.’
प्रोफेसर जोया हसन ने कहा कि –‘मुस्लिम समाज ने अब तक जितने भी कॉलेज या संस्थान बनाए हैं, वो सिर्फ अपने मुनाफ़े के लिए बनाए हैं. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए.’
उन्होंने कहा कि –‘यह अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि अब तक जितने भी मुस्लिम मर्द नेता बने हैं, उन्होंने कभी औरतों के अधिकारों की बात नहीं की है. उनके मसले को नहीं उठाया है.’
वहीं सैय्यदा हामिद का कहना था कि –‘हमारे पैग़म्बर औरतों के लिए खास वक़्त निकालते थे. उनकी समस्याओं को न सिर्फ सुनते थे, बल्कि उनका समाधान भी करते थे, लेकिन आज आलम यह है कि औरतों को मस्जिद में दाखिल होने तक पर पांबदी है.’
इस सम्मलेन में ऐसी कई महिलाओं ने शिरकत की, जिन्होंने परिवार के भीतर कई प्रकार की हिंसाओं और समाज में मौजूद धार्मिक आस्था, कट्टरवाद, घरेलू हिंसा, भेदभाव जैसी चीज़ों का सामना किया है.
इस सम्मलेन में सच्चर समिति की रिपोर्ट पर भी चर्चा हुई, जिसमें मौजूदा भाजपा सरकार द्वारा सच्चर समिति की सिफ़ारिशों को सफलतापूर्वक लागू न करने के प्रति गंभीर चिंता व्यक्त की गई. इसके साथ ही हिंसा और भेदभावों का सामना करने वाली मुस्लिम औरतों की सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरतों की बात भी की गई, जिसमें समुदाय केंद्र, पुस्तकालय, कानूनी सहायता, आश्रय गृह, वर्किंग हॉस्टल, ट्रेनिंग सेंटर जैसी चीज़ों को सरकार द्वारा मुहैया कराने की बात कही गई.
सम्मलेन में शामिल आबिदा जो कि मधय-प्रदेश के एक संस्था द्वारा यहां शामिल हुए थी, उनका कहना था कि –‘शिक्षा और तरक्क़ी में धर्म की दीवार खड़ी जा रही है, जबकि इस्लाम में इस तरह की पाबंदियां नहीं हैं, जिसकी चर्चा अक्सर कुछ मौलाना हज़रात करते रहते हैं. हालांकि इस्लाम में ऐसी किसी बात का ज़िक्र नहीं किया गया है.’
सामाजिक कार्यकर्ता वरुणा अंचल ने अपने संबोधन में कहा कि –‘औरतों की शिक्षा, नौकरी और शादी को लेकर तरह-तरह की ग़लत-फ़हमियां फैलाई गई हैं, जबकि औरतों के प्रति हर धर्म में काफी सकारात्मक बातें हैं. तरक्की के लिए आगे आने को तैयार महिलाओं ने अब अपने हक़ मांगने शुरू कर दिए हैं.’
इस सम्मेलन में इस्लामिक विद्वान भी शामिल थे और उन्होंने महिलाओं की भावनाओं की क़द्र करते हुए उनके तर्क को भी सही ठहराया. उनका भी मानना है कि न सिर्फ़ मदरसों को मेनस्ट्रीम से जोड़ने का ज़रूरत है, बल्कि इस्लामिक शिक्षा को मॉडर्न शिक्षा के साथ रखने के बारे अब सोचना चाहिए.
इस दो दिवसीय सम्मलेन में जस्टिस राजेन्द्र सच्चर, डॉ. सैय्यद हामिद, प्रो. जोया हसन, प्रो. उमा चक्रवर्ती और एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने भी इस सम्मेलन में आए महिलाओं को सम्बोधित किया.
रविवार 28 फ़रवरी को गांधी स्मृति से राजघाट तक रैली निकाल कर इस सम्मलेन का समापन किया जाएगा.
इस सम्मलेन में डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘त्रियक’ की भी स्क्रीनिंग की गई, जो कि मुस्लिम औरतों के व्यक्तिगत जीवन से राजनिति तक के सफ़र को दिखाया गया है.