TwoCircles.net Staff Reporter
नई दिल्ली : जिस तरह से देश की आबादी बढ़ी है. देश का बौद्धिक विकास हुआ है. जहां समाज में लिखने-पढ़ने का माहौल बन रहा हो, वैसे समाज में यही उम्मीद थी कि लाइब्रेरियों की संख्या बढ़ेगी. लेकिन इसके उलट देश में लाइब्रेरियों की संख्या घट रही है. लाइब्रेरियों पर हमलों में इज़ाफ़ा हुआ है. लगातार लाइब्रेरियां बंद हो रहीं हैं.
देश में बंद हो रही इन लाइब्रेरियों को बचाने और नई लाइब्रेरियां बनाने की एक मुहिम मीडिया स्टडीज़ ग्रुप ने शुरू की है. प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में मंगलवार शाम को ‘लाइब्रेरी बचाओ, लाइब्रेरी बनाओ’ कार्यकम का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया. इस प्रोग्राम में दिल्ली के कई विश्वविद्यालयों के छात्र, पत्रकार, लेखक, अधिवक्ता और समाज के जागरूक लोगों ने शिरकत की.
इस कार्यकम में दिल्ली क़रोल बाग़ में दलित आबादी के बीच बनी दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी की इमारत को बिल्डरों के हवाले करने की साज़िश की निंदा की गई और संस्कृति मंत्री से पूरे मामले की जांच कराने की मांग के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया गया है.
‘लाइब्रेरी बनाओं, लाइब्रेरी बचाओ’ कार्यक्रम में विधायक पंकज पुष्कर ने क़रोल बाग़ स्थित दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के भवन पर अवैध रूप से क़ब्ज़ा करने के लिये लंबे समय से जारी संदिग्ध गतिविधियों का विस्तार से विवरण दिया. उन्होंने लाइब्रेरी बोर्ड के चेयरमैन राम शरन गौड़ के इस साज़िश में शामिल होने के बाबत कई हैरान करने वाली जानकारियां भी दीं. विधायक पंकज पुष्कर भी लाइब्रेरी बोर्ड के सदस्य हैं. उन्होंने दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों में स्थित पब्लिक लाइब्रेरी की शाखाओं में की जा रही मनमानियों और एक के बाद एक के बंद होते जाने पर सवाल उठाये.
पत्रकार अफ़रोज़ आलम साहिल ने बिहार के अलग-अलग शहरों में बदहाल पड़ी लाइब्रेरियों का विस्तार से विवरण दिया. आरटीआई द्वारा प्राप्त सूचनाएं देते हुए उन्होंने बताया कि राज्य की 5600 लाइब्रेरी बंद हो चुकी हैं और केवल 400 संचालित रहे हैं. मगर कह सकते हैं कि ये लाइब्रेरियां भी चलने की बजाय महज़ रेंग रही हैं. इनकी ख़स्ताहाल देखकर कोई भी सहज अनुमान लगा सकता है कि अगले चार सालों में इनमें से 40 लाइब्रेरी भी नहीं बचेंगी.
उन्होंने बताया कि कैसे मुंगेर की एक लाइब्रेरी की तमाम किताबों को असामाजिक तत्वों ने ट्रक में लादकर नदी में बहा दिया. इस मामले में एफ़आईआर भी हुई है, लेकिन पुलिस ने अभी तक कुछ भी नहीं किया है. पटना की गवर्मेंट उर्दू लाइब्रेरी को बंद किये जाने की कोशिशें एबीवीपी के कार्यकर्ताओं द्वारा कई बार की जा चुकी हैं. पटना की खुदाबख्श लाइब्रेरी में साल 2014 के बाद कोई डायरेक्टर नियुक्त नहीं किया गया है. हालांकि इन सबके बीच कुछ लाइब्रेरियों को नागरिकों द्वारा सही समय पर उठाये गये क़दमों की वजह से बचाया भी जा सका है.
पत्रिका समयांतर के संपादक पंकज बिष्ट दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी से जुड़ी अपनी यादों को साझा करते हुए दो टूक शब्दों में कहा कि किताब को बचाना, मानव जाति और समाज को बचाना है. विवेकहीन समाज बनने से रोकने के लिये लाइब्रेरी को बचाने की मुहिम शुरू करनी बहुत ज़रूरी है.
साहित्यकार प्रेम पाल शर्मा ने अपने गांवों में युवा पीढ़ी के बौद्धिक विकास में सहायक होने के कई अनुभव बताएं. दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड के मौजूदा सदस्य प्रकाश चंद ने कहा कि उन्होंने केरल और पश्चिम बंगाल में लाइब्रेरी आंदोलन की सफलताओं का हवाला देते हुए कहा कि देश की बौद्धिकता का विकास भी लाइब्रेरियों की संख्या के क्रम में ही हुआ है. दुनिया में हमेशा नॉलेज सोसायटी आगे रही हैं, यही वजह है कि अमेरीकी और यूरोपीय समय हमसे इतने आगे हैं. जबकि हमारी बौद्दिकता का औसत जनसंख्या के लिहाज़ से महज़ 3.4 फीसदी है.
दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के पूर्व डायरेक्टर बनवारी लाल ने लाइब्रेरी को बंद किये जाने कोशिश के खिलाफ़ सिविल सोसायटी के सार्थक और हस्तक्षेप की मांग की.
कार्यक्रम में मौजूद अन्य लोगों ने भी देश के विविध शहरों में मौजूद लाइब्रेरियों से जुड़े अपने अनुभवों की यादों को साझा करते हुए पूरे देश में इस मुहिम को ले जाने का संकल्प लिया. वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने मंच का संचालन किया और कहा कि जिन भी वक्ताओं ने पुस्कालयों से जुड़े अपने अनुभवों का साझा किया है उनका एक दस्तावेज़ तैयार किया जाना चाहिए.
इस कार्यक्रम की शुरुआत, राज्यसभा टीवी के पत्रकार गिरीश निकम की आकस्मिक मौत पर श्रद्धांजलि के साथ की गयी. वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन ने दिवगंत साथी गिरीश निकम के बारे में विस्तार से जानकारी दी. जिसमें एक महत्वपूर्ण जानकारी ये भी थी कि उन्होंने राडिया टेप केस से संबंधित फाइलों का दस्तावेज़ीकरण किया था.