TwoCircles.net Staff Reporter
लखनऊ : रिहाई मंच ने आज़मगढ़ पुलिस द्वारा संजरपुर के तीन युवकों के साथ दिखाई गई मुठभेड़ को फ़र्ज़ी क़रार देते हुए पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है.
स्पष्ट रहे कि पुलिस के मुताबिक़ सरायमीर थाना क्षेत्र के संजरपुर में पुलिस व अपराधियों के बीच हुई ‘मुठभेड़’ में अपराधियों द्वारा चलाई गई गोली से एक आरक्षी घायल हो गया. तो वहीं भीड़ का फ़ायदा उठाते हुए तीनों अपराधी फ़रार हो गए. हालांकि यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस ने तीनों युवकों को दौड़ाकर पकड़ने का प्रयास किया था. आरक्षी गोली से नहीं, बल्कि गिर जाने से घायल हुआ है.
इस पूरे मामले में रिहाई मंच महा-सचिव राजीव यादव का कहना है कि आज़मगढ़ के निज़ामाबाद थाने के रानीपुर गांव के पास जिन तीन युवकों सलमान, आफ़ताब और अकरम को पुलिस मुठभेड़ में घायल और गिरफ्तार दिखाकर आज़मगढ़ एसएसपी अजय कुमार साहनी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, उन तीनों युवकों को गुरुवार 28 जुलाई को संजरपुर चैक, छाऊं मोड़ के पास जब वे बाजार में थे, तब गिरफ्तार किया गया था.
उन्होंने कहा कि इन तीनों की गिरफ्तारी जब कई थानों की पुलिस और पीएसी लगाकर की गई थी तो आखिर उसी दिन इन्हें अदालत के सामने न पेश करना पुलिस की आपराधिक मानसिकता को उजागर करता है. वहीं जिस तरह से गुरुवार को पुलिस ने कहा कि संजरपुर गांव के पास पुलिस की घेरेबंदी के दौरान बदमाशों द्वारा की गई फायरिंग में सरायमीर थाने पर तैनात आरक्षी नीरज मौर्य व औरंगजेब गोली लगने से घायल हो गए और घटना को अंजाम देकर बदमाश मौके से भागने में सफल रहे, यह एक फ़र्ज़ी पुलिसिया कहानी के सिवा कुछ नहीं है.
राजीव कहते हैं कि पुलिस ने आज जिस तरीक़े से इस मामले को मई में खुदादादपुर सांप्रदायिक हिंसा से जोड़ते हुए सीओ सीटी के.के. सरोज पर गोली चलाने वालों से जोड़ रही है, वह स्पष्ट करता है कि आज़मगढ़ पुलिस प्रशासन सांप्रदायिक हिंसा में अपनी संलिप्तता व कमज़ोरी छिपाने के लिए पूरे मामले को सांप्रदायिक रूप देने की कोशिश कर रही है.
मंच ने एसएसपी अजय कुमार साहनी को तत्काल निलंबित करने और फ़र्ज़ी मुठभेड़ में घायल बताए जाने वाले युवकों के अपहरण व अवैध हिरासत में हत्या की कोशिश करने का पुलिस पर मुक़दमा दर्ज करने की मांग की है.
मंच ने कहा है कि सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के निर्वाचन क्षेत्र में ऐसे सांप्रदायिक ज़ेहनियत के एसएसपी की तैनाती सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े करती है कि वो कहीं आज़मगढ़ को दूसरा मुज़फ़्फ़रनगर तो नहीं बनाना चाहती है.