अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
उत्तर प्रदेश की सियासी गहमागहमी और साथ ही साथ ट्रिपल तलाक़ के मुद्दे पर गरमाते देश के राजनीतिक माहौल के बीच एक ऐसा राज है, जो धीरे-धीरे सिर उठा रहा है. ये राज मुलायम सिंह के दूसरे बेटे प्रतीक यादव से जुड़ा हुआ है. मुलायम के कुनबे में मचे इस पूरे घमासान में प्रतीक और उनकी मां साधना गुप्ता का किरदार बेहद ही महत्वपूर्ण हो चला है. ये वो किरदार हैं, जो पर्दे के पीछे से पर्दे के आगे चल रहे ‘ड्रामे’ के सूत्रधार हैं.
दिलचस्प बात यह है कि मुलायम सिंह यादव ने कागज़ों में कहीं भी प्रतीक यादव को अपना बेटा नहीं बताया है. आयकर के दस्तावेज़ों से लेकर पारिवारिक सम्पत्ति के ब्यौरों व चुनावी हलफ़नामे तक में प्रतीक यादव कहीं भी बतौर मुलायम पुत्र नज़र नहीं आते हैं.
ये सब बातें हैरानी की ज़रूर है, मगर इससे जुड़े कुछ तथ्य ऐसे हैं, जो वर्तमान में चल रहे खेल के रहस्य से काफी हद तक तक पर्दा उठा सकते हैं.
मुलायम यादव की आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में सीबीआई द्वारा दाखिल किए गए कागज़ातों पर यक़ीन करें तो प्रतीक साधना गुप्ता के पहले पति चन्द्र प्रकाश गुप्ता के बेटे हैं. बताते चलें कि प्रतीक का जन्म 1988 में हुआ है और मुलायम ने साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट में यह स्वीकार किया कि साधना गुप्ता और प्रतीक यादव उनके पत्नी और बेटे हैं. ऐसे में प्रतीक को लेकर उठ रहे सवाल खुद-ब-खुद और भी पेचीदा हो जाते हैं. हालांकि मुलायम सिंह ने प्रतीक को अपना नाम दिया है, और अब वे प्रतीक गुप्ता से प्रतीक यादव हो चुके हैं.
ये बात मुलायम सिंह के परिवार के सभी सदस्य जानते हैं. बल्कि अखिलेश यादव और प्रतीक यादव के बीच खटास की बड़ी वजहों में से एक वजह यह भी है कि प्रतीक किसी भी रूप में मुलायम के अपने नहीं हैं.
प्रतीक की मां साधना गुप्ता अमर सिंह पर काफी भरोसा करती हैं. कहा जाता है कि अमर सिंह ही वह शख्स थे, जिन्होंने मुलायम यादव को साधना गुप्ता को सामाजिक तौर पर अपनाने के लिए तैयार किया. ऐसे में अखिलेश यादव, अमर सिंह की जिस साज़िश का ज़िक्र करते हैं, उसके पहलू में कहीं न कहीं प्रतीक व साधना भी आते हैं.
यानी वर्तमान में मचे घमासान के पीछे मुलायम यादव की दूसरी शादी, अमर सिंह से नज़दीकी और साधना गुप्ता की अपने बेटे प्रतीक को लेकर सियासी महत्त्वाकांक्षाएं भी शामिल हैं. शायद अखिलेश यादव इन्हीं सब चीजों को देखते हुए काफी सतर्क हैं. वे अपने पिता मुलायम यादव की राजनीतिक विरासत को उनके रहते अपने नाम कर लेना चाहते हैं.
वर्तमान की ये लड़ाई भले ही शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच दिखाई देती है, लेकिन दरअसल में यह लड़ाई प्रतीक व अखिलेश के बीच की लड़ाई है. शिवपाल यादव और अमर सिंह दोनों बस उस लड़ाई के किरदार हैं, जो अपने फ़ायदे के लिए प्रतीक यादव के साथ खड़े हैं. क्योंकि अखिलेश यादव की इनसे बनती नहीं है और अखिलेश यादव इनके हाथों की कठपुतली बनने को तैयार भी नहीं हैं.
अब बात करते हैं देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की. पीएम मोदी ट्रिपल तलाक़ पर अपने रूख को लेकर इन दिनों सुर्खियों में हैं. वे मुस्लिम महिलाओं के ख़िलाफ़ नाइंसाफ़ी को ख़त्म करने की वकालत कर रहे हैं. मगर एक बड़ा सवाल उनका खुद अपनी पत्नी जशोदाबेन को अपनी पत्नी घोषित करने के बावजूद मोदी ने उन्हें अपने घर में कोई जगह नहीं दी है. यहां तक कि जो अधिकार देश के आम नागरिकों को हासिल हैं, वे हक़ भी जशोदाबेन को हासिल नहीं हैं. मसलन जशोदाबेन अपना पासपोर्ट बनवाना चाहती थी, लेकिन अधिकारियों ने यह कहकर मना कर दिया कि इसके लिए आपको शादी का सर्टिफिकेट लाना होगा, जबकि सचाई यह है कि जशोदाबेन ने 1968 में नरेंद्र मोदी से शादी की थी. उन दिनों विवास का प्रमाण-पत्र आवश्यक नहीं होता था. जशोदाबेन अपनी इस पीड़ा का इज़हार कई बार कर चुकी हैं. यहां तक कि वे अपने दीगर हक़ के लिए कई बार आरटीआई तक का सहारा ले चुकी हैं. (इस लेखक ने भी उनकी इस पीड़ा को देखते हुए कई आरटीआई दाखिल किए, लेकिन सबके जवाब काफी गोलमोल ही मिले. अधिकारी जवाब देने से बचते नज़र आए)
ऐसे में जितनी बार नरेंद्र मोदी महिलाओं के हक़ की बात करते हैं, जशोदाबेन का सवाल और उनका चेहरा उतनी बार घूमकर करके उनके सामने प्रश्न-चिन्ह की मुद्रा में खड़ा हो जाता है. मोदी के पास इस प्रश्न-चिन्ह का कोई जवाब नहीं है या फिर वो जवाब देना ही नहीं चाहते.
दरअसल, ट्रिपल तलाक़, बहु-विवाह और पत्नी के हक़ व हक़ूक़ से लेकर कई रिश्ते बनाने और बिगाड़ने के बीच के सामाजिक मुद्दों से बेहद ही व्यक्तिगत पहलू सामने आ रहे हैं. ये व्यक्तिगत पहलू इनके पैरोकारों और विरोधियों के निजी जीवन से जुड़े हुए हैं. मुलायम सिंह यादव से लेकर नरेन्द्र मोदी तक सभी कहीं न कहीं इस ‘चक्रव्यूह’ में किसी न किसी स्थान पर खड़े पाए जाते हैं. मोदी के सामने जशोदाबेन एक ‘पहेली’ की तरह डटी हुई हैं. तो वहीं मुलायम अपनी दोनों पत्नियों और उनके बच्चों के चक्रव्यूह में गिरफ़्तार हो चुके हैं. ऐसे में इन दोनों ही नेताओं से देश और समाज को बड़े मुद्दों पर बड़ी रोशनी बिखेरने की अपेक्षा है, मगर ये दोनों ही नेता अपनी व्यक्तिगत उलझनों में इस क़दर डूबे हुए हैं कि वे किस मुंह से समाज को रोशनी देंगे, ये ही सबसे बड़ा सवाल है.