मोदी सरकार तय नहीं कर पा रही है ‘गरीबी’ की परिभाषा

TwoCircles.net Staff Reporter

पटना : सूचना के अधिकार के ज़रिए आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौर को भारतीय राष्ट्रीय परिवर्तन संस्था (डाटा बेस एवं विश्लेषण) से हासिल जानकारी बताती है कि नीति आयोग बीते डेढ़ साल में गरीबी की व्यवहारिक परिभाषा विकसित नहीं कर पाया है.


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स्पष्ट रहे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केंद्र की सत्ता संभालते ही योजना आयोग को खत्म कर नीति आयोग बनाया था. नीति आयोग की शासी परिषद की पहली बैठक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आठ फरवरी, 2015 को हुई. इस बैठक में लिए गए फैसले के मुताबिक़ नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में 16 मार्च 2015 को गरीबी उन्मूलन संबंधी टास्क-फोर्स का गठन किया गया.

लेकिन अब ख़बर है कि इस टास्क-फोर्स ने डेढ़ वर्षों की जद्दोजहद के बाद इस मुतल्लिक़ कुछ कर पाने में असमर्थता ज़ाहिर करते हुए अपने हाथ खड़े कर लिए हैं और प्रधानमंत्री से सिफारिश की है कि वह ‘गरीबी के जानकार विषेषज्ञों’ की दूसरी टीम गठित करें. क्योंकि अपने डेढ़ वर्षों के कार्यकाल में उक्त टास्कफोर्स के सदस्य गरीबी की परिभाषा और मानकों को लेकर सहमति बनाने में विफल रहे जिस कारण नई टीम के गठन की सिफारिश की गयी जो गहराई में जाकर यह काम करे.

ज्ञातव्य है कि ग़रीबी रेखा का निर्धारण जीवनयापन के लिए किसी व्यक्ति द्वारा ज़रूरी वस्तुओं व सेवाओं को खरीदने की उसकी सामर्थ्य के आधार पर किया जाता है. चूंकि पनगढ़िया के नेतृत्व वाला टास्क-फोर्स देश में गरीबों की संख्या के आंकड़े बताने का जोखिम नहीं उठाना चाहता, इसलिए उसने अपने हाथ खड़े करते हुए पल्ला झाड़ लेना मुनासिब समझा, ऐसा प्रतीत होता है.

इस ख़बर पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिवमंडल ने घोर आश्चर्य व्यक्त किया. इस मंडल ने इसे गैर-ज़िम्मेदाराना हरकत क़रार देते हुए इस बात का उल्लेख किया कि 2005 में सुरेश तेंदुलकर के नेतृत्व में गठित दल ने 2009 में प्रस्तुत अपनी रपट में देश के गरीबों की संख्या कुल आबादी का 21.9 प्रतिशत होने का प्राक्कलन किया था जो काफी कम और सच्चाई से परे था, इसलिए उसने 2011 में नया पैमाना सुझाया. तब तत्कालीन संप्रग सरकार को भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर सी. रंगराजन के नेतृत्व में दूसरे विषेषज्ञ दल का गठन करना पड़ा था. 2012 में गठित रंगराजन कमेटी ने 2014 में प्रस्तुत अपनी रपट में गरीबों की संख्या 29.5 प्रतिशत बताई. फिर भी इसे लेकर विवाद जस का तस बना रहा. अंदर की बात यह है कि 2015 में राजग सरकार द्वारा गठित पनगढ़िया दल ने अपनी रपट के मसविदे को तेंदुलकर द्वारा सुझाए गये आंकड़े के इर्द-गिर्द ही बनाए रखा, और इसलिए अपनी ओर से नया कुछ सुझाने से परहेज किया है.

भाकपा सचिवमंडल सदस्य और संवाद-अभियान विभाग के सचिव रामबाबू कुमार का कहना है कि चूंकि राज्यों में भी गरीबी रेखा को लेकर अलग-अलग आवाजें उठती रही हैं, इसलिए मामले को खटाई में डाले रखने का सिलसिला जारी रखते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने अपने नियोक्ता (प्रधानमंत्री) की कॉरपोरेट पक्षी आर्थिक नीतियों के बचाव के लिए ढाल का काम किया जो निहायत जन-विरोधी, गरीब विरोधी रवैया है. इसका हर स्तर पर विरोध होना चाहिए.

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