अंधेरे में लोकतंत्र का ‘चौथा स्तंभ’

Tanveer Jafri for TwoCircles.net

देश के स्वयंभू ‘लोकतंत्र के चौथे स्तंभ’ में एक भूचाल सा आया दिखाई दे रहा है. जिस मीडिया से आम जनता यह अपेक्षा रखती है कि वह उसके सामने समाचारों को निष्पक्षता के साथ पेश करेगा और किसी समाचार या घटना की निष्पक्ष प्रस्तुति के पश्चात यह निर्णय जनता के विवेक पर छोड़ देगा कि अमुक समाचार या कोई घटनाक्रम अपने-आप में कैसा है और कैसा नहीं? सकारात्मक है या नकारात्मक? परंतु ठीक इसके विपरीत आज टीवी चैनल्स में यह देखा जा रहा है कि वे निष्पक्ष समाचार देने के बजाए या किसी घटना की यथास्थिति रिपोर्टिंग करने के बजाए स्वयं एक पक्षकार की भूमिका निभाने लगे हैं.


Support TwoCircles

कुछ टीवी चैनल्स के एंकर्स तो अपने कार्यक्रम की प्रस्तुति इस अंदाज़ में करने लगे हैं कि गोया वो कोई समाचार चैनल का स्टृडियो न होकर कोई अदालत बन गई हो. कई एंकर ऐसे भी देखे जा रहे हैं जो अपने अतिथियों के साथ ऐसी बदतमीज़ी व डांट-डपट से पेश आ रहे हैं गोया पत्रकार नहीं किसी थानेदार की भूमिका निभा रहे हों.

खासतौर पर देश में जब से संप्रदायिकतावादी शक्तियों तथा धर्म-निरपेक्षतावादी विचारधारा के मध्य व्यापक बहस गत् दो वर्षों से छिड़ी है और समय बीतने के साथ-साथ इसी बहस के बीच देश में सहिष्णुता व असहिष्णुता तथा राष्ट्रभक्ति व राष्ट्रद्रोह जैसे विषयों पर होने वाली व्यापक बहस एक खतरनाक दौर से गुज़र रही है. इसमें देश के टीवी चैनल्स भी अपने-अपने निर्धारित एजेंडे के साथ अपने-अपने एंकर्स को ढाल बनाकर कूद पड़े हैं और रिपोर्टिंग अथवा किसी कार्यक्रम की निष्पक्ष प्रस्तुति पर ध्यान देने के बजाए स्वयं कहीं पक्षकार तो कहीं न्यायाधीश बनते दिखाई दे रहे हैं.

यहां यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि कोई भी राष्ट्रीय टीवी चैनल चलाने के लिए सैकड़ों करोड़ रुपयों की आवश्यकता होती है. ज़ाहिर है इस धंधे में प्रतिदिन लाखों रुपयों का खर्च बैठता है. और निश्चित रूप से कोई न कोई व्यवसायी प्रवृति का व्यक्ति इन चैनल्स का स्वामी भी होता है. तो ज़ाहिर है किसी भी व्यवसायी को अपने कारोबार में पहली चिंता अपने व्यवसाय के मुनाफे की करनी होती है. और वह इस मुनाफे के लिए प्रत्येक संभव तिकड़मबाजि़यां अख्तियार करने की कोशिश करता है.

पंरतु कथित चौथे स्तंभ से जुड़े किसी भी व्यवसाय अर्थात समाचार पत्र-पत्रिका के प्रकाशन, न्यूज़ चैनल के संचालन अथवा रेडियो या एफएम के प्रसारण का मिज़ाज अन्य पेशों से काफी अलग है. देश और दुनिया की जनता मीडिया से सिर्फ और सिर्फ निष्पक्षता की उम्मीद करती है.

इसे मीडिया अथवा माध्यम का नाम इसीलिए दिया गया है ताकि वह जनता तथा सरकार, शासन, प्रशासन अथवा देश व दुनिया के किसी भी हालात की निष्पक्ष पड़ताल जनता के समक्ष पेश करने का एक सशक्त व भरोसेमंद माध्यम बने.

इसके अतिरिक्त कोई दूसरा माध्यम भी ऐसा नहीं है जो सूचना अथवा जानकारियों या किसी घटनाक्रम के ब्यौरे को लोगों के समक्ष प्रस्तुत कर सके. हालांकि सोशल मीडिया ने काफी हद तक गत कुछ वर्षों से इस क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा करनी शुरु की है. परंतु न तो इसका दायरा अभी इतना व्यापक है और न ही इसे अभी इतना विश्वसनीय समझा जा रहा है. अर्थात टीवी चैनल्स व प्रिंट मीडिया ही अभी भी आम लोगों के लिए जानकारी हासिल करने का मुख्य स्त्रोत बने हुए हैं.

इन हालात में यदि यही टीवी चैनल्स किसी राजनैतिक अथवा वैचारिक पूर्वाग्रह के चलते या अपनी व्यवसायकि प्रतिबद्धताओं के तहत पत्रकारिता के बजाए पक्षकार की भूमिका में आ जाएं और स्वयं यह फैसला देने लगें कि देश में सहिष्णुता बनी हुई है या असहिष्णुता बढ़ रही है अथवा अपने दर्शकों को यह बताने लगें कि यह बातें राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आती हैं और ऐसा करना या कहना राष्ट्रभक्ति का प्रमाण है, तो इस प्रकार की प्रस्तुति मीडिया के चरित्र तथा उसकी जि़म्मेदारियों को संदिग्ध कर देती हैं.

मीडिया का सबसे पहला कर्तव्य ही यही है कि वह निष्पक्षता का पूरा ध्यान रखे और किसी भी विषय पर निर्णय लेने का अधिकार जनता के विवेक पर ही छोड़ दे. परंतु आज की स्थिति में बेहद अफ़सोसनाक बात यह है कि जिस प्रकार समाज सांप्रदायिकतावादी सोच और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के मध्य विभाजित होता जा रहा है, मीडिया भी स्वयं को उससे अलग न रखते हुए खुद भी पक्षपात का शिकार होता प्रतीत हो रहा है.

इसके भी अनेक कारण हैं. मीडिया के पक्षकार अथवा न्यायधीश की भूमिका निभाने का एक कारण यह भी है कि कई टीवी चैनल्स के स्वामी, व्यवसायी होने के साथ-साथ किसी न किसी राजनैतिक दल से भी जुड़े हुए हैं. कुछ चैनल ऐसे हैं, जिन्होंने ब्लैकमेलिंग करने अर्थात किसी की ख़बर प्रसारित करने या किसी की नकारात्मक ख़बर को दबाने का धंधा अपना रखा है.

कई टीवी चैनल्स के मालिक ऐसे हैं, जिनपर कोई न कोई आपराधिक मुक़दमा भी चल रहा है. कई मशहूर टीवी एंकर्स सत्ता की दलाली करते बेनकाब हो चुके हैं तो यह भी सार्वजनिक हो चुका है कि मीडिया के लोग केंद्र में मंत्री बनाने अपने सगे-संबंधियों को विधानसभा अथवा लोकसभा का टिकट दिलाने जैसे काम भी करते रहते हैं.

यह बात भी कई बार मंज़र-ए-आम पर आ चुकी है कि अमुक-अमुक टीवी पत्रकार अपने पत्रकारिता जीवन के कुछ ही वर्षों में सैकड़ों करोड़ रुपये की संपत्ति का मालिक आखिर कैसे बन जाता है? यह ख़बरें भी आती रहती हैं कि किसी चैनल के मालिक द्वारा अपनी महिला एंकर के साथ उसके शारीरिक शोषण के प्रयास किए गए या उस पर मंत्रियों या उच्चाधिकारियों को ‘खुश’ करने के लिए दबाव बनाया गया.

पिछले दिनों इसी राष्ट्रद्रोह व राष्ट्रभक्ति के मध्य छिड़ी जंग के बीच यह समाचार भी आया कि कैसे एक पत्रकार ने अपने ही टीवी चैनल को सिर्फ इसलिए त्याग दिया कि उसे अपने चैनल की भूमिका पक्षपातपूर्ण तथा पूर्वाग्रही दिखाई दी. और इन सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि ऐसे ही संदिग्ध, बदनाम तथा व्यवसायिक या दलाली की गतिविधियों में संलिप्त पत्रकारों को कहीं सम्मानित किया जा रहा है, तो कहीं उन्हें भारी-भरकम पुरस्कारों से नवाज़ा जा रहा है. और हद तो यह है कि इन्हीं में से कई पदमश्री जैसा सम्मान हासिल करने में भी सफल हो जाते हैं.

ऐसे में सवाल यह है कि आखिर आम जनता या दर्शक किस टीवी चैनल पर विश्वास करे और किसको अविश्वसनीय समझे? और खासतौर पर एैसे दौर में जबकि कंप्यूटर तकनीक और फोटोशॉप का इस्तेमाल करते हुए फोटो या ऑडियो अथवा वीडियो क्लिप्स के साथ छेड़छाड़ कर उसे ग़लत तरीके से जनता के सामने परोसने की कोशिश की जा रही हो.

ऐसे में यह विषय और भी ख़तरनाक हो जाता है. वास्तव में टीवी चैनल्स की स्थिति कुछ इस प्रकार की होती जा रही है, गोया झूठ के नगाड़े की आवाज़ में सच की आवाज़ तूती की आवाज़ की मानिंद दब कर रह गई हो. यानी अगर कोई ईमानदार और सच्चा पत्रकार अपने चैनल के स्वामी के ग़लत पक्षपातपूर्ण तथा अन्यायपूर्ण व भ्रष्ट फैसलों के प्रति अपना विरोध जताता है, तो ऐसा स्वामी उस पत्रकार को ही चैनल से बाहर का रास्ता दिखा देता है. और जो टीवी एंकर चीख-चिल्ला कर अपने आका की इच्छाओं के अनुरूप कार्यक्रम को प्रस्तुत कर रहा है और उसके चीखऩे-चिल्लाने, डपटने या न्यायधीश बनने की भूमिका से उसके चैनल की या किसी कार्यक्रम विशेष की टीआर पी में इज़ाफा हो रहा है, तो ऐसे पत्रकारों को उसके स्वमी सिर-आंखों पर बिठाते हैं और उसे उसकी मर्ज़ी का पैकेज तन्ख्वाह के रूप में पेश किया जाता है.

इतना ही नहीं, जब ऐसा कोई एंकर दर्शकों की नज़रों में सेलिब्रिटी बन जाता है तो राजनेता भी उसे किसी भी तरह से खुश करने में पीछे नहीं रहते. ज़ाहिर है ऐसे में दोनों ओर से एक-दूसरे पर रहमों करम का आदान-प्रदान भी किसी न किसी रूप में होता रहता है.

ऐसे हालात में जनता के लिए सख्त परीक्षा की घड़ी है. दर्शकों को चाहिए कि वे किसी भी समाचार या कार्यक्रम को पूरे धैर्य एवं विवेक के साथ देखें तथा प्रत्येक प्रस्तुति का सूक्ष्म अध्ययन करें. किसी एंकर के साथ भावनाओं में बहने की कोई आवश्यकता नहीं है. क्योंकि जिस प्रकार इस समय देश के तीनों स्तंभ लडख़ड़ा रहे हैं, उसी प्रकार दुर्भाग्यवश लोकतंत्र का यह स्वयंभू चौथा स्तंभ भी अंधेरे की ओर बढ़ता जा रहा है.

SUPPORT TWOCIRCLES HELP SUPPORT INDEPENDENT AND NON-PROFIT MEDIA. DONATE HERE