अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
बेतिया (बिहार) : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सत्याग्रह का तपोस्थल चम्पारण अपने गौरवमयी इतिहास के 100 साल पूरा कर रहा है. केन्द्र व राज्य सरकार दोनों ने ही इसे ‘सत्याग्रह शताब्दी वर्ष’ मनाने का फैसला लिया है.
जहां एक तरफ़ इस संबंध में रोज़ाना दोनों सरकारों की ओर से घोषणाएं की जा रही हैं, वहीं केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह केन्द्र सरकार की ओर से ‘सत्याग्रह शताब्दी वर्ष समारोह’ की कमान संभाल चुके हैं. समारोह की शुरुआत के पहले ही मंत्री राधामोहन सिंह ने पूर्वी व पश्चिमी चम्पारण में केन्द्र द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अपना स्पष्ट संदेश दे दिया है. संभवतः यहां यह कहना सही होगा कि उन्होंने चम्पारण के सत्याग्रह का भी राजनीतिकरण कर डाला है.
पिछले दिनों पश्चिमी चम्पारण के ज़िला मुख्यालय बेतिया में ‘सत्याग्रह शताब्दी वर्ष’ के तहत एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम के तहत राधामोहन सिंह बेतिया आए. रोचक बात यह है कि सत्याग्रह शताब्दी के लिए आयोजित इस समारोह में मंत्री राधामोहन सिंह सिर्फ़ अपने राजनीतिक समीकरण को पक्का करने में जुटे रहे.
सड़कों पर भारी भीड़ के साथ राधामोहन सिंह का काफ़िला निकला. पूरे शहर में भाजपा के झंडे लहराते नज़र आए. गांधी या अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के बजाय मंत्री राधामोहन सिंह के लिए नारे लगे. मंत्री जी भी पूरे उत्साह के साथ गांधी के प्रतिमाओं पर फूल-माला डालते हुए आगे बढ़ते रहे.
आख़िर में यह काफिला नगर भवन पहुंचकर सभा में तब्दील हो गया. मंच पर मंत्री जी का पूरे गर्व के साथ बतौर आरएसएस सदस्य स्वागत हुआ. यह विडम्बना ही है कि आरएसएस के सदस्य नाथूराम गोडसे ने गांधी की ह्त्या की, लेकिन राधामोहन सिंह के सम्मान के वक़्त लोग शायद इस बात को भूल गए.
इस सभा में भाजपा के विधायकों व सांसदों के भाषण के बाद मंत्री जी ने मंच संभाला. कभी राज्य सरकार को कोसा, निशाने पर नीतिश कुमार रहे. तो कभी कांग्रेस के दुर्दिनों का लेखा-जोखा पेश किया. राधामोहन सिंह ने साफ़ तौर कहा, ‘पिछली सरकारों ने गांधी का नाम लेकर देश को मरघट बनाने का काम किया है.’
राधामोहन सिंह के पूरे भाषण में सिर्फ नरेन्द्र मोदी ही हावी रहे. लम्बे चले इस भाषण में उन्होंने सिर्फ़ मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनाया और चम्पारण की जनता को यह बताने की कोशिश की कि बिहार की सरकार नीतिश कुमार नहीं, बल्कि पी.के. (प्रशांत किशोर) चला रहा है.’ हैरानी की बात यह थी कि राधामोहन सिंह के पूरे भाषण में महात्मा गांधी और चम्पारण के लिए न कोई शब्द थे और न कोई विचार. यानी गांधी की ज़मीन पर गांधी के सत्याग्रह की याद में आयोजित इस कार्यक्रम में मंत्री जी ने गांधी जी को ही भुला दिया गया.
अगर इस कार्यक्रम में गांधी जी को किसी ने याद किया तो वो थे शहर के असलम कव्वाल, जिन्होंने शताब्दी वर्ष पर गीत गाकर गांधी व चम्पारण की अहमियत को लोगों के सामने रखने का काम किया. वहीं असलम कव्वाल की बेटी तबस्सुम ने गांधी का प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम’ गाया.
दरअसल, यह आयोजन तो सिर्फ़ एक बानगी भर है. सवाल तो यह है कि आने वाले पूरे साल भर जो गांधी के नाम पर आयोजन होंगे, उनका क्या होगा? क्या उनमें भी गांधी भुला दिए जाएंगे? राधामोहन सिंह ने अपने इस कार्यक्रम के ज़रिए उनकी दिशा तय कर दी है और यह स्पष्ट हो गया है कि सत्याग्रह शताब्दी समारोह के नाम पर भाजपा सिर्फ़ अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को नीचा दिखाने और राजनीतिक फ़ायदों की फ़सल काटने की कोशिश करेगी.
लगता है कि राजनीति की भूख ने सत्याग्रह और गांधी के मूल्यों पर सेंध लगाई है. राधामोहन सिंह ने तो शुरूआत कर दी है. आगे क्या होगा? यह अंदाज़ा बेहद आसानी से लगाया जा सकता है. लेकिन कड़वा सच तो यह है कि गांधी के नाम पर हो रहे इस पूरे राजनीतिक उठा-पटक में अगर सबसे अधिक नुक़सान किसी का होना है तो वह सिर्फ़ गांधी, चम्पारण और सत्याग्रह द्वारा स्थापित मूल्यों का होना है.