क्या भविष्य है बाग़ी और गुस्सैल वरुण गांधी का?

सिद्धांत मोहन, TwoCircles.net

वाराणसी: हाल में ही जब इलाहाबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी, उस समय कुछ पोस्टरों को लेकर इलाहाबाद में खबरें फ़ैल गयीं. ये पोस्टर ‘वरुण गांधी यूथ ब्रिगेड’ द्वारा शहर में और संगम के आसपास के इलाकों में लगाए गए थे. इन पोस्टरों में वरुण गांधी को उत्तर प्रदेश का भावी मुख्यमंत्री घोषित किए जाने की मांग साफ़ दिखायी दे रही थी. इन पोस्टरों से यह साफ़ हो गया कि भाजपा में मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी को लेकर एक तनाव की स्थिति बनी हुई है, जिसे भाजपा लगातार नकारती आ रही है.


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उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ रही है. इसके साथ ही भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार पर लगातार सट्टा लगाया जा रहा है. एक बार योगी आदित्यनाथ का नाम सामने आता है तो एक बार स्मृति ईरानी का नाम. पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से केशव प्रसाद मौर्या के नाम पर भी अब कयास लगाए जाने लगे हैं कि केशव प्रसाद मौर्या भी मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए जा सकते हैं.

इस पूरे उहापोह के बीच जिस नाम पर भारतीय जनता पार्टी और सहयोगी दलों ने चुप्पी साध रखी है, वह नाम है वरुण गांधी का. वरुण गांधी भाजपा के एक तेज़तर्रार और कद्दावर नेता हैं. प्रदेश के कार्यकर्ताओं के बीच भी उनकी पकड़ है. इस साल फरवरी में भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर खबरों का बाज़ार गर्म हो गया था. ऐसा लग रहा था कि वरुण गांधी ही अब उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष होंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. उनकी जगह केशव प्रसाद मौर्या को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.



[साभार – मिड डे]

ऐसा माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले राजनाथ सिंह चाहते थे कि प्रदेश चुनावों में वरुण गांधी को आगे किया जाए लेकिन अमित शाह और नरेंद्र मोदी के फैसलों के आगे राजनाथ सिंह की मर्जी की एक न चली.

वरुण गांधी पीलीभीत और सुल्तानपुर से सांसद रह चुके हैं और पूर्वी उत्तर प्रदेश के इन इलाकों में वरुण गांधी की स्थिति भी काफी मजबूत है. लेकिन हाल ही में पार्टी के फैसलों में वरुण गांधी की गतिविधियों को पीलीभीत तक सीमित कर दिया गया.

हाल में ही बिहार से सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने भी यूपी में भाजपा की कमान वरुण गांधी को सौंपने की बात की थी, जिसे यह कहकर टाल दिया गया कि शत्रुघ्न सिन्हा बाहरी हैं, उन्हें यूपी के मुद्दों के बारे में कोई जानकारी नहीं. शत्रुघ्न सिन्हा को नकारने से यह साफ़ हो गया कि भाजपा वरुण गांधी को अभी भी साइडलाइन किए रखना चाह रही है, अन्यथा शत्रुघ्न सिन्हा के बयान को इस तरह नहीं खारिज किया जाता.

भारतीय जनता पार्टी और वरुण गांधी के बीच बढ़ रहे तनाव के केवल यही किस्से नहीं और भी हैं. अमित शाह और उत्तर प्रदेश के सांसदों के डिनर और मीटिंग में वरुण गांधी नहीं शामिल हुए, जिससे उनका गुस्सा और बागी तेवर झलकने लगे. इसके कुछ समय पहले ग्राम प्रधान के चुनावों के वक़्त वरुण गांधी ने उत्तर प्रदेश के एक लाख से भी ज्यादा ग्राम प्रधानों को चिट्ठी लिखकर चुनाव जीतने की बधाई दी थी. वरुण गांधी की इस चिट्ठी से भाजपा की नींद उड़ गयी और भाजपा को आनन-फानन में स्पष्टीकरण देना पड़ा था.

इन सभी किस्सों से एक ही सवाल उठ रहा है कि गुस्सैल और बागी तेवर वाले वरुण गांधी का राजनीतिक भविष्य क्या है? और वह भी तब जब चंद महीनों बाद देश का सबसे बड़ा विधानसभा चुनाव होने जा रहा हो.

हाल ही में कांग्रेस के प्रदेश महासचिव उमेश पंडित ने वरुण गांधी को कांग्रेस में लाने की मांग कर दी थी. उमेश पंडित की मांग से जब लोग सकपका गए तो मीडिया ने उनसे इस बारे में पूछा. उमेश पंडित ने साफ़ कहा था कि वरुण गांधी को कांग्रेस में लाने के बारे में सिर्फ वे ही नहीं, बल्कि अन्य कांग्रेसी भी सोचते हैं. इस मुद्दे पर वरुण गांधी और भाजपा की ओर से कोई बयान नहीं आया. बाद में संजय गांधी की पुण्यतिथि पर कांग्रेस के हैंडल से ट्वीट किया गया तो गांधी परिवार में दूरी कम होती नज़ आयी. यही नहीं कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने भी संजय गांधी के स्मारक पर जाकर संजय गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की.


इसके बाद तो वरुण गांधी को लेकर सरगर्मी और तेज़ हो गयी है कि राहुल गांधी से हर मोर्चे पर मात खाती कांग्रेस अब वरुण गांधी की शरण में जाने की फ़िराक में है. लेकिन इसे लेकर किसी स्थिति पर स्पष्ट नहीं हुआ जा सकता है.

दरअसल वरुण गांधी को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं और उत्तर प्रदेश के वोटरों का उतावलापन भी ज़ाहिर है. वरुण गांधी युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं. उन्हें पार्टी के कई वरिष्ठ कार्यकर्ता भी पसंद करते हैं. यह तो सच है कि द्वेषपूर्ण राजनीति में भी वरुण गांधी ने अपने हाथ धोए हैं लेकिन भाजपा की मुख्यधारा की राजनीति में वरुण गांधी के अलावा दूसरा कोई भी नेता नहीं मिलता है, जिसने उत्तर प्रदेश के शहरी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ गांवों और किसानों के बीच भी जगह बनायी हो.

वरुण गांधी यूथ ब्रिगेड के अमरोहा (पश्चिमी उत्तर प्रदेश) चैप्टर के कार्यकर्ता संतोष कुमार प्रजापति बताते हैं, ‘आप मुझे भाजपा में एक नाम बताइये, जो उत्तर प्रदेश के युवाओं के बीच लोकप्रिय हो. वरुण गांधी के अलावा कोई नाम नहीं है. यह तो साफ़ है कि लोकसभा चुनावों में भाजपा के नाम पर पार्टी को वोट नहीं मिला था, बल्कि मोदी के नाम पर मिला था. अब यूपी जैसी जगह पर भाजपा को जीत चाहिए तो मैं कहूंगा कि यूपी में वरुण गांधी ही भाजपा के मोदी हो सकते हैं.’

वे आगे कहते हैं, ‘वरुण गांधी युवाओं को खींचते हैं. उनके पास बहुत सरे फैन हैं. आप उनकी रैलियों को देखिए, लोगों को जुटाना नहीं पड़ता है. युवा भारी मात्रा में उनकी रैल्यों में शिरक़त करते हैं. मुझे नहीं लगता है कि भाजपा के पास अभी कोई ऐसा आदमी भी है जो यूपी के किसानों और गांवों को अच्छे से जानता हो और उनके बीच जगह बनाकर रखता हो.’ वे पार्टी पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘पार्टी नए लोगों की सुनना नहीं चाहती है. इसीलिए वरुण गांधी साइडलाइन किए जा रहे हैं. यदि वरुण गांधी को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित नहीं किया गया तो साफ़ है कि हम लोग आन्दोलन करेंगे.’

वरुण गांधी कांग्रेस में जाएंगे या नहीं, यह तो बेहद बाद का मुद्दा है. लेकिन अपनी ही पार्टी में उनका क्या हश्र होता है, यह देखने का मुद्दा है. ज़ाहिर है कि भाजपा वरुण गांधी को नाराज़ करने का कोई जोखिम नहीं उठाना चाहेगी क्योंकि वरुण गांधी जैसे ताकतवर और बागी नेता के सामने भाजपा की प्रदेश राजनीति भी छोटी पड़ सकती है.

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